1.जन्म कुंडली के अनुसार पेट दर्द के लिए सबसे अधिक शनि ग्रह जिम्मेदार होता है। शनि एक ऐसा ग्रह है जो जातक की कुंडली में अशुभ होते ही, भिन्न-भिन्न प्रकार की परेशानियां देता है।यह ग्रह कुंडली के जिस भाव में जाकर बैठ जाए, और यदि जातक की लग्न राशि के अनुकूल ना हो, तो अशुभ फल देने लगता है। शनि का प्रभाव अधिक तेज नहीं होता, यह धीमी चाल वाला ग्रह है, किंतु इतनी-सी गति पर भी यह ग्रह व्यक्ति के सुख को निचोड़ लेता है।
2.शनि के अलावा सूर्य एवं चंद्र को बदहजमी का कारक माना जाता है। जब सूर्य या चंद्र पर शनि का प्रभाव होता है तो पेट दर्द की शिकायत रहती है। यदि लंबे समय तक शनि के साथ बना यह योग कुंडली में टिक जाए, तो यह बड़ी समस्या उत्पन्न करता है।
3.जन्म कुंडली के अनुसार चंद्र और बृहस्पति को लिवर का कारक माना जाता है। इन दो ग्रहों पर यदि शनि का प्रभाव होता है तो व्यक्ति को लिवर से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं।
4.जन्म कुंडली मे शुक्र के अशुभ फल से गुप्त रोग होते हैं, यदि शुक्र और शनि मिल जाएं तो ये भी पेट संबंधी परेशानियों को जन्म देते हैं।
5.अगर बुध और शनि का मिलन हो जाए और इस पर यदि शनि का अशुभ प्रभाव बनने लगे तो, यह आंतों में परेशानी लाता है। बुध सूर्य के साथ मकर राशि के होते हैं तो मूत्र से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। ये परेशानियां बढ़ जाने पर किडनी तक पहुंच जाती हैं और किडनी में स्टोन या इन्फेक्शन जैसी दिक्कत बनाती हैं।
6.कर्क, वृश्चिक, कुंभ नवांश में शनि चंद्र से युति करता है तो लिवर संबंधी रोग हो सकते हैं।
7.सप्तम भाव में शनि मंगल से युति करे और लग्रस्थ राहु बुध पर दृष्टि डालता है तो डायरिया हो सकता है।
8. मीन या मेष लग्र में शनि तृतीय स्थान में हो तो उदर में दर्द होता है। कुंभ लग्र में शनि चंद्र के साथ युति करे या षष्ठेश एवं चंद्र लग्रेश पर शनि का प्रभाव या पंचम स्थान में शनि की चंद्र से युति प्लीहा रोग कारक है।
9.सिंह राशि में शनि चंद्र की युति या षष्ठम या द्वादश भाव में शनि मंगल से युति करता है या अष्टम भाव में शनि और लग्र में चंद्र हो और शनि पर पापग्रहों की दृष्टि हो तो पेट के रोग होते हैं।
10.शनि के अलावा कुंडली में राहु-केतु जैसे पापी ग्रहों का अशुभ होना भी पेट संबंधी रोग देता है। जन्म कुंडली के लग्न में राहु और सप्तम स्थान में केतु हो तो व्यक्ति को लिवर में इन्फेक्शन हो सकता है।
11.द्वितीय भाव में शनि होने पर डायरिया हो सकता है। इस रोग में पेट की गैस अनियंत्रित होने से भोजन बिना पचे ही शरीर से मल रूप में बाहर निकल जाता हैं।
12.अगर जातक की कुंडली कुंभ लग्न की है और प्रथम भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति हमेशा एसिडिटी, बदहजमी और पेट में तनाव से परेशान रहता है।
13.जन्म कुंडली के बारहवें भाव में सिंह राशि में केतु और शनि हो तो बवासीर की समस्या या गुदा रोग हो सकता है। सिंह एक मजबूत राशि है, इसलिए यह योग काफी तेजी से असर दिखाता है।