अये बच्ची मासूमन... तनिक पानदान तो देना जरा। मुंह सूख रहा है... एक पान तो खा लें जरा, फिर जबान हिलायेंगे न। तुम भी खाओगी क्या बहन... अच्छा तो न खाओ बच्ची, उसमे मुंह क्या बनाना।
आऊम... बच्ची, पान खाये बगैर तो कमबख्त जुबान ही न खुले करमजली। हाँ तो मासूमन... मैं ये के रई थी न कि तुम बड़ी मासूम हो। देश दुनिया के हालात तो पता हैंगे न तुम्हें... अब यह तुम्हारी चुप्पी न खीज पैदा करने लगी है हिंदुओं में।
भला यह कोई बात हुई कि जगह-जगह दुनिया भर में अल्लाह रसूल के नाम पे नासपीटे गंदगी मचाये हैंगे और तुम न मासूमन, मुंह दबा के मजम्मत कर देती हो बस... और जब कोई अपना मियाँ भाई कहीं किसी भीड़ के हाथों मार दिया जाये तो मार हंगामा खड़ा कर देती हो। अरे तब भी तो ऐसे ही बुलंद होके मजम्मत किया करो जब यह गोलियाँ चलाने वाले, बम दगाने वाले अपने ही नासपीटे हों। है कि नहीं?
अच्छा बताओ बच्ची, भला यह अच्छा लगता है कि अपने भाई जहां कम हों, वहां सारे नागरिक अधिकार चैये हैंगे और जहां ज्यादा हुए वहां फौरन इस्लामिक मुल्क बनाने चल दोगी। दूसरों से तो बच्ची तुम सेकुलर होने की उम्मीद लगाती हो, लेकिन खुद सेकुलर नहीं होती हैंगी।
अच्छा लगता हैगा मासूमन, कि हम तो उनसे उम्मीद करें कि वे हमारी मजहब से जुड़ी हर रवायत, हर चीज की इज्जत करें लेकिन तुम उनके प्रसाद, उनके मंदिर, उनके रंग, त्यौहार, उनकी हर रवायत को सीधे 'हराम' करार दे दो। सुनने में अजीब नहीं लगता हैगा कि तुम उनकू तबर्रुक खिला दो, लेकिन उनके प्रसाद को हराम करार देकर कन्नी काट लो।
देखो न बच्ची, तुम और तुम्हारे सब फेसबुकिये भांजे भतीजे... जब कोई गैरमुस्लिम लड़की/लड़का कभी रोजे रख ले तो उसके लिये कितना खुश होके सबको बताते हो, माशाअल्लाह-सुब्हानअल्लाह करते हो... लेकिन वहीं अगर सलमान एक दिन गणपति के सामने दिख जाये आरती करते, तो फौरन उसे काफिर बता दोगी। उसके खिलाफ फतवा निकलवा लोगी। भला अच्छा लगता हैगा यह।
बोलो न बच्ची, अपनी किताबों में भी तो कितना कचरा भरा है, लेकिन उनकी किताबों का कचरा निकाल कर हा-हा हू-हू करती हो। अपने यहां के मजहबी पेशवाओं की खुराफातों की तरफ से तो आंखें बंद कर लेती हो और उनके देवी देवताओं, पंडो पुरोहितों पर खूब उंगली उठा लेती हो... पिच।
अये बहन... थोड़ा तो डरो खुदा से बच्ची। सबको बताती हो कि मुसलमान यह होता है, वह होता है... अये तुम्हारे कहने से मान लेगा कोई कि मुसलमान इतने अच्छे होते हैं। जब एखलाक दिखाने की बारी आती है तो फेसबुक पे दिन रात गालियां देती हो, दूसरों को जलील करती हो, पोस्ट करके लोगों का चरित्रहनन करती हो, लोगों को ट्रोल कराती हो... इससे साबित होगा भला कि मुसलमान इतने अच्छे होते हैं... पिच।
और यह जो अपनी किताबें लिये फिरती हो न मासूमन कि इनमें यह हक लिखा है, यह सच्चाई लिखी है, यह इंसानियत लिखी है तो इन मुओं, नासपीटों ने कौन सी किताबें पढ़ी हैं जो कहीं लोगों के गले काट रहे हैं, कहीं गोलियाँ चला रहे हैं, कहीं बम दगा रहे हैं तो कहीं फिदायी हमले कर रहे हैं। पढ़ाओ इन्हें यह किताबें और देखो कि यह सुधर पाते हैं... इन्हें सही रास्ता दिखा पाती हैं कि तुम्हें दिखायेंगी... पिच।
अये बच्ची... देखो बात सही है, अब यह यहूदी साजिश, अमरीकी साजिश वाली मक्कारी अब खतम करो और ईमानदारी से मानो कि यह हमारे ही लोग हैं जो रास्ते से भटक गये हैं और मौत की सजा के मुस्तहक हैं, फिर यह जो काऊ टेररिज्म वाले बदमाश हैंगे न, इनका विरोध करो तो ईमानदार भी लगोगी।
देखो मासूमन, तुम कितनी भी मासूम हो मगर यह समझ लो कि हम लोग अरबी नहीं भारतीय हैं इसलिये हमें यह समझना होगा कि सुख दुख, अच्छा बुरा जो भी है... हमें उसका सामना अपने इन्हीं हिंदू भाइयों के साथ करना है, अरब वालों के साथ नहीं। पिच... देखो, तुम्हें समझाने में बच्ची गला भी दुख गया और पान भी खतम हो गया हैगा। तो अब चलते हैंगे। सलामालेकुम... अल्लाह हाफिज।