#श्राद्ध_में_किस_किस_को_निमन्त्रित_करें??
मातामहं मातुलं च स्वस्रीयं श्वशुरं गुरुम् !
दौहित्रं बिट्पति बन्धु ऋत्विज याज्यौ च भोजयेत !!
नाना , मामा , भानजा , गुरु , श्वसुर , दौहित्र , जामाता , बान्धव , ब्राह्मण तथा यज्ञकर्ता इन दसों को श्राद्ध में भोजन कराना चाहिए!!
जो श्राद्धकाल आने पर भी काम , क्रोध अथवा भय से पांच कोष के भीतर रहने वाले दामाद , भानजे तथा बहन को नहीं बुलाते और सदा दूसरों को ही भोजन कराते हैं उसके श्राद्ध में पितर और देवता अन्न ग्रहण नहीं करते!!
नाश्नन्ति तस्य वै गेहे पितरो विप्रवर्जिता:!
शापं दत्वा ततो यान्ति श्राद्धाद्विप्रं विवर्जितात् !
महापापी भवेत्सोऽपि ब्रह्महा स च कथ्यते !!
श्राद्ध के अवसर पर ब्राह्मण को निमंत्रित करना परम आवश्यक है, जो बिना ब्राह्मण के श्राद्ध करता है उसके घर पर पितर भोजन नहीं करते तथा शाप देकर लौट जाते हैं ब्राह्मणहीन श्राद्ध करने से मनुष्य महापापी होता है !!
द्वौ दैवे पितृकार्ये त्रीनेकैकमुभयत्र वा ।
भोजयेत्सुसमृद्धोअपि न प्रसज्जेत विस्तरे ।।
देव कार्य में दो और पितृकार्य में तीन अथवा दोनों में एक एक ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए अत्यंत धनी होने पर भी श्राद्धकर्म में अधिक विस्तार नहीं करना चाहिए!!
यस्य मित्रप्रधानानि श्राद्धानि च हवीन्षि च ।
न प्रीणन्ति पितृन् देवान् स्वर्गं च न स गच्छति ।।
यश्च श्राद्धे कुरुते संगतानि न देवयानेन पथा स याति ।सवैमुक्तःपिप्पलं बंधनाद् वा स्वर्गाल्लोकाच्च्यवते श्राद्धमित्रः
।। तस्मान्मित्रं श्राद्धकृन्नाद्रियेत दद्यान्मित्रेभ्यः संग्रहार्थं धनानि ।
यन्मन्यते नैव शत्रून्नमित्रं तं मध्यस्थं भोजयेत्हव्यकव्ये ।।
जिसके श्राद्ध के भोजन में मित्रों की प्रधानता रहती है उस श्राद्ध व हविष्य से पितर व देवता तृप्त नहीं होते जो श्राद्ध में भोजन देकर उससे मित्रता का संबंध जोड़ता है अर्थात श्राद्ध को मित्रता का साधन बनाता है वह स्वर्ग लोक से भ्रष्ट हो जाता है इसलिए श्राद्ध में मित्र को निमंत्रण नहीं देना चाहिए मित्रों को संतुष्ट करने के लिए धन देना उचित है !!
>> श्राद्ध में भोजन तो उसे ही कराना चाहिए जो शत्रु या मित्र ना होकर मध्यस्थ हो!!
आयु: पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्!
पशुन् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्!!