आवारा मन की आवाज़....!
आवारा मन की आवाज़....!_______________________________मैं आवारा हूँ, ये आवारा मन की आवाज़ हैकालकोठरी से भागा, जैसे ये सोया साज़ हैदिशाहीन कोरे पन्नों सा, आसमान का बिखरा तारातपोभ्रष्ट का हूँ मैं मनीषी, घूमूँ बनके बंजाराडूबा खारे सागर में, तट की रेतों से डरा-डराजुड़-जुड़ के भी टूट रहा, लहरों से मैं घिर