तेरे प्यार के राहों के पथ में, मैं स्वर के दीप जलाएं हैं
महकी–महकी निश रजनी में, मैं पूनम चांद उगाएं हैं
मैं टूटा तारा भोर प्रहर, खिलती मुस्कानें मेरे अधर
अपनी मुस्कानों को देकर, उपवन में सुमन खिलाएं हैं
तेरे प्यार के राहों के पथ में०.....
तेरे अंगों में बिखरे चंदन, सांसों में उतरा है मधुबन
इन पलकों पलते प्रीत सपन, तेरे नैनों ने बांधे बंधन
कुछ सपनों ने रच-रच करके, गीतों के ग्रंथ सजाएं हैं
तेरे प्यार के राहों के पथ में०.....
तू सुर्ख कली ढक ओस वसन सूरज बरसाए रश्मि किरण
मदमाया पवन एक शोख तरण,सागर करता सरिता का वरण,
धनकों ने जयमाला है गुनी, फेरों ने भंवर घुमाएं हैं
तेरे प्यार के राहों के पथ में०.....
छलकाता सदा तुझको सावन, यह चितवन रूप लगे भावन
उगती सी उषा तेरा दरपन, ये यौवन धूप तपा कंचन
कुछ स्वर्णिम स्पर्शों को पकड़, मैंने अपनी पाँख दबाएं हैं
तेरे प्यार के राहों के पथ में०.....
सर्वेंद विक्रम सिंह
यह मेरी स्वरचित रचना है
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