आँगन में एक पेड़ चाँदनी....!
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आँगन में एक पेड़ चाँदनी, सात सितारे टंके हुए
सिंदूरी शामों की पलकें, रातों को यूँ ढ़ंँके हुए
केसर रंगे हुए शीशों में, मरमरी यूं बिखर रही
कस्तूरी सांँसो की खुशबू, बहार चंपई झूम रही
महक उठी आंँगन के द्वारे, चंदा उसकी बाट निहारे
आँगन में एक पेड़ चाँदनी, सात सितारे टंके हुए
सिंदूरी शामों की पलकें, रातों को यूँ ढ़ंँके हुए
अधखुली कजरारी पलकें, शबनम फूल भरे हुए
अंग है उसके धवल बरन से, शूल यूँ कुछ उगे हुए
मिठास चेहरा पलछिन बरखा, प्रेम–रस यूं घुमड़ रहे
मादक टहनी गात–पात पर, बसंती आँचल उलझ रहे
पुष्पप्रिया की गंध बांँसुरी, मनचली सी हवा चले
आँगन में एक पेड़ चाँदनी, सात सितारे टंके हुए
सिंदूरी शामों की पलकें, रातों को यूँ ढ़ंँके हुए
रसवंती रातों की फिजाएं, ऊँघती जिसमें सारी दिशाएं
रतनारे सपनों में डूबे, कुनमुने से चाँद सितारे
ओस में भीगी चंचल कलिका, उनींदी पलकों की मलिका
भादों सी बोझिल पलकों में, रजनी भी यूँ डूब गई
सागर इंद्रधनुष यादों में, मन की हथेली डूब गई
आँगन में एक पेड़ चाँदनी, सात सितारे टंके हुए
सिंदूरी शामों की पलकें, रातों को यूँ ढ़ंँके हुए
–कुंवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह
–यह मेरी स्वरचित रचना है।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)