चलो प्रिये तुमको मैं, संगीत के क्षण तक ले चलूं रूप में भीगे तेरे मन को, मैं गीत के मन तक ले चलूं
जीवन रूप बदल दूं तेरा, बदलूं मैं अंबर ये चितेरा
धरा मैं बदलूं, सागर बदलूं, बदलूं मैं सूरज का सवेरा
खिलती किरणों पर बैठाकर नील गगन तक ले चलूं
चलो प्रिये तुमको मैं..........
बदली बरसी मगर थम गई, प्रीत निगोड़ी मन में रम गई
खुशबू चुनमुन घटा में नम गई, बैरन पुरवाई भी थम गई
कंवल की पंखुरियों पे बिठाकर, सुरभि पवन तक ले चलूं
चलो प्रिये तुमको मैं..........
तेरे आंचल में बहकाया, खुद को खोकर तुझको पाया
मेरे प्रीत की तू है छाया, मेरा जो कुछ हुआ पराया
मुंदती सी पलकों पर बिठाकर,धनक सपन तक ले चलूं
चलो प्रिये तुमको मैं..........
सर्वेंद विक्रम सिंह
यह मेरी स्वरचित रचना है
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