अनुभूति
तुम आती हो,नव अंगों काशाश्वत मधु-विभव लुटाती हो।बजते नि:स्वर नूपुर छम-छम,सांसों में थमता स्पंदन-क्रम,तुम आती हो,अंतस्थल मेंशोभा ज्वाला लिपटाती हो।अपलक रह जाते मनोनयनकह पाते मर्म-कथा न वचन,तुम आती हो,तंद्रिल मन मेंस्वप्नों के मुकुल खिलाती हो।अभिमान अश्रु बनता झर-झर,अवसाद मुखर रस का निर्झर,तुम आती हो,