अब यह मत पूछना कि खुदा की अर्जी कैसी... खुदा की तो मर्जी होती है। बताते हैं... बात कल की सुहानी रात की है। जब बारिश हो रही हो तो रात अपने आप सुहानी हो जाती है... और ऐसे में कोई खलल आ जाये तो??
"शश-शश... उठो बालक। उठो... फेसबुक पे इतनी नींद कुर्बान करते हो, थोड़ी नींद हम पे भी कुर्बान कर दो वत्स।"
आवाज मुस्तकिल बजती रहे तो नींद भी आखिर कहां तक टिके। आंख खोल के फोकस ठीक किया तो बैडरूम में वैसा ही अंधकार था जैसा करके सोया था। लगा कि कोई भ्रम था... तो फिर से सो जाना चाहा।
"अब उठ ही गये हो तो हमारी सुन भी लो अशफ़ाक़ मियाँ..."
"कक-कौन?" कमरे के सन्नाटे और अंधेरे में गूंजी आवाज ने कुछ हद तक तो डरा ही दिया।
"हम हैं... ईश्वर!"
"ईश्वर... कौन से ब्रांड के?"
"आल इन वन। चौदह खाने के रिंच समझो... बोल्ट इसाई का हो तो 'गॉड' के रूप में फिट कर लो। मुसलमान का है तो अल्लाह के रूप में और हिंदू का है तो भगवान के रूप में।"
"लेकिन मुझे कैसे दर्शन दे दिये... मैं तो आलमोस्ट नास्तिक ही हूँ।"
"इसीलिये तो तुम्हें दिये कि तुम सवाल करोगे, तर्क करोगे... जवाब सुनोगे, समझोगे। आस्तिक को दर्शन देते तो वह बस नारा लगा के लोट जाता। वे तो बस हमें ढोने के लिये ही उपयुक्त हैं।"
"लेकिन दर्शन वाकई हों तो सही... कोई आकार प्रकार का पता तो चले।"
"आकार... जब वेद, तौरात, इंजील, कुरान में बता चुके कि हम निराकार हैं तो आकार जानने की इच्छा क्यों वत्स? संसार में वैसे भी हमारी इतनी वैरायटी उपलब्ध हैं कि लोग उन्हीं के पीछे जूझ रहे हैं... अब तुम्हें आकार बता कर एक नया पेंच पैदा कर दें।"
"कहने का मतलब यह कि आप हैं एक ही... सब अपनी-अपनी पसंद के ईश्वर के हिसाब से मान्यता दिये हुए हैं, या अलग-अलग हैं?"
"ढक्कन वाली बात न करो बेटा... संसार के अलग-अलग मैनूफैक्चरर होते तो आपस में लड़ के पहले ही डिसाइड कर लेते कि किसकी सत्ता रहेगी और फिर अपने स्वदेशी पतंजलि प्रोडक्ट को छोड़ बाकी के सभी प्रोडक्ट को हानिकारक और कैमिकलयुक्त बता कर मार्केट से बाहर न कर देते। सब हमारे ही बच्चे हैं अशफ़ाक़।"
"आपकी आवाज ही आ रही है, कुछ दिख नहीं रहे। गुरू हो किधर... इस टीवी में, लैपटाप में या फिर इस एसी में?"
"इधर उधर मत ढूंढ बुढ़बक... अपने अंदर ढूंढ। हम वहीं रहते हैं।"
"हेहेहेहे... समझ गया। यह बताइये कि आना कैसे हुआ गुरू?"
"आजकल मन बहुत आडवाणी-आडवाणी सा फील कर रहा था तो सोचा कि संसार को फिर कुछ संदेश दे दें अपने।"
"दीजिये... बिना घुमाये फिराये।"
"वह टेबल कने देख... तीन ठो वाईट तख्तियां रखी हैं।"
"अरे जब खुद मौजूद हैं तो बआवाजे बुलंद दे दीजिये।"
"फिर ढक्कन वाली बात... अगर हम खुल के बआवाजे बुलंद ही सबकुछ कह देते तो फिर कन्फ्यूजन कहां बाकी रहता। इसीलिये तो हमने सबकुछ किताबों के माध्यम से कहा है ताकि कम से कम लोग इसीलिये लड़ते भिड़ते रहें कि हमारी किताब सही, हमारी किताब सही और हमारा मनोरंजन भी होता रहे।"
"हाँ लड़ ही तो रहे हैं... कोई काफिर बता के मार रहा तो कोई गौमांस भक्षण के नाम पर।"
"वह मनोरंजन नहीं, मनोरंजन में आया हुआ 'एरर' है बालक। इसीलिये तो आये हैं तुम्हारे पास कि इस घोर कलियुग में भी कुछ संदेश दे सकें। अपनी बात हम गुरमेहर कौर के स्टाईल में कहना चाहते थे, इसलिये तख्तियों पे लिखी है। तख्ती उठाओ वत्स।"
"लो उठायी। यह क्या... नॉट इन माई नेम।"
"हाँ यह वाला नॉट इन माई नेम ईश्वर की तरफ से। हमने संसार के अलग-अलग हिस्सों में लोगों को शिक्षित और सुव्यवस्थित करने के लिये अलग-अलग रूप में ज्ञान दिया तो इसका मतलब ये नहीं कि इतने ढेर सारे ईश्वर हैं। माना कि ग्लोबलाइजेशन का दौर है, लेकिन यह क्या कि हमारे सभी रूपों को मिक्स करके, हमारी हमसे ही तुलना करके, हमारे ही किसी रूप को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की होड़ में लग गये हो। देखो डूड, रायता फैलाना है तो फैलाओ, पर डोंट डू इट इन माई नेम। ओके? अगली स्लाइड देखो बालक।"
"लो देखी... हें, इसमें भी सेम वही बात... नॉट इन माई नेम।"
"सेम नहीं बालक, इसके लेटर बोल्ड हैं और साइज भी बड़ा है।"
"तो? उससे क्या?"
"क्योंकि समस्या पहले से ज्यादा बोल्ड और बड़ी है। हमने हजारों जानवर अलग-अलग रूप रंग में बनाये, लेकिन किसी जानवर को इंसान की माँ या पिता नहीं बनाया। यह दिखावटी आस्था कहां से ले आये बे और ले भी आये तो उसके नाम पे हमारे बहुमूल्य प्रोडक्ट 'इंसान' को मारोगे क्या? किताबों में तो और भी जानवर भगवानों के साथ जुड़े हैं, उनके साथ ऐसी आस्था क्यों नहीं दिखाते? यह गाय के नाम पर इंसान मारने की गंदगी फैलानी ही है तो भले फैलाओ बट डोंट डू इट इन माई नेम। डिड यू अंडरस्टैंड? नेक्स्ट प्लीज।"
"हें... फिर वही नॉट इन माई नेम। हाँ-हाँ पता है कि पहले से ज्यादा बोल्ड है और साइज भी ज्यादा है।"
"इसलिये कि समस्या ज्यादा बोल्ड और बड़ी है। देखो वत्स... यह जो हमारे नाम पे ईशनिंदा/ब्लासफेमी वाली कबड्डी खेल रहे हो, मैं पूरी तरह कंडेम करता हूँ इसे। अबे तुम तुच्छ लोग हमारी हिफाजत करोगे? मने हमने दुनिया बनाई और हम अपने सम्मान की रक्षा के लिये भी तुम्हारे मोहताज... वाट नानसेंस। यह जिहाद के नाम पे गोलियाँ चलाना, बम दगाना, खुद दग जाना, पैगम्बर के अपमान के नाम पे खून खराबा, हिंसा करना और नाम हमारा बदनाम करना। मैं स्ट्रांगली इसे कंडेम करते हुए कह रहा हूँ... करना है तो अपने नाम पे करो बट डोंट डू इट इन माई नेम।"
"अच्छा।"
"देखो, किशोर आडवाणी की तरह सौ बात की एक बात... तुम तुच्छ लोग अपने दिमागों में भरी गंदगी फैलाना ही चाहते हो अपने नाम पे फैलाओ। हमें मत बदनाम करो बे... लड़ मर जाओ करमजलों, बट नॉट इन माई नेम।"
"और न मानें तो... अपनी नहीं कह रहा, आपके हरे और नारंगी फालोवर्स को कह रहा हूँ।"
"तो हम एक कमलापसंद खायेंगे और पिच से तुम लोगों के मुंह पर थूक देंगे। भाड़ में जाओ बदबख्तों।"
फिर 'पिच' की आवाज आई तो नींद वाकई खुल गयी। साला कमरे में अंधेरा और सन्नाटा वैसे ही सम्राट किलविश के अंधेरे की तरह कायम था और बाहर वैसे ही मौसम सुहाना था। फिर यह 'पिच' से थूका किसने... लगा कि ऊपरवाला जाते-जाते वाकई हम इंसानों के मुंह पे थूक गया हो।