तेरी यादों ने आज बादल बनकर, मुझको फिर घेरा
सर्द बूंदों सी आहों में जल रहा, दिल ये फिर मेरा
भरा था तुमने जो रंग मेरे, इन कोरे से पन्नों में
भरी थी कुछ सुवास मेरे, इन फीके से गन्नों में
वो लाल रंग कागज का, लहू अब बन गया मेरा
तेरी यादों ने०........
चांदनी रात भी अब तो, तेरी छाया सी लगती है
ये शीतल सी हवा भी अब, हृदय में ज्वाला भरती है
ये जीवन विष कि मदिरा मैं, निरंतर पीता रहता हूं
नशे के दहले अंतर्मन में, दावानल सा जीता हूं
मेरे चारों तरफ निज असफल, स्तूप का घेरा
तेरी यादों ने०........
पाया तुझको जब मैने, था तब प्यार को जाना
तुझको खोकर मैंने अब, सितमगर दर्द पहचाना
नहीं वो दिन न वो रातें, वो ऋतुओं का बदल जाना
ये गुल–गुलशन हैं सब सूखे, असंभव उनका खिल पाना
मेरे जीवन में नीरस धौंकती, सांसों का है डेरा
तेरी यादों ने०........
सर्वेंद विक्रम सिंह
यह मेरी स्वरचित रचना है
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