थम जाये पहिया समय का....!
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बोल दो प्रिये कुछ मधुर सा
कि थम जाये पहिया समय का
साँसों में सरगम भर जाती हो हरपल
धड़कन में वीणा बजाती हो हर क्षण
पलकों तले आके गुनगुनाती हो हरदम
वो स्वप्न-गीत गा दो मधुर सा
कि थम जाये पहिया समय का
बोल दो प्रिये कुछ मधुर सा
कि थम जाये पहिया समय का
वाणी में मधु गंध भरके
छंदों का श्रृंगार करके
अधरों को खोल दो तुम
शब्द में बहार भरके
जम ही गया हूँ पाषाण सा मैं
तुम बूँद बनके धार बहा दो
राग सुना दो मधुर सा
कि थम जाए पहिया समय का
बोल दो प्रिये कुछ मधुर सा
कि थम जाये पहिया समय का
फूल सुगंधा, रजनीगंधा
कुछ-कुछ छुई-मुई सी
तारों का गुलशन, अम्बर की चंदा
रजनी की तू चाँदनी सी
साकी सी चहके मयखानों में
हाला को भरके पैमानों में
मदिरा पिला दो जरा सा
कि थम जाये पहिया समय का
बोल दो प्रिये कुछ मधुर सा
कि थम जाये पहिया समय का
नैनों में नैनों को को खोने जरा दो
सपनों में प्राणों को सोने जरा दो
कजरा लहके गजरा महके
कुंदन सा तेरा तन दहके
भूचालों सा मन ये बहके
प्रेम के तालों पे तन मेरा थिरके
सुर तुम सजा दो मधुर सा
कि थम जाये पहिया समय का
बोल दो प्रिये कुछ मधुर सा
कि थम जाये पहिया समय का
—कुँवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह
*यह मेरी स्वरचित रचना है |