नाम तो उसका सफीउद्दीन था, पर कहते सब चिरांटू थे। चिरांटू यूँ तो हुसैनाबाद में रहता था और ई रिक्शा चलाता था, लेकिन 'माल' उसने नेपियर रोड का फंसा रखा था।
उसके लिये लड़की 'माल' से ज्यादा कभी न रही थी। शक्ल थोड़ी अच्छी थी तो कोई न कोई साल छ: महीने में मिल ही जाती थी।
इस बार नेपियर रोड की लड़की फंसाई थी, वह भी जरदोजी का काम करने वाले उसके दोस्त की बहन थी। बिना जरूरत भी उधर रिक्शा लिये भटकते-भटकते उसे इतना शीशे में तो उतार ही लिया था कि वह उसके साथ 'रेजिडेंसी' आने के लिये तैयार हो गयी थी।
लखनऊ में रेजिडेंसी वह जगह थी जो ऐतिहासिक महत्व की होने के साथ-साथ प्रेमी युगलों के लिये इश्क परवान चढ़ाने के भी बहुत काम आती थी।
इश्क तो चिरांटू खैर क्या परवान चढ़ाता... थोड़ा मसलने, रगड़ने की नीयत से आज ई रिक्शे की मजूरी का गोला मार कर अपनी डॅव को रेजिडेंसी ले आया था।
डरते-डरते ही सही... पर बेचारी आ गयी थी। वजह जो भी रही हो।
थोड़ी देर इधर उधर बैठने और पापकार्न, आइसक्रीम ठूंसने, ठुंसाने के बाद जब इधर उधर हाथ लगा कर मौसम बन पाया तो चिरांटू उसे कब्रिस्तान वाले उस हिस्से में ले आया जहां कब्रों के आसपास घनी झाड़ियां और पेड़ वगैरह थे। अक्सर जोड़े इस ओट का मनमाने ढंग से फायदा उठा लेते थे।
उसकी किस्मत अच्छी थी कि एक झाड़ खाली मिल गया... चिरांटू ने फौरन कब्जा जमाया।
लड़की का शायद 'पहला तजुर्बा' था तो झिझक भी रही थी और डर भी रही थी, लेकिन उसके स्पर्श से चिरांटू के रोयों समेत सब खड़ा हो चुका था और वह उत्तेजित हो कर 'बेचारी' को रगड़ने मसलने में लग गया था।
तभी पास के झाड़ से उभरी जनानी आवाज पर उसका ध्यान अटक गया। लड़की कह रही थी 'यह मत करो' और लड़का शायद मान नहीं रहा था।
चिरांटू को लड़के की चिरौरी और लड़की के नखरों से मतलब नहीं था। उसे लड़की की आवाज से मतलब था, जिसे वह पहचानता था।
उसकी उत्तेजना ठंडी पड़ने लगी और दिमाग कचोटने लगा।
जब बर्दाश्त से बाहर हो गया तो उसने अपने 'माल' को खुद से अलग किया और झाड़ से बाहर निकल आया।
आड़ भले थी, पर देखा तो जा सकता था कि वहां कौन था... और उसका शक सही था।
वह उसकी बहन नसीमा और उसका दोस्त बबलू ही थे, और बहन की अस्त व्यस्त हालत वैसी ही हुई पड़ी थी, जैसी उसके 'माल' की थी।
उन्हें देख कर उसका दिमाग घूम गया और रगों में शोले भड़कने लगे। गुस्से से मुट्ठियां भिंच गयीं और होंठों से गालियों का अंबार फूट पड़ा।
"साले मादर... तेरी माँ की... और नहीं मिली थीं कोई... दोस्त हो के साले..."
अब चूँकि दोस्त मौकाये वारदात पर रंगे हाथों पकड़ा गया था, तो उसका मारल डाऊन था... बेचारा कुछ बोल भी न सका और चिरांटू उस पर टूट पड़ा।
दोनों लड़कियाँ शर्मिंदा सी खड़ी जैसे जमीन में गड़ी जा रही थीं और तमाशाई इकट्ठा होने लगे थे।