ध्यान पूर्वक जानकारी लें -
क्या श्राद्ध में सन्यासियों को भोजन करा सकते हैं??
नहीं श्राद्धमें सन्यासियोंको निमंत्रित नहीं करना चाहिए।।
*#प्रमाण—
*#मुण्डान्_जटिलकाषायान्_श्राद्धे_यत्नेन_वर्जयेत्।*
*#पूर्वपक्ष (प्रश्न)—
हमने सुना है कि श्राद्धमें यतियों/सन्यासियोंको निमंत्रित करना चाहिए, उसका शास्त्रोंमें फल भी लिखा है देखिए—
*#एके_यतीन्_निमन्त्रयन्ति ।
(कात्यायनप्रणीत पारस्कर श्राद्धपरिशिष्ट सूत्र)
तदुक्तम्-
*सम्पूजयेद्यतिं श्राद्धे पितॄणां पुष्टिकारकम् ।
*ब्रह्मचारी यतिश्चैव पूजनीयो हि नित्यशः।।
*तत्कृतं सुकृतं यत्स्यात्तस्य षड्भागमाप्नुयात् ।
#मार्कण्डेयोऽपि - *भिक्षार्थमागतान्वाऽपि काले संयमिनो यतीन् ।*
*भोजयेत्प्रणताद्यैस्तु प्रसादोद्यतमानसः ।।
इति।
*#उत्तरपक्ष (समाधान)—
यतिस्तु= त्रिदण्डी।
एकदण्डिनां श्राद्धे निरस्तत्वात् ।
तथाहि —
*मुण्डान् जटिलकाषायान् श्राद्धे यत्नेन वर्जयेत् ।
*शिखिभ्यो धातुरक्तेभ्यस्त्रिदण्डिभ्यः प्रदापयेत् ।।
(गदाधरकृत_श्राद्धसूत्र_भाष्ये)
*#अर्थ—* जहां श्राद्धसंबंधी शास्त्रवचनोंमें यति/सन्यासियोंका ग्रहण किया गया है वहां यतिका अर्थ है त्रिदंडी सन्यासी।
क्योंकि एकदंडी- मुंडितशिर, काषायवस्त्र धारी सन्यासियोंका श्राद्धमें निषेध है।
त्रिदंडी,शिखाधारी,सन्यासियोंको श्राद्धमें निमंत्रित किया जा सकता है।
१ #श्राद्धमें_द्विर्नग्न (#दोबार_नंगा)#का_निषेध—
*यस्य वेदश्च वेदी च विच्छिद्येत त्रिपूरुषम्।
*द्विर्नग्न: स तु विज्ञेयः श्राद्धकर्मणि निन्दितः।।
(गदाधरकृत_श्राद्धसूत्र_भाष्ये)
#अर्थ—* जिन द्विजातियोंके परिवारमें तीन पीढ़ीसे न वेद पढ़नेकी परंपरा है और ना ही अग्निहोत्र करने की, तो उन्हें शास्त्रोंमें द्विर्नग्न/ दोनों प्रकारसे नंगा कहा गया है। ऐसे ब्राह्मण श्राद्धमें निन्दित कहे गए हैं।
*२ #श्राद्धकर्ताके_नियम—
*दन्तधावनताम्बूलं स्नेहस्नानमभोजनम्।*
*रत्यौषधं परान्नं च श्राद्धकृत् सप्त वर्जयेत्।।*
(व्याघ्रपादस्मृति:-155)
*#अर्थ—*
1 दंतधावन करना
2 तांबूल/ तंबाकू खाना
3 तेलमर्दन पूर्वक स्नानकरना
4 उपवास करना
5 स्त्री संभोग करना
6 औषधि खाना
7 परान्नभक्षण/ दूसरेका भोजन करना
ये सब 7कार्य श्राद्धकर्ताको श्राद्ध वाले दिन नहीं करना चाहिए।
*श्राद्धं कृत्वा परश्राद्धे योऽश्नीयाज्ज्ञानवर्जित:।*
*दातु: श्राद्धफलं नास्ति भोक्ता किल्बिषभुग्भवेत्।।*
(स्कन्दपुराण_ब्रह्म_धर्मा.6/65)
*३ #श्राद्धमें_तन्तधावनका_प्रायश्चित्त—*
*श्राद्धोपवासदिवसे खादित्वा दन्तधावनम्।* *गायत्रीशतसम्पूतमम्बु प्राश्य विशुध्यति।।*
(विष्णुरहस्ये)
*#अर्थ—* श्राद्धवाले दिन या उपवास वाले दिन यदि कोई वृक्षकी दातुन करता है तो उसे 100 बार गायत्री मंत्रसे अभिमंत्रित जलपीना चाहिए तभी वह शुद्ध होता है।
*४ #श्राद्धकर्कताके_द्वारा_नियमोंका_पालन_न_करनेपर_दोष—*
*आमन्त्रितस्तु यः श्राद्धे अध्वानम्प्रतिपद्यते।*
*भ्रमन्ति पितरस्तस्य तं मासं पांसुभोजिनः।।*
(यमः)
*अध्वनीनो भवेदश्वःपुनर्भोजी तु वायसः।।*
*होमकृन्नेत्ररोगी स्यात्पाठादायुः प्रहीयते।।*
*दानान्निष्फलतामेति प्रतिग्राही दरिद्रताम्।*
*कर्मकृज्जायते दासो मैथुनी शूकरो भवेत्।।*
(याज्ञवल्क्य:)
*#अर्थ—*
श्राद्ध करके...
यात्राकरने वाला- घोड़ा होता है दोबारा खानेवाला- कौआ बनता है
हवन करने वाला- नेत्ररोगी होता है
अध्ययन करने वाला- आयुहीन होता है
दान देने वाला- फलसे रहित होता है
दान लेने वाला- दरिद्र होता है अन्यकार्य करनेवाला- दास बनता है
मैथुन करने वाला- शूकर होता है।
इसलिए ये सब कार्य श्राद्ध वाले दिन नहीं करना चाहिए।
*५ #श्राद्धकर्ताके_नियमोंका_प्रतिप्रसव—*
तीर्थश्राद्ध करनेके बाद— यात्रा और उपवास कर सकते हैं।
गर्भाधाननिमित्तक वृद्धिश्राद्धके बाद— मैथुन करने में दोष नहीं है ।
अग्निहोत्रके निमित्तश्राद्धके बाद— होम हो सकता है ।
अपने दूसरे विवाहमें जहां नांदीश्राद्ध करनेका वरको ही अधिकार है ऐसा वृद्धिश्राद्ध करनेके बाद— कन्या प्रतिग्रह करनेमें दोष नहीं है।
कन्यादानके निमित्त नांदीश्राद्धके बाद— कन्यादान हो सकता है ।
तीर्थयात्रा आरंभ और समाप्तिपर श्राद्धके बाद— यात्रा हो सकती है, उसमें दोष नहीं है।
*६ #श्राद्धभोक्ताके_नियम—*
*पुनर्भोजनमध्वानं भाराध्ययनमैथुनम्।*
*दानं प्रतिग्रहो होम: श्राद्धभुगष्ट वर्जयेत्।।*
(व्याघ्रपादस्मृति-156)
*#अर्थ—*
1 दुबारा भोजन करना
2 यात्रा करना
3 भार ढोना
4 परिश्रम करना
5 मिथुन /स्त्री संभोग करना
6 दान देना
7 दान लेना
8 हवन करना
ये 8 कार्य श्राद्धान्न भोजन करने वालेको नहीं करना चाहिए।
*७ #श्राद्धमें_भोजन_करने_व_करानेके_नियम—*
• श्राद्धमें पधारे हुए ब्राह्मणोंको कुर्सी आदि पर बिठाकर पैर धोना चाहिए।
खड़े होकर पैर धोनेपर पितर निराश होकर चले जाते हैं।
पत्नी को दायिनी और खड़ा करना चाहिए ।
उसे पतिके बाएं रहकर जल नहीं गिराना चाहिए, अन्यथा वह श्राद्ध आसुरी हो जाता है और पितरोंको प्राप्त नहीं होता।
(#स्मृत्यन्तर)
*यावदुष्णं भवत्यन्नं यावदश्नन्ति वाग्यता:।*
*पितरस्तावदश्नान्ति यावन्नोक्ता हविर्गुणा:।।*
(मनुस्मृति- 3/237)
*#अर्थ—*
• जब तक श्राद्धान्न गर्म रहता है।
जब तक ब्राह्मण लोग मौन होकर भोजन करते हैं।
जब तक वे भोज्य पदार्थोंके गुणोंका वर्णन नहीं करते।
तभी तक पितर लोग भोजन करते हैं अर्थात् ये नियम भंग होने पर पितर भोजन करना बंद कर देते हैं।
इसलिए श्राद्धमें भोजनके समय मौन रहना चाहिए।
मांगने या प्रतिषेध करनेका संकेत हाथ से ही करना चाहिए।
(#श्राद्धदीपिकायाम्)
• भोजन करते समय ब्राह्मणसे अन्न कैसा है, यह नहीं पूछना चाहिए
तथा भोजनकर्ताको भी श्राद्धान्नकी प्रशंसा या निंदा नहीं करनी चाहिए।
• श्राद्धके निमित्त जो भी भोजन पदार्थ बने हैं उन सभीको प्रथम बारमें ही रख देना चाहिए, कुछ भी पदार्थ छूटना नहीं चाहिए, यदि कुछ छूट जाए या नमक आदि भी जो पहले नहीं रखा था उसे मध्यमें नहीं देना चाहिए जो पहले नहीं दिया था, परन्तु जो पहले भोजन थालीमें परोस दिया है उन पदार्थोंको तो दोबारा तिबारा परोसते रहना चाहिए।
• श्राद्धभोजन करते समय भोजन विधिमें बताई गई चित्राहुति भी नहीं देना चाहिए।
• श्राद्ध भोजनके बाद ब्राह्मणोंके जूठे पात्रोंको स्त्रियोंको नहीं हटाना चाहिए, पुरुषोंको ही वहांसे हटाकर प्रक्षालनस्थानपर रखना चाहिए—
*न स्त्री प्रचालयेत्तानि ज्ञानहीनो न चाव्रत:।*
*स्वयं पुत्रोऽथवा यस्य वाञ्छेदभ्युदयं परम् ॥*
(स्कन्दपुराण_प्रभास-206/42)
• श्राद्धमें ब्राह्मण भोजनके अनंतर ब्राह्मणको तिलककर तांबूल तथा वस्त्रादि दक्षिणा प्रदान करें
और ब्राह्मणदेवकी चार परिक्रमा कर प्रणाम करें ।
• एवं अंतमें—
*#शेषान्नं_किं_कर्तव्यंम्।* (बचे हुए अन्नका क्या किया जाए) इस प्रकार ब्राह्मणसे पूछे ।
ब्राह्मण उत्तरमें कहे—
*#इष्टैः_सह_भोक्तव्यम्।*
(अपने इष्ट जनोंके साथ भोजन करें)
फिर ब्राह्मणकी विदाई करने अपने घरसे बाहर किसी देवालय या जलाशय तक ब्राह्मणको छोड़ने जाए
उसके बाद श्रद्धाङ्ग तर्पण करें।
फिर हरिस्मरणपूर्वक श्राद्धकर्मको पितृस्वरूपी जनार्दन वासुदेवको समर्पित कर दें!!