shabd-logo

लकीर के फकीर

18 जून 2016

293 बार देखा गया 293
featured image

मन की गति बहुत तेज है। पलक झपकते इधर-उधर घूम आता है। कभी इधर जाता है तो कभी किधर जाता है। मन की गति पर लगाम लगाना ही मन को एकाग्र करना है। जो लगाम लगा लेते हैं वे ही कुछ हटकर करते हैं, बाकी सब तो लकीर के फकीर हैं उनका काम रोज की दिनचर्या पूरा करके सो जाना है और अगले दिन नित्य कर्म से निपटकर पुनः दिनचर्या को समाप्त करके सो जाना है, उनका यह क्रम आजीवन रहता है।

8
रचनाएँ
mannansutra
0.0
मनन सूत्र के अन्तर्गत जीवनोपयोगी ज्ञान से परिपूर्ण सूक्तियों की चर्चा करेंगे!
1

मृत्यु

26 मई 2016
0
5
1

मृत्यु सार्वभौमिक सत्य है!- ज्ञानेश्वर  काल किसी को नहीं छोड़ता यह सबको मृत्यु के द्वारा वश में कर लेता है!- ज्ञानेश्वरजो बनता है वह बिगड़ता अवश्य है इसीलिए मृत्यु निश्चित है!- ज्ञानेश्वर  जब आप यह समझ जाते हैं कि मृत्यु सत्य है तो आपको इससे भय नहीं लगता है!- ज्ञानेश्वर  मृत्यु का भय उनको सताता है ज

2

संशय

15 जून 2016
0
2
0

जीवन में आने वाले सभी संशय ज्ञान के द्वारा ही दूर होते हैं। बिल्कुल उसी तरह जिस प्रकार प्रकाश से अंधेरा दूर हो जाता है उसी प्रकार ज्ञान से संशय मिट जाते हैं।

3

प्रेम के रूप

15 जून 2016
0
2
0

प्रेम में एक अनोखी शक्ति होती है जो प्रत्येक रिश्ते के साथ अपना एक अलग भाव उजागर करती है। मां के रूप में ममता, पिता के रूप पितृत्व, बहन के रूप में  स्नेह,  भाई के  रूप में  बन्धुत्व,  मित्र के रूप  में सहयोग और  पत्नी के रूप में पूर्ण  समर्पण का भाव उजागर  करती है।  स्त्री की महानता  इसी  में  है  क

4

लकीर के फकीर

18 जून 2016
0
5
0

मन की गति बहुत तेज है। पलक झपकते इधर-उधर घूम आता है। कभी इधर जाता है तो कभी किधर जाता है। मन की गति पर लगाम लगाना ही मन को एकाग्र करना है। जो लगाम लगा लेते हैं वे ही कुछ हटकर करते हैं, बाकी सब तो लकीर के फकीर हैं उनका काम रोज की दिनचर्या पूरा करके सो जाना है और अगले दिन नित्य कर्म से निपटकर पुनः दिन

5

सहयोग

18 जून 2016
0
3
0

जब स्वयं को सहयोग चाहिए होता है तो हम सहयोग पाने के लिए तत्पर रहते हैं और किसी न किसी प्रकार पा लेते हैं। जब दूजा सहयोग मांगता है तो हम कन्नी काटते हैं। हमें सीधी सी बात यह समझ नहीं आती है कि सहयोग देने वाले को ही सहयोग मिलता है।

6

जीवन और भाग्य

21 जून 2016
0
3
0

जीवन तभी आपके अनुकूल बनता है जब आप उसे अपने अनुसार बनाने का प्रयास करते हैं और इसी प्रकार भाग्य तभी फलीभूत होता है जब आप कर्म करते हैं!-ज्ञानेश्वर   

7

आलोचना

22 जून 2016
0
5
0

जिनका संकल्प दृढ़ है वे आलोचनाओं की परवाह नहीं करते हैं।निर्मल मन वाले ही आलोचनाअों से घबराकर घुटने टेक देते हैं।आलोचना से एक नई राह ही प्राप्त होती है जिससे राह के कंटक दूर हो जाते हैं। आलोचना से छिपे हुए दुर्गण उभर आते हैं। जो आलोचना से बिना डरे अडिग रहते हैं वे अपना लक्ष्य पा लेते हैं।

8

विवेकी

25 जून 2016
0
2
0

ज्ञान से बुद्धि विवेक सम्मत बनती है और व्यक्ति विवेकी बन जाता है। विवेकी हर परिस्थिति में नीरक्षीरविवेक की स्थिति में रहता है और सदैव सही सलाह देता है और उसकी सलाह निष्पक्ष और उन्नति कारक होती है जो जीवन निखारती है।

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए