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कुंडली में दोषों को दूर करने के उपाय

6 सितम्बर 2022

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कुंडली के समस्त दोषों को हरने से सबसे उत्तम मार्गो में एक है -- पंचमहायज्ञ ।।


आइये, हम पांच महायज्ञ पर विचार करते है .... 


मनुस्मृति ' ( ३/६८ ) में लिखा है- । -- 


"पंच सूना गृहस्थस्य चुल्ली पेषण्युपस्करः । कण्डनी चोदकुम्भश्च बध्यते यास्तु वाहयन् ॥ ” 


अर्थात् गृहस्थी में चूल्हा , चक्की , झाड़ू , ओखली और घड़ा , यह पांच स्थान हिंसा के हैं । ( पराशर ० ) 


यह पांच स्थान हिंसा के क्यो है ? क्यो की इन पांचों स्थानों में जाने या अनजाने में जीव हत्या होती ही है ।। उससे पापरूपी कर्मफल की प्राप्ति होती है ।। जिसका भुगतान हमे भिन्न भिन्न प्रकार के कष्ठ सहकर करना पड़ता है .... 


चूल्हा-चक्की-झाड़ू-ओखली-घड़ा इनको काम में लाने वाला गृहस्थ पाप से बंधता है । इसलिए उन पापों का निवृत्ति के लिए नित्य क्रमश : निम्नलिखित पांच यज्ञ करने का विधान किया गया है- ( पारा ०२/१४ ) -

( १ ) ब्रह्मयज्ञ 

( २ ) पितृयज्ञ 

( ३ ) देवयज्ञ 

( ४ ) भूतज्ञ 

और 

( ५ ) मनुष्य यज्ञ


● ब्रह्मयज्ञ -- श्रीगीताजी/ वेद/रामायण/महाभारत/पुराणपढ़ना आदि शास्त्र पढ़ना- पढ़ाना, ब्रह्मगायत्री जप, मन्त्र जप, नामजप ब्रह्मयज्ञ कहलाता है ।।


●पितृयज्ञ - माता-पिता की सेवा, समय पर श्राद्ध-तर्पणादि -पितृयज्ञ कहलाता है ।।


●देवयज्ञ - हवन आदि करना "दैवयज्ञ" कहलाता है ।


● भूतयज्ञ - बलिवैश्व करना (गौ ग्रास देना, चींटियों, मछलियों, कछुवों को दाना डालना, कुत्ते व कौव्वे को भोजन देना भूतयज्ञ कहलाता है ।।


●और अतिथि- पूजन ' मनुष्ययज्ञ ' है - - “ 


अध्यापनं ब्रह्मयज्ञः पितृयज्ञस्तु तर्पणम् | 

होमो दैवो बलिभ तो नृयज्ञोऽतिथिपूजनम् ॥ ” ( मनु ० ३।७० ) ।


देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः । 

परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ॥ 


अर्थात् यज्ञ के द्वारा तुम लोग देवताओं की उन्नति करो और वे तुम्हारी उन्नति करेंगे , इस प्रकार परस्पर उन्नति करते हुए परमकल्याण को प्राप्त होगे । 


( यहां भगवान मनुमहाराज ने स्पष्ठ ही कह दिया है, अगर हम देवताओं की उन्नति करेंगे, तो हम भी उन्नति को प्राप्त होंगे ।। हम देवताओं को प्रसन्न रखेंगे, देवता हमे प्रसन्न रखेगे ।।। हम अगर अपने आसुरी व्यवहार से असुरो ने अनुकूल कार्य करेंगे, तो हमे भी आसुरीपना यानि कष्ठ ही प्राप्त होगा ) 


इसके अतिरिक्त ' मनुस्मृति ' ( ३।७६ ) में बतलाया गया है कि अग्नि में डाली हुई आहुति सूर्य को प्राप्त होती है , सूर्य से वृष्टि होती है और वृष्टि से अन्न एवं अन्न से प्रजा होती है ।। 


'अग्नौ प्रास्ताहुतिः सम्यगादित्यमुपतिष्ठते । आदित्याज्जायते वृष्टिवृ ष्टेरन्नं ततः प्रजाः ॥ 


और भी 


अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः । 

यज्ञाद् भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥ ' ( गीता ३।१४ )


अर्थात् अन्न से प्राणी उत्पन्न होते हैं , अन्न वर्षा से उत्पन्न होता है , वर्षा यज्ञ से होती है और यज्ञ कर्म से होता है । इस प्रकार देवयज्ञरूपी नित्य कर्म में सम्पूर्ण प्राणियों का व्यापक हित निहित है । ‘ 


भूतयज्ञ ' में बलि - वैश्वदेव ' का विधान किया गया है , जिससे कीट , पक्षी , पशु आदि की तृप्ति एवं सेवा होती है । 


'मनुष्ययज्ञ अतिथि- सेवा - रूप है । अतिथि सेवा करने का बड़ा ही महत्त्व कहा गया है । जिसके आने की कोई तिथि निश्चित न हो , वह ' अतिथि ' कहा जाता है । यदि कोई अतिथि किसी के घर से असन्तुष्ट होकर लौट जाता है , तो उसका सब संचित पुण्य नष्ट हो जाता है '


आशाप्रतीक्षे संगतं सूनृतां 

चेष्टापूर्ते पुत्रपशूश्च सर्वान् । 

एतद् वृते पुरुषस्याल्पमेधसो

यस्यानश्नन् वसति ब्राह्मणो गृहे ||


अर्थात् जिसके घर में ब्राह्मण अतिथि बिना भोजन किये रहता है , उस पुरुष की आशा , प्रतीक्षा , संगत एवं प्रिय वाणी से प्राप्त होने वाले समस्त इष्टापूर्त्ता फल तथा पुत्र , पशु आदि नष्ट हो जाते हैं । 


अथर्ववेद ' के अतिथिसूक्त में ( ६/५८ ) कहा गया है कि ' एते वै प्रियाश्चाप्रियाश्च स्वर्गलोकं गमयन्ति यदतिथयः | सर्वो वा एष जग्धपाप्मा यस्यान्नमश्नन्ति || 


अर्थात् अतिथिप्रिय होना चाहिए , यजमान को स्वर्ग पहुंचा देता है और भोजन कराने पर वह उसका पाप नष्ट कर - देता है।। 


इस पंचमहायज्ञ में अग्नि को दी हुई आहुति के बारे में कहा गया है, की यह आहुति भगवान सूर्य को प्राप्त होती है । भगवान सूर्य हम सबके पितृ भी है ।। भगवान सूर्य ही चन्द्रमा अर्थात मन को शक्ति प्रदान करते है ।। भगवान सूर्य ही समस्त ग्रहों के राजा है ।। भगवान सूर्य की प्रसन्नता ही राहुजनित पितृदोष का नाश है ।।

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रचनाएँ
शास्त्रों के झरोखों से
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नमः शिवाय नमः शिवाय नमः शिवाय यह पुस्तक एक छोटा सा प्रयास है हमारे शास्त्रों में वर्णित तथा हमारे मनीषियों के द्वारा रचित प्रसंगों को संकलित करने का|अगर किसी को कोई त्रुटि नजर आती है तो सुझाव सादर आमंत्रित हैं|
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कुंडली में दोषों को दूर करने के उपाय

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श्रीकाशीविश्वनाथाष्टकम्

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द्वादशज्योतिर्लिङ्गस्तोत्रम्

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।। श्रीरामद्वादशनामस्तोत्रम् ।। इसका नित्य ७ बार पाठ करने से सभी अरिष्ट का निवारण हो जाता है। द्वादशी अर्धरात्रि में पाठ करने से दरिद्रता समाप्त हो जाती है। ग्रहण में नदी में खड़े होकर पाठ करने से

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हनूमत्कृत- सीतारामस्तोत्र

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🔥 स्रुवा धारण व प्रकार 🔥 " मूले हानिकरं  प्रोक्तं  मध्ये  शोककरं  तथा ।  अग्रे व्याधिकरं प्रोक्तं  स्रुवं धारयते  कथम् ।।  कनिष्ठाङ्गुलिमाने   चतुर्विशतिकाङ्गुलम् ।  चतुरङ्गुलं परित्यज्य अग

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विवाह संबंध में जरूर ध्यान दें

29 सितम्बर 2023
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शिवलिंग_के_प्रकार_एवं_महत्त्व 🔱 मिश्री(चीनी) से बने शिव लिंग कि पूजा से रोगो का नाश होकर सभी प्रकार से सुखप्रद होती हैं। 🔱 सोंठ, मिर्च, पीपल के चूर्ण में नमक मिलाकर बने शिवलिंग कि पूजा से वश

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सर्वदोष नाश के लिये रुद्राभिषेक विधि

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सर्वदोष नाश के लिये रुद्राभिषेक विधि 〰️〰️🔸〰️〰️🔸🔸〰️〰️🔸〰️〰️ रुद्राभिषेक अर्थात रूद्र का अभिषेक करना यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। जैसा की वेदों में वर्णित है शिव और रुद्र

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नदी स्तोत्रं एवं नदीतारतम्यस्तोत्रम्

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*नदी स्तोत्रं एवं नदीतारतम्यस्तोत्रम्* नदी स्तोत्रं  प्रवक्ष्यामि सर्वपापप्रणाशनम् । भागीरथी वारणासी यमुना च सरस्वती ॥ १॥ फल्गुनी शोणभद्रा च नर्मदा गण्डकी तथा । मणिकर्णिका गोमती प्रयागी च प

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श्रावण सोमवार पर कैसे करे शिव पूजा

29 सितम्बर 2023
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श्रावण सोमवार पर कैसे करे शिव पूजा 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ सामान्य मंत्रो से सम्पूर्ण शिवपूजन प्रकार और पद्धति 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ देवों के देव भगवान भोले नाथ के भक्तों के लिये श्रावण सोम

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पेट के रोग और ग्रह

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1.जन्म कुंडली के अनुसार पेट दर्द के लिए सबसे अधिक शनि ग्रह जिम्मेदार होता है। शनि एक ऐसा ग्रह है जो जातक की कुंडली में अशुभ होते ही, भिन्न-भिन्न प्रकार की परेशानियां देता है।यह ग्रह कुंडली के जिस भाव

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घर के प्रेत या पितर रुष्ट होने के लक्षण और उपाय

30 सितम्बर 2023
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घर के प्रेत या पितर रुष्ट होने के लक्षण और उपाय 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ बहुत जिज्ञासा होती है आखिर ये पितृदोष है क्या? पितृ -दोष शांति के सरल उपाय पितृ या पितृ गण कौन हैं ?आपकी जिज्ञासा को शांत

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श्राद्ध विशेष

30 सितम्बर 2023
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ध्यान पूर्वक जानकारी लें - क्या श्राद्ध में सन्यासियों को भोजन करा सकते हैं?? नहीं श्राद्धमें सन्यासियोंको निमंत्रित नहीं करना चाहिए।। *#प्रमाण— *#मुण्डान्_जटिलकाषायान्_श्राद्धे_यत्नेन_वर्

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तर्पणविधि

30 सितम्बर 2023
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*तर्पणविधि* (देव, ऋषि और पितृ तर्पण विधि) सर्वप्रथम पूर्व दिशाकी और मुँह करके, दाहिना घुटना जमीन पर लगाकर,सव्य होकर(जनेऊ व अंगोछेको बांया कंधे पर रखें) गायत्री मंत्रसे शिखा बांध कर, तिलक लगाकर,

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पितरों को भोजन कैसे मिलता है?

30 सितम्बर 2023
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पितरों को भोजन कैसे मिलता है ?         प्राय: कुछ लोग यह शंका करते हैं कि श्राद्ध में समर्पित की गईं वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती है?   कर्मों की भिन्नता के कारण मरने के बाद गतियां भी भिन्न-

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ग्रहों से रोग और उपाय -परिचय

5 अक्टूबर 2023
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ग्रहों से रोग और उपाय -परिचय   हर बीमारी का समबन्ध किसी न किसी ग्रह से है जो आपकी कुंडली में या तो कमजोर है या फिर दुसरे ग्रहों से बुरी तरह प्रभावित है | यहाँ सभी बीमारियों का जिक्र नहीं करूंगा केव

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18 वास्तुशास्त्र के प्रवर्तक आचार्य

10 अक्टूबर 2023
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18 वास्तुशास्त्र के प्रवर्तक आचार्य 18 वास्तुशास्त्र के प्रवर्तक आचार्य  *भृगुरत्रिवसिष्ठश्च विश्वकर्मा मयस्तथा।* *नारदो नग्नजिच्चैव विशालाक्षः पुरन्दर:।।* *ब्रह्माकुमारो नंदीश: शौनको गर्ग एव च।*

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अयोनिज पुत्र देने में कौन से देव समर्थ हैं ?

10 अक्टूबर 2023
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🌀अयोनिज पुत्र देने में कौन से देव समर्थ हैं ?🌀 " किन्तु  देवेश्वरो  रूद्रः  प्रसीदति  यदिश्वरः।  न दुर्लभो  मृत्युहीनस्तव  पुत्रो ह्ययोनिजः।।  मया च विष्णुना चैव ब्रह्मणा च महात्मना ।  अयो

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पूजा करते समय ध्यान रखें

12 अक्टूबर 2023
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!!अति महत्वपूर्ण बातें पूजा से जुड़ी हुई!! 1= जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। मन में चलना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं। 2=  जप करते समय दाहिने हाथ

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शनैश्चरी सर्वपितृ अमावस्या विशेष

14 अक्टूबर 2023
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शनैश्चरी सर्वपितृ अमावस्या विशेष 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ शनिवार, 14 अक्टूबर को आश्विम मास की अमावस्या तिथि है। इस दिन पितृ पक्ष समाप्त हो जाएगा। इसे सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या कहा जाता है। अगले दिन यानी

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श्राद्ध_में_किस_किस_को_निमन्त्रित_करें

14 अक्टूबर 2023
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#श्राद्ध_में_किस_किस_को_निमन्त्रित_करें?? मातामहं मातुलं च स्वस्रीयं श्वशुरं गुरुम् ! दौहित्रं बिट्पति बन्धु ऋत्विज याज्यौ च भोजयेत !! नाना , मामा , भानजा , गुरु , श्वसुर ,  दौहित्र , जामाता , बान्

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महाकष्ट व महाबाधा निवारक मन्त्र

14 अक्टूबर 2023
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।। महाकष्ट व महाबाधा निवारक मन्त्र ।। कष्ट के अनुसार किसी भी एक या तीनों मन्त्रों की नित्य एक या अधिक माला जप करें, अवश्य ही शांति का अनुभव होगा।  यह मंत्र आपतकाल में कहीं भी, किसी भी समय, सतत ज

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नवरात्री के नौ दिन माँ के अलग-अलग भोग

15 अक्टूबर 2023
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नवरात्री के नौ दिन माँ के अलग-अलग भोग 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸 १👉 प्रथम नवरात्रि पर मां को गाय का शुद्ध घी या फिर सफेद मिठाई अर्पित की जाती है। २👉 दूसरे नवरात्रि के दिन मां को शक्कर का भोग

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इन ९ औषधियों में विराजती है माँ नवदुर्गा

15 अक्टूबर 2023
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👆🏼👆🏼👆🏼 *इन ९ औषधियों में विराजती है माँ नवदुर्गा*  माँ दुर्गा नौ रूपों में अपने भक्तों का कल्याण कर उनके सारे संकट हर लेती हैं। इस बात का जीता जागता प्रमाण है, संसार में उपलब्ध वे औषधियां,

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नारी महिमा

16 अक्टूबर 2023
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।। माता हि जगतां सर्वासु स्त्रीष्वधिष्ठिता ।। स्त्रियों का जीवन कितना त्याग और तपमय है इसे तो कोई भी वर्णित नहीं कर सकता। इसीलिए धर्मशास्त्रों ने भी स्त्री को एक उच्च स्तर पर स्थापित किया है। महिला

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श्रीमंगल चंडिका स्त्रोत

17 अक्टूबर 2023
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श्रीमंगल चंडिका स्त्रोत 〰️〰️🌼〰️🌼〰️〰️ श्रीमंगल चंडिका स्त्रोत के लाभ 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ इस स्तोत्र का पाठ आप मंगलवार दिन आरंभ करें साथ ही भगवान शिव का पंचाक्षरी का एक माला जप करने से अधिक लाभ मिल

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नवरात्र में नवग्रह शांति की विधि

18 अक्टूबर 2023
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नवरात्र में नवग्रह शांति की विधि 〰️〰️🌼〰️🌼🌼〰️🌼〰️〰️ प्रतिपदा के दिन मंगल ग्रह की शांति करानी चाहिए। द्वितीय के दिन राहु ग्रह की शान्ति करने संबन्धी कार्य करने चाहिए। तृतीया के दिन बृहस्पति ग

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51 शक्तिपीठ पौराणिक कथा एवं विवरण

18 अक्टूबर 2023
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51 शक्तिपीठ पौराणिक कथा एवं विवरण 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️            हालांकि देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का ज़िक्र मिलता है, वहीं तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए ग

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दुर्गाष्टमी पूजा एवं कन्या पूजन विधान विशेष

22 अक्टूबर 2023
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दुर्गाष्टमी पूजा एवं कन्या पूजन विधान विशेष 〰〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️ आश्विन शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन माँ दुर्गा के भवानी स्वरूप का व्रत करने का विधान है। इस वर्ष 2023 में यह व्रत 22 अक्टूबर को क

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मनसा देवी की कथा एवं स्तोत्र

23 अक्टूबर 2023
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मनसा देवी की कथा एवं स्तोत्र  इनके नाम-स्मरण से सर्पभय और सर्पविष से मिलती है मुक्ति प्राचीनकाल में जब सृष्टि में नागों का भय हो गया तो उस समय नागों से रक्षा करने के लिए ब्रह्माजी ने अपने मन से

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