मन की बातें जो मन में यकायक आ जातीं और विचारों के प्रवाह में शब्द ढल जाते हैं। कविता रूप में और कोई मुद्दा समस्या, भाव एक रूप लेकर साक्षात हो जाते हैं।
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<div align="center"><p dir="ltr"><b>"घर का भेदी"-</b><b style="font-size: 1em;">चौपाई छंद"</b></p><p
<div><span style="font-size: 16px;">जी लो</span></div><div><span style="font-size: 16px;">हर पल को </span></div><div><span style="font-size: 16px;">जी भरके</span></div><div><span style="font-size
आज छह सात महीनों बाद मंच पर आई और कारण दो हैं। एक तो व्यस्तता क्योंकि और भी कई मंचों पर लिखती हूं। दूसरा जब भी आई बाई चांस प्रोफाइल खुलने में दिक्कत आई और फिर झुंझलाकर वापसी कर ली। आज एक मेल शब्द इन क