विषय - कर्म और हम
आओ हमसे दिन अपने जीवन की कुछ सत्य और सच के बारे में समझते हैं हमारे जीवन में हम बहुत से लोग कहते हैं कि यह तेरे कर्म के अनुसार हुआ यह तेरा कर्म का फल है तूने अच्छा किया तो अच्छा फल मिला और बुरा किया तब बुरा फल मिला।
रंगमंच के सांसारिक मोह माया में क्या कर्म का फल सच है ऐसा उचित है तब हम आज के सांसारिक दृष्टिकोण से देखते हैं कि आज कोई ना कोई किसी न किसी को कहीं ना कहीं छल या फरेब कर रहा है। जीवन के सब कर्म ही तो हैं। सच तो हम सब इंसान है क्योंकि हम सभी कहीं ना कहीं अपने कर्म अच्छे या बुरे नहीं समझ पाते हैं। क्योंकि जीवन एक नदिया की तरह हैं जिसमें समय एक पानी है और हमारा दिनचर्या एक कर्म हैं। इस कहानी में कम सभी इंसानों का अपना-अपना अलग-अलग कर्म होता है और इस कर्म के अनुसार हम मनुष्य जीवन में फल भोगते हैं। सांसारिक जीवन में कर्म फल ही हमारा आईना होता है। और हम सब अपने कर्मों के अनुसार धन संपदा सुख-दुख खुशियां शारीरिक परेशानियां और जीवन में तरह-तरह की कठिनाइयों और सुख को भोंगते हुए अपने जीवन के अंत समय में पहुंचते हैं। और उसे अंत समय में हमारे कर्म फल का आईना हमें समझ आता है क्योंकि मानव बचपन से जवानी तक तो मस्ती में मस्त रहता है जवानी से अधेड़ उम्र तक अपने कर्मों में लिप्त रहता है और समझदार होते हुए भी ना समझी या समझ से काम लेता है। परंतु फिर भी जवानी से अधेड़ावस्था की उम्र तक कुछ कुछ सोच समझ कर कुछ मजबूरी में भी गलतियां कर जाता है परंतु हमारा कर्म फल निश्चित है क्योंकि विधि का विधान और जीवन का फल धरती आकाश जल वायु और अग्नि पर निश्चित होता है क्योंकि हमारा शरीर पंचतत्व से बना हुआ है जिससे हमारा संपर्क सदा और हमेशा ईश्वर की बनाई हुई मूर्ति मतलब हम मतलब इंसान से रहता है और मनुष्य जो भी पल-पल क्षण भर में कर्म करता है। वह सभी लेखा-जोखा ईश्वर की डायरी यानी पांच तत्वों में घूमता रहता है और जब हमारे अच्छे कर्म या बुरे कर्म का फल समाप्त होता है या खाता बंद होता है तब उस खाते के अनुसार हमारे कर्मों हम सभी को निश्चित रूप में भोगना पड़ता है यह एक कड़वा सच है की हर मनुष्य का कर्म ही एक आईना होता है जिससे हमारे जीवन की राह में खुशियां और दुख की घड़ियां हमको समझाती हैं कि हम ऐसा कोई कर्म न करें जिससे हमें दुख की राह देखना पड़े। परंतु कुछ कर्म फल ऐसे भी होते हैं माता-पिता सब अच्छे कर्म करते हैं और संतान उनकी बुरा कर्म करती है। तब वह फल भी माता-पिता को ही भोगने पड़ते है या माता-पिता कोई गलत काम करते हैं तब वह कर्म फल औलाद को भुगतना पड़ता है। जीवन में सभी सांसारिक मोह माया में बंधे हुए हैं और जीवन में सभी जानते हैं कि सभी को जीवन में अकेले आना और अकेले जाना पड़ता है यानी की मृत्यु में और जन्म में सभी को अकेले ही यात्रा करनी पड़ती है हम जीवन में आकर्षण और सांसारिक आनंद में लिप्त कर्मों में यह भूल जाते हैं की है शरीर और यह आत्मा हमारी अपनी नहीं है और यह है शरीर कुछ भी नहीं है सब कुछ मन भाव और अंतरात्मा के कर्मों का भाव है। जीवन में कर्म ही एक जीवन का सच है क्योंकि हमारे जीवन की राह और जीवन में सुख-दुख हमारे कर्म फल का आईना है।
सच तो आज कलयुग में कुछ भी नहीं है क्योंकि हम अगर अपने ग्रंथों अपने वेदों को उठाकर देखें तब हम सच को पहचान सकते हैं हर युग में हर प्राणी ने अपने कर्मों की फलों को भोगना पड़ता है। द्वापर सतयुग त्रेता और कलयुग हम सभी युगों में अपने कर्मों के फलों को भोंगते आए हैं और कलयुग में हम तीनों युगों की गाथाएं पढ़ते हैं जिसमें भगवान की लीलाएं और भगवान के वनवास के साथ-साथ महाभारत आदि में दिखाया गया है भाइयों भाइयों में युद्ध यह सब प्रभु की लीला और कर्मों का फल है और हम सभी भी कर्मों के फल को देखते हुए जीवन को पूर्ण करते हैं यही जीवन का अंत या सुखद अंत या जीवन का पूर्ण विराम कहे । बस कहानी कर्म ही जीवन का आईना है यह कर्म फल ही हमारा सबका आईना है।