।। श्रीरामद्वादशनामस्तोत्रम् ।।
इसका नित्य ७ बार पाठ करने से सभी अरिष्ट का निवारण हो जाता है। द्वादशी अर्धरात्रि में पाठ करने से दरिद्रता समाप्त हो जाती है। ग्रहण में नदी में खड़े होकर पाठ करने से पाठक ब्रह्म लोक गमन करता है।
प्रथमं श्रीधरं विद्याद्द्वितीयं रघुनायकम्।
तृतीयं रामचन्द्रं च चतुर्थं रावणान्तकम्।।१।।
पञ्चमं लोकपूज्यं च षष्ठमं जानकीपतिम्।
सप्तमं वासुदेवं च श्रीरामं चाष्टमं तथा।।२।।
नवमं जलदश्यामं दशमं लक्ष्मणाग्रजम्।
एकादशं च गोविन्दं द्वादशं सेतुबन्धनम्।।३।।
फलश्रुति-
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छ्रद्धयान्वितः।
अर्धरात्रे तु द्वादश्यां कुष्ठदारिद्र्यनाशनम्।।४।।
अरण्ये चैव सङ्ग्रामे अग्नौ भयनिवारणम्।
ब्रह्महत्या सुरापानं गोहत्याऽऽदि निवारणम्।।५।।
सप्तवारं पठेन्नित्यं सर्वारिष्ट निवारणम्।
ग्रहणे च जले स्थित्वा नदीतीरे विशेषतः।
अश्वमेधशतं पुण्यं ब्रह्मलोके गमिष्यति।।६।।
।। इति श्रीस्कन्दपुराणे उत्तरखण्डे श्रीउमामहेश्वर संवादे श्रीराम द्वादशनाम स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
* जय भगवान श्री 'राम' *