तृतीया तिथि का आध्यात्मिक एवं ज्योतिषीय महत्त्व
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भारतीय ज्योतिषीय गणना के अनुसार
तृतीया तिथि आरोग्यदायिनी होती है एवं इसे सबला नाम से भी जाना जाता है।
इसकी स्वामिनी माँ गौरी है। इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति का माता गौरी की पूजा करना कल्याणकारी रहता है। इस तिथि को जया तिथि के अन्तर्गत रखा गया है। अपने नाम के अनुरुप ये तिथि कार्यों में विजय प्रदान कराने वाली होती है। ऐसे में इस तिथि के दिन किसी पर या किसी काम में आपको जीत हासिल करनी हो तो उसके लिए इस तिथि का चयन बेहद अनुकूल माना जा सकता है। इस तिथि में सैन्य, शक्ति संग्रह, कोर्ट-कचहरी के मामले निपटाना, शस्त्र खरीदना, वाहन खरीदना जैसे काम करना अच्छा माना जाता है।
तृतीया में वार तिथि का योग
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तिथियों से सुयोग, कुयोग, शुभ-अशुभ मुहूर्त का निर्माण होता है। तृतीया तिथि बुधवार के दिन हो तो मृत्यु योग बनता है। यह योग चन्द्र के दोनों पक्षों में बनता है। इसके अतिरिक्त किसी भी पक्ष में मंगलवार के दिन तृतीया तिथि हो तो सिद्ध योग बनाता है। इस योग में सभी कार्य करने शुभ होते है। बुधवार के साथ मिलकर यह तिथि दग्ध योग बनाती है। दग्ध योग में सभी शुभ कार्य करने वर्जित होते है। तृतीया तिथि में शिव पूजन निषिद्ध होता है दोनों पक्षों की तृतीया तिथि में भगवान शिव का पूजन नहीं करना चाहिए। यह माना जाता है, कि इस तिथि में भगवान शिव क्रीडा कर रहे होते है।
तृतीया तिथि में शिल्पकला अथवा शिल्प संबंधी अन्य कार्यों में, सीमन्तोनयन, चूडा़कर्म, अन्नप्राशन, गृह प्रवेश, विवाह, राज-संबंधी कार्य, उपनयन आदि शुभ कार्य सम्पन्न किए जा सकते हैं।
तृतीया तिथि में जन्मे व्यक्ति के गुण
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जिस व्यक्ति का जन्म तृतीया तिथि में हुआ हो, वह व्यक्ति सफलता के लिए प्रयासरहित होता है। मेहनत न करने के कारण उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है तथा ऎसा व्यक्ति दूसरों से द्वेष रखने वाला होता है। जातक कुछ आलसी प्रवृत्ति का भी हो सकता है। कई बार अपने ही प्रयासों की कमी के कारण मिलने वाले लाभ को पाने से भी वंचित रह जाता है।
इस तिथि में जन्मा जातक अपने विचारों पर बहुत अधिक नहीं टिक पाता है। किसी न किसी कारण से मन में बदलाव लगा ही रहता है। ऎसे में जातक को यदि किसी ऎसे व्यक्ति का साथ मिल पाता है जो उसे सही गलत के प्रति सजग कर सके तो जातक जीवन में सफलता पा सकने में सक्षम हो सकता है।
आर्थिक क्षेत्र में संघर्ष बना रहता है, इसका मुख्य कारण जातक की दूसरों पर अत्यधिक निर्भरता होना भी होता है। वह स्वयं बहुत अधिक संघर्ष की कोशिश नहीं करता आसान रास्ते खोजता है। ऎसे में कई बार कम चीजों पर भी निर्भर रहना सिख जाता है। जातक को घूमने फिरने का शौक कम ही होता है। जातक एक सफल प्रेमी होता है। अपने परिवार के प्रति भी लगाव रखता है।
तृतीया तिथि के पर्व
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तृतीया तिथि समय भी बहुत से पर्व मनाए जाते हैं। कज्जली तृतीया, गौरी तृतीया (हरितालिका तृतीया), सौभाग्य सुंदरी इत्यादि बहुत से व्रत और पर्वों का आयोजन किसी न किसी माह की तृतीया तिथि के दिन संपन्न होता है। तृतीया तिथि के दिन मनाए जाने वाले कुछ मुख्य त्यौहार इस प्रकार हैं।
अक्षय तृतीया 👉 वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती के रुप में मना जाता है। इस दिन को एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुहूर्त के रुप में भी मान्यता प्राप्त है. इसी कारण इस दिन बिना मुहूर्त निकाले विवाह, गृह प्रवेश इत्यादि शुभ मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं. इसके साथ ही इस दिन स्नान, दान, जप, होम आदि करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है।
गणगौर तृतीया 👉 चैत्र शुक्ल तृतीया को किया जाता है। यह त्यौहार मुख्य रुप से सौभाग्य की कामना के लिए किया जाता है। इस दिन विवाहित स्त्रियां पति की मंगल कामना के लिए व्रत भी रखते हैं। इस दिन भगवान शिव-पार्वती की मूर्तियों को स्थापित करके पूजन किया जाता है। इस दिन देवी-देवताओं को झूले में झुलाने का भी विधि-विधान रहा है।
केदारनाथ बद्रीनाथ यात्रा का आरंभ 👉
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन ही गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदीनाथ यात्रा का आरंभ हो जाता है। इस दिन केदारनाथ और बदीनाथ मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और चारधाम की यात्रा का आरंभ होता है।
रम्भा तृतीया 👉 ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया के दिन रम्भा तृतीया मनाई जाती है इसे रंभा तीज व्रत भी कहते हैं। इस दिन व्रत और पूजन विवाहित स्त्रीयां अपने पति की लम्बी आयु और संतान प्राप्ति एवं संतान के सुख हेतु करती हैं। अविवाहित कन्याएं योग्य जीवन साथी को पाने की इच्छा से ये व्रत करती हैं।
तीज 👉 श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज उत्सव मनाया जाता है। तीज के समय प्रकृति में भी सुंदर छठा दिखाई देती है। इस त्यौहार में पेड़ों पर झूले डाले जाते हैं और झूले जाते हैं। महिलाएं इस दिन विशेष रुप से व्रत रखती हैं। इसे हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है
वराह जयंती👉 भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को वाराह जयंती के रुप में मनाई जाती है। भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक है वराह अवतार। वाराह अवतार में भगवान विष्णु पृथ्वी को बचाते हैं. हरिण्याक्ष का वध करने हेतु भगवान श्री विष्णु वराह अवतार के रूप में प्रकट होते हैं।
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