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लव सेंस

18 अगस्त 2022

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यह कहानी समाज में हो रहे बदलाव पर आधार बिंदुओं को चिंहीत करता हैं। कहानी का फैक्ट मुल बिंदु से अलग है, कहानी के मुख्य पात्र में भिन्नता हैं ,सौरभ जो कि स्वभाव से प्रेक्टिकल हैं। वो चाहता हैं कि जो लड़की उससे प्यार करें, वो उसकी ताबेदार हो, उसके हर एक नखरे, इशारे को मूक हो कर अनुसरण करें। लेकिन दूसरी तरफ सौम्या चाहती हैं कि वो जिससे प्यार करें, वो बस उसके जुल्फों में खोया रहें, उसकी गुलामी करें, रात के वो पल जो सिर्फ बेडरूम तक रहते हैं, उसके अलावा उससे कोई मतलब ना रखें।
                                                   दोनों का प्यार परवान चढने बाला ही होता हैं, दोनों ही लिव इन रिलेशनशिप  में साथ रहते हैं, पर जब दोनों के अहम आपस में टकराते है, तो दोनों के जिन्दगी में इक हलचल सा उठता हैं और वो हलचल इस प्रकार विकृत होने लगता हैं कि लगता हैं, अपने साथ सब कुछ बहा कर ले जाएगा दूर कहीं।
                            
                                                        आभार
                                            मदन मोहन(मैत्रेय)
सुबह की पहली किरण ने धरती के आँचल पर पहला कदम रखा।
किरण के रक्तिम आभा से सज कर धरती नाच उठी ,चिड़ियों के प्रभात कलरव से दिशाएँ गुंजायमान हो उठी, लेकिन प्रकृति के उन्मत सुगन्ध ने भी मानो सौरभ पर कोई प्रभाव नहीं डाला, वो अपने बंगले के विशाल गार्डेण में बांस की बुनी हुई चेयर पर बैठा विचारो में खोया हुआ था। आँखें शून्य में टिकी हुई थी, ऐसा नहीं है कि वो सामान्य व्यक्तित्व का स्वामी था, आकर्षक चेहरा, शौष्ठब से कसा हुआ शरीर और नीली आँखें, उसपर घुंघराले बाल उसकी सुन्दरता में चार चाँद लगाते थे, कुल मिला कर अगर कहा जाए कि वो किसी का भी ध्यान अपनी ओर खींच ले तो अतिस्योक्ति नहीं होगा। उम्र यही बाईस शाल
  के  करीब।
                    सौरभ शांडिल्य वैभव शांडिल्य के पुत्र थे, वो वैभव शांडिल्य जिनका कपड़ों के होल शेल व्यापार में डंका बजता था, दौलत मानो प्रवाहित होती थी वैभव बिला में, वैभव शांडिल्य भी सोचते थे कि उनका यह विशाल साम्राज्य आखिरकार सौरभ को ही तो संभालना हैं, अतएव मगध युनिवर्सिटी से इंटर का एग्जाम पास करते ही उन्होंने हावर्ड युनिवर्सिटी भेज दिया था, उनका विचार था कि सौरभ बाहर जाकर जब पढेगा, तो उसके विचारो में विशालता आएगी, लेकिन हुआ बिल्कुल अलग ही।
                     विदेश में जाकर सौरभ और भी संकीर्ण विचार का हो गया, अब तो प्रिंट और इलेक्ट्रोनीक मीडिया में रोज ही उसके नाम का एक कारनामा होता था, उसके नाम उछाले जाते थे!
सर।
सुनते ही मानो सौरभ की तंद्रा टूटी। उसने नजर उठाकर देखा, तो उसका पर्सनल सेक्रेटरी प्रभात कांबले था, मुंबई में वो ही एक अकेला शख्स था अथवा यूं कहा जाए तो अतिस्योक्ति नहीं होगी कि उसका हर तरह से ख्याल रखता था।
हां बोलो कांबले, उसने धीमी प्रतिक्रिया दी।
सर आज वकील ने तारीख ले रखी हैं, आज अपने केस की सुनवाई हैं, प्रभात कांबले एक ही सांस में बोल गया।
सुन कर सौरभ ने लंबी सांस ली और बड़बड़ाया, उफ यह कोट भी ना, एक दिन हमारा जान लेकर रहेगा। दो वर्ष से केस को ऐसे खींचे जा रहा हैं। मानो यह केस ना हो कोई जिन्न की आत्मा हो।
सर आपने हमें कुछ बोला, कांबले तत्परता से बोला।
नहीं मिस्टर कांबले, मैं तो बस यूं ही, ठीक हैं तुम बाहर जाकर वेट करो, हम तैयार होकर आ रहे हैं, सौरभ ने शुष्की से उत्तर दिया और उठ कर बंगले के अंदर बढ गया, वो चलता- चलता वाथरुम के पास पहुंचा, फिर खड़ा होकर एकटक वाथरुम के दरवाजे को देखने लगा और धीरे-धीरे ख्यालों में फिर खो गया।
                                    बचपन के वो दिन, पटना शिटी में उसका विशाल बंगला, बंगले में नौकरों की विशाल फौज। शांडिल्य बिला का इकलौता वारिस होने के कारण वो सभी के आँखों का तारा था। उसके होंठों से बात निकली नहीं कि पूरा का पूरा शांडिल्य बिला दौड़ पड़ता था। इसका परिणाम यह हुआ कि वो जिद्दी और निरंकुश होता चला गया, हालांकि वैभव शांडिल्य ने उसके स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की कोशिश की, लेकिन हर बार माँ की ममता की ढाल ने रोक डाली! वैभव में इतनी शक्ति नहीं थी कि वो माँ के ममता की ढाल को अपने प्रहार से तोड़ पाते।
                         माँ विभा शांडिल्य तो चाहती थी कि वो अपने आँचल की छाँव से कभी भी उसे अलग ना करें, हालांकि यह संभव न था, पिता के हृदय की वेदना कभी शब्दों का रूप ले लेता था। वे बोलते जरूर थे कि विभा तुम्हारा लाड़ प्यार सौरभ के लिये एक बोझ बन कर रह जाएगा, लेकिन विभा उत्तर देती थी कि समय आने पर वो खुद ही समझदार हो जाएगा।
                            एक दिन तो हद ही हो गई, वो देर   शाम आँफिस से मीटिंग को खत्म करके घर पहुंचे, शाम का धुंधला वातावरण पर हावी हो रहा था, रात की स्याह पड़ते छाने लगी थी, वैभव के दिल में आशंका थी कि आज भी जरूर बिला में तूफान आकर गुजरा हैं । वे लीविंग हाँल में ही सोफे पर बैठकर टाई ढीली करने लगे, तभी रामदीन काका जो कि उम्र के साथ ही स्वभाव से ही सभी के सम्माननीय थे, उनके सामने आकर खड़े हो गए।
                          वो काफी सहमे हुए से दिख रहे थे, वैभव ने शंकित होकर पुछा कि क्या हुआ काका। जबाव में रामदीन कांपते हुए लहजे में बोले, मालिक।
बोलिये क्या हुआ आपको?
मुझे कुछ भी नहीं हुआ मालिक, वो सौरभ बाबा हैं न!
हां तो क्या हुआ सौरभ को, वो भय से कांपते हुए बोले । उनकी जबान सूखे पत्ते की तरह कांप रही थी!
मालिक उन्हें कुछ नहीं हुआ!
तो फिर?
मालिक अपना डाँगी है ना टौमी, सौरभ बाबा ने दो दिनों से उसे जंजीर से जकड़ कर रखा हुआ हैं, दो दिनों से टौमी भूखा प्यासा भी हैं । रामदीन एक ही सांस में सारी बातें कह गया।
कहां रखा हैं उसे?
मालिक वो उन्होंने अपने रूम में । सौरभ बाबा भी वहीं पर हैं, बोल कर रामदीन ने चुप्पी साध ली!
                             लेकिन मिस्टर शांडिल्य कोई भी प्रतिक्रिया देने के लिये वहां नहीं रुके, वे लगभग दौड़ ही परे और पलक झपकते ही सौरभ के रूम में पहुंच गये। वहां के हालात देखे तो उनका हृदय विदीर्ण हो गया। जंजीर  में कसा हुआ टौमी अपने मालिक को आया देख रोने लगा। वो ठहरा कुत्ता, इंसानी आवाज और इंसानी भावना कहां से लाये। लेकिन इतना तो तय था कि उसकी आवाज उस के वेदना की अनुभूति करा रही थी!
                         शांडिल्य ने नजर घुमाया तो देखा कि सौरभ वीडियो गेम खेलने मे व्यस्त हैं। वो लाख कोशिश कर रहें थे कि अपने गुस्से को कंट्रोल करें, लेकिन दया के आवेग ने गुस्से को हवा दे दी थी! फिर भी उन्होंने खुद को संयत किया और आवाज दी। बेटे सौरभ।
जी पिताजी। सौरभ फिर गेम खेलने में उलझ गया बोलने के बाद।
बेटे आपने टौमी की क्या हालत कर दी हैं, आप इसे खोल दो। वे धीरे से बोले।
नहीं पिताजी मैं इसे नहीं खोलूंगा। गेम इन्स्ट्रुमेंट साइड में रखते हुए सौरभ बोला।
लेकिन क्यों, आखिर इसकी गलती क्या हैं, आप इसे क्यों नहीं खोलना चाहते। वे चिंतित होकर बोले!
जबाव में जो सौरभ ने बोला वो काफी भयावह और मानव संवेदनाओं से परे था। वो बोला, यह हमारे आदेश को नहीं मानता!
एक पल को उसके कहे वाक्य ने शांडिल्य के चेतना तंत्र को ही जाम कर दिया। फिर वो बोले, लेकिन बेटे यह मूक प्राणी हैं, और इसमें सोचने की ताकत भी तो इतनी नहीं हैं। फिर यह इंसान नहीं हैं, जो हमारे हर एक इशारे को समझे। बेटे अगर किसी को भी चाहे वो बेजबान जानवर हो या इंसान, अपने आधीन रखना हैं, तो प्रेम ही वो अचूक हथियार हैं, जिससे किसी को भी बस में रखा जा सकता हैं। ताकत के बल पर विद्रोह का जन्म होता हैं!
जी पिताजी!
हां बेटे, आप टौमी को खोल दो, देखो तो बेचारा निरीह भाव से देख रहा हैं।
छनन-छन-छन-न।
सहसा दूर कहीं कोई वस्तु पथरीले चीज से टकराई और उसकी तंद्रा टूट गई। सौरभ सचेत हुआ और वाथरुम का दरवाजा खोल कर अंदर चला गया। वो आज जी भर के ठंढे पानी का वाथ लेना चाहता था। उसे आभास हो चला था कि उसकी जिन्दगी रिक्त हो गई हैं और वो उस रिक्तता को भरने के उपाय को ढूंढ रहा था। उसे पिताजी की कही बातें शिद्दत से याद आ रही थी कि किसी को बस में करना हो तो उससे प्रेम जताओ। अधिकार खुद-ब-खुद हो जायेगा। लेकिन तब वो उस बातों को कहां समझता था। वो कैसे समझता कि प्रेम ही वो अचूक हथियार हैं, जिससे किसी को भी बस में किया जा सकता है। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।
दरवाजा खुला है, आ जाओ। उसने धीरे से कहा।
वो जब चेहरे पर ठंढे पानी के छीटे मार रहा था, तभी कांबले उसके सामने आ गया।
सर! सुबह के नौ बज चुके हैं।
तो मिस्टर कांबले।
तो सर! अदालत चलना हैं कांबले संतुलित और नपे-तूले शब्दों में बोला। सुनकर सौरभ का मन कसैला हो गया। वो बिना कोई प्रति उत्तर दिये टाँवल से चेहरे को साफ किया और तेजी से बाहर निकल गया। कांबले भी उसके पीछे-पीछे लपका।
                        बंगले के लाँन में फियाट खड़ी थी, सौरभ ने दरवाजा खोला और अंदर बैठ गया। कांबले ने दरवाजा बंद किया, ड्राइविंग शीट संभाली और गाड़ी श्टार्ट करके आगे बढा दी। कार तेजी से बिला छोड़ कर सड़क पर आ गई और सरपट दौड़ने लगी। उतनी ही तेजी से सौरभ के ख्याल भी दौड़ने लगे थे।
                         सौरभ जब हावर्ड युनिवर्सिटी से पढ कर वापस लौटा, तो शांडिल्य बिला में जश्न का माहौल हो गया। सभी खुश थे, केवल उसको छोड़ कर। उसे तो इस सबसे कोई मतलब ही नहीं था। पटना जैसे छोटे से शहर में मानो उसका दम घुटता था। उसे लगता था कि वो यहां कैद होकर रह गया हैं, उसके पंखों को किसी ने कुतर दिए हैं। वो उन्मुक्त गगन में मुक्त होकर बिहार करना चाहता था। जिसके लिए उसे पटना शहर का परिधि छोटा पड़ता था!
                       उफ ये व्याकुलता, कहीं उसकी जान न ले ले, उसपर घरवाले उसकी शादी की बात कर रहे थे। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो करें तो क्या करें। उसका कोई सुनने बाला नहीं था, न ही उसने कभी भी कोशिश की थी किसी के करीब होने की। ले देकर एक माँ थी, जिसे वो समझा सकता था, लेकिन वो व्यर्थ, माँ तो कितने अरसे से उसके शादी के सपने सजाये बैठी थी। वो यूं ही मामला हाथों से नहीं निकलने देती।
                          एक दिन मौका पाकर गार्डेण में जब वैभव शाम को बैठे थे, वो उनके पास जाकर बैठ गया। एक पल को उसे करीब देख कर वे चौंके, फिर बोले। हैल्लो बर्खुर्दार कैसे हो?
जी पापा ठीक हूं। उसने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
लेकिन मुझे तो ठीक नहीं लग रहा। मुझे लग रहा हैं कि ऐसी कोई तो समस्या हैं, जो तुम्हें अंदर ही अंदर खाये जा रही हैं। वैभव शांडिल्य बोले।
जी पापा, आपको सही महसूस हुआ हैं। मैं यहां नहीं रहना चाहता। वो उद्विग्न होकर बोला।
तो फिर कहां जाना चाहते हो। आश्चर्यचकित होकर वैभव बोले।
मुंबई! उसने धीरे से कहा।
लेकिन वहां करोगे क्या? इस बार वैभव आशंकित होकर बोले।
मैं वहां मल्टीपल बिजनेस करना चाहता हूं, मुझे ऊँचे उड़ना हैं।
लेकिन बेटा ऊँचे उड़ने की चाह में औंधे मुंह गिर ना जाओ और तुम्हारे पंख टूट ना जायें। वैभव की आशंका और भी गहरी हो गई थी।
पापा आप हो ना, मैं गिरा भी तो आप संभाल लोगे। प्लीज पापा मैं यहां इस छोटे से शहर में नहीं रह सकता। मेरा यहां दम घुटता हैं। सौरभ लगा कि बोलते- बोलते रो ही पड़ेगा ।
लेकिन तुम्हारे लिये लड़की देख रहे हैं, शादी कर लो फिर चले जाना। वैभव ने न चाहते हुए भी कहा।
पापा मेरी अभी तो कितनी उम्र हुई हैं, मुझे अभी शादी नहीं करनी। बोलने के साथ ही सौरभ उनके गोद में सिर रख कर लेट गया। बस वैभव भी अपने आप को नहीं रोक सके, वो दुलारने लगे उसे।
                      वे जानते थे कि जल्दी में उनका लिया गया निर्णय भयावह रूप भी ले सकता हैं। अतः उन्होंने सौरभ की इच्छाओं पर अपने स्वीकृति की मौन मुहर लगा दी। घर में हलचल सी मच गई, शांडिल्य बिला को किसी की नजर लग गई। माँ विभा शांडिल्य ने तो पूरे बिला को ही सिर पर ले लिया। लेकिन वैभव अडिग रहे, उन्होंने आनन- फानन में मुंबई कांदीवली में विशाल बंगला खरीद लिया। सौरभ के लिये लिगल एडवाईजर दयाल महंतों और सेक्रेटरी कांबले की नियुक्ति कर दी।
                          और देखते ही देखते उसके लिये एक लाँवी तैयार कर दी गई, जो उसके बिजनेस डील को आगे बढाने में मदद करें। खुद वैभव ने मुंबई में रहकर उसको सेट करने में मदद करने लगे। दिन भर ढेरो अप्वाईंटमेंट और फिर उसके बाद लंबी-लंबी मीटिंग ,इन सब से सौरभ जल्दी ही थकान महसूस करने लगता था। तो पिता का हूंफ और प्यार पाकर फिर से तरोताजा हो जाता था।
                  समय यूं ही पंख लगा कर उड़ने लगे और थोड़े ही दिनों में शांडिल्य कॉर्पोरेशन के नाम से उसका बिजनेस चलने लगा और थोड़े ही दिनों में उसका बिजनेस सुर्खियों में आने लगा था। वैभव वापस पटना लौट गये थे और बिजनेस की कमान सौरभ ने संभाल ली थी। हालांकि मार्केट में कंपटीसन काफी था, लेकिन उसे इसी में मजा आता था, सो वो जी जान लगा कर मेहनत करता था।
घर्रर घर्र।
टायरो पर एकाएक ब्रेक लगने से वातावरण में एक सुर सा गूंजा और उसके यादों के तार बिखर कर रह गए। उसने कांच के बाहर से देखा तो कोर्ट का परिसर आ चुका था, वो इतनी बार कोर्ट के चक्कर लगा चुका था कि आँखें बंद कर के भी कोर्ट के पास होने की अनुभूति कर सकता था।
               कांबले ने कार पार्क की, वो कार से उतरा और कोर्ट लाँवी की ओर बढ गया, उसे एडवाईजर दयाल महंतों से मिलना था। दयाल महंतों का यही इंस्ट्रक्सन था। वो जानता था कि सौम्या भी जरूर आई होगी। वो भी तो मुंबई में अकेली रह कर वकालत की प्रेक्टिस कर रही हैं। वो भी बरे परिवार से ताल्लुकात रखती हैं। वो सोच ही रहा था कि उसके सोच को ब्रेक लग गये। दयाल महंतों का आँफिस आ गया था, वो उसके आँफिस में प्रवेश कर गया।
                        ठीक ग्यारह बजे अदालत की कार्यवाही शुरु हुई, निखिल आप्टे की बेंच केस की सुनवाई कर रही थी। अदालत की कार्यवाही शुरु होते ही फिर से सौम्या बरस परी। वो अपना जिरह खुद ही कर रही थी। वो अदालत को फिर से वही बात बताने लगी, जिसे उसने कितनी ही बार दुहरा दिया था। वो बोल रही थी कि कैसे धोखे से प्रेम के जाल में फांस कर सौरभ ने उसका शारीरिक और मानसिक शोषण किया था। वो समझ ही नहीं पाई उसे और वो उस पर शारीरिक और मानसिक दुराचार उससे करता रहा। बोलते- बोलते सौम्या फिर रोने लगी।
                   जबाव में दयाल महंतों ने भी शानदार दलील दी, कोर्ट में साक्ष्य भी प्रस्तुत किए, परिणाम कोर्ट ने अगले महीने की तारीख देकर कोर्ट मुलतवी कर दी। सौरभ का मन इतना कसैला हो चुका था कि उसने दयाल महंतों से बात भी नहीं की और तेजी से निकल कर कोर्ट रूम से बाहर आया और पार्किंग में खड़ी फियाट में बैठ गया और फिर ख्यालों में खो गया।
                               सुबह का समय, सर्दी के दिन थे, सौरभ फटाफट तैयार होकर शांडिल्य बिला से निकला। आज उसे अपने खास क्लाईंट से मिलना था, कांबले मुस्तैद था। दोनों कार में बैठे और कार ने सड़क पर कुलांच भर दी। थोड़ी ही देर बाद उनकी कार भाव्या काँफीशाप के सामने पार्किंग में खड़ी थी। क्लाईंट ने यहीं मिलने के लिये बुलाया था। सौरभ काँफीशाप के अंदर बढ चला, हाँल में पहुंचने पर उसने चारों तरफ नजर फैलाया, तो क्लाईंट तो कहीं नहीं दिखा। लेकिन वो चौंका, उसके रोंगटे खरे हो गये। हो भी क्यों नहीं, उसने सुन्दरता की प्रतिमा देख ली थी।
                        शाप के बीचो-बीच टेबुल पर सौम्या अपने सहेलियों के साथ ठंढी में काँफी का लुफ्त उठा रही थी। सौरभ यूं ही नहीं घायल हुआ था, वो वास्तव में सुन्दरता की मूरत थी। अब सौरभ के सामने समस्या थी कि कैसे वो उस लड़की से नजदीकी बनाये। वो हिम्मत करके आगे बढा और धीमी आवाज में उसने सौम्या को संबोधित किया।
हैल्लो मिस।
सौम्या शुक्ला, मुसकुराते हुए सौम्या ने हाथ बढा कर उससे सेकहैंड कर लिया फिर झेंप कर बोली। मैं भी कितनी पागल हूं, वैसे आपका परिचय?
मैं सौरभ शांडिल्य, प्रोफेसनल आर्टीटेक ,बोलते हुए सौरभ उसके सामने परी खाली कुर्सी पर बैठ गया। फिर तो उन दोनों के बीच बात निकल पड़ी । इस बीच वेटर ने एक कप और काँफी सर्व कर गया। थोड़े ही देर में दोनों में घनिष्ठता छा गई। दोनों ने एक दूसरे का पसंद, परिवार और प्रोफेसन तक की जानकारी ले ली।
मिस सौम्या ये लीजिये हमारा विजीटींग कार्ड। सौरभ कार्ड को आगे बढाते हुए बोला! फिर मुसकुरा कर बोला, जब भी आपको कंपनी की जरूरत हो बस इक काँल कर दीजिएगा।
थैंक्स, जबाव में सौम्या सिर्फ इतना ही बोली।
                  इसके बाद उसका क्लाईंट आ गया और वो उठ कर दूसरे टेबुल पर चला गया और क्लाईंट में उलझ गया। लेकिन उसका दिल तो कहीं खोया हुआ था। उसने फटाफट काम को निपटाया और जब नजर उठाकर देखा, तो सौम्या जा चुकी थी। उसे गहरा झटका लगा, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें। बस बोझिल कदमों से वापस आकर कार में बैठ गया!
                   कांबले ने पुछा भी कि उसके उदासी का क्या कारण हैं, लेकिन उसने अपने भावों को छुपा लिया। उसने आँफिस जाने का विचार त्याग दिया था। अतएव कांबले कार को सीधा बिला में ले आया। सौरभ कार से उतर कर सीधा अपने बेडरूम में चला आया, लेकिन फिर भी उसे शांति नहीं मिल रही थी।
               दिल ही तो हैं जनाब, जब लग जाये तो बिना महबूब की दुनिया की हर एक बात बुरी लगती हैं। सौरभ का भी यही हाल था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें। बिक जाए या खरीद ले। इसी उधेड़ बुन में कब शाम हो गई। उसे पता ही नहीं चला और यह शाम उसके लिये चाहतों की बारिशें लेकर आई। उसके मोबाइल ने हल्की आवाज में बजना शुरू किया। आजा पिया तोहे प्यार दूं, बस एक पल का भी विलंब नहीं किया उसने फोन उठाने में। उसका दिल घबराहट में बल्लीयों उछल रहा था, उसने दिल की स्पीड को थामने की कोशिश करते हुए पुछा, आप कौन?
मैं सौम्या, आज सुबह काँफी शाँप में मिली थी। उधर से खनकती हुई आवाज उभरी, और उसका मन मयूरा नाच उठा। उसे लगा कि काश उसके पंख लगे होते तो वो उड़ कर सौम्या के करीब पहुंच जाता। यह इश्क भी हैं ना कितना अजीब हैं। उसके आँखों के आगे सत रंगी सपने घूमने लगे। वो चाहत के समंदर में गोते खा रहा था, उधर से सौम्या ने न जाने क्या- क्या कहा। वो कुछ भी तो समझ नहीं सका, उसे तो बस इतना ही खयाल आ रहा था कि सौम्या उसके बांहों में होगी। हां इतनी बात तो वो जरूर समझ गया कि सौम्या उसे डिलक्स वियर वार में मिलने के लिये बुला रही है।
                      उसने उतावले पन में मोबाइल को बेड पर फेंका और फ्रेश होने के लिये वाथरुम में घुस गया। और थोड़ी देर बाद जब वो बिला से बाहर निकला तो काफी खिला- खिला लग रहा था। इस वक्त उसने मैरून कलर कीं जिंस और ब्लू टी-शर्ट पहना हुआ था, जो उस पर फब रही थी। पार्किंग में आकर उसने फियाट का दरवाजा खोला, बैठा और बिला के गेट से निकाल कर रोड पर दौरा दी। कांबले दौड़ कर वाथरुम से निकला, लेकिन तब तक कार फर्राटे भर चुकी थी। कांबले आश्चर्य चकित सा देखता रहा। क्योंकि यह पहली बार ही हुआ था कि सौरभ उसके बिना अकेला कार लेकर वो भी शाम के वक्त बिला से निकला हों।
                        सौरभ ने कार की स्पीड बढा दी थी, कार में हीप हौप म्युजिक का तेज स्वर गुंज रहा था। जिसके ताल पर वो झूम रहा था, तभी डिलक्स वार आ गया। उसने तेजी से ब्रेक लगाये ,परिणाम यह हुआ कि कार तेज आवाज के साथ दूर तक घिसटती चली गई। उसने कार को कंट्रोल किया, कार पार्क की और तेजी से हाँल की ओर बढ गया। शाम ढलने को आतुर था और उसी आतुरता के साथ वियर वार का शबाब अपने चरम की ओर बढ रहा था। 
                         हाँल में हर जगह मदहोशी बिखरी पड़ी थी। जोड़ी पीने और पिलाने में मस्त थे। चारों ओर रोशनी में हर एक चेहरा चमक रहा था और बेमिसाल लग रहा था। लेकिन उसकी आँखें तो उस चेहरे को ढूंढ रही थी, जिससे उसकी आज ही दिल्लगी हुई थी। फिर उसकी नजर हाँल के कोने में जाकर ठहर गई, वहां सौम्या अकेली बैठी वियर के मग को शीप कर रही थी। उसे देखते ही उसकी बांछे खील गई, वो मदमस्त चाल में चलता हुआ उसके पास पहुंचा और सामने बाली चेयर पर बैठता हुआ मुसकुरा कर बोला।
हाय सौम्या।
सौरभ तुम, मुझे तो लगा था कि तुम आओगे ही नहीं। वो आश्चर्य चकित होकर बोली।
ऐसा कैसे हो सकता था कि तुम बुलाओ और हम नहीं आयें, लो हम आ गये। प्रति उत्तर में सौरभ मुसकुरा कर बोला।
                फिर वो वियर की बोतल से अपने लिए भी मग तैयार करने लगा। इस बीच उन दोनों में इधर उधर की ढेरो बातें हुई। वेटर उनके लिए नई वियर की बोतल सर्व कर गया था। वे दोनों भी महफिल के रंग में ढलने लगे थे। रात का आलम ज्यों- ज्यों बढती जा रहा थी, वहां मस्ती का ग्राफ बढता जा रहा था। तभी वहां की सारी लाइटें बंद हो गई। फिर तो हल्की ब्लू लाइट और रे म्युजिक की प्यारी धुन ने शमा बांध दिया। प्रेमी जोड़े एक दूसरे के बांहों में बांहें डाले वहां झूमने लगे।
              अब वहां किसे होश था, सभी महफिल के रंगो में रंग कर आज जीवन का पूरा लुफ्त उठा लेना चाहते थे। वहां का मौसम भी खुशगवार और सर्द सी हो गई थी। सौरभ को भी खुब मजा आ रहा था, आज का अनुभव उसके लिये किसी बादशाहत से कम न था। वे सभी रात ग्यारह बजे तक झूमते रहे। जब तक कि पब बंद ना हो गया। सौरभ का बस चलता तो वो पुरी रात झूमता रहता।
सर!
कांबले ने आवाज दी और उसके सहेजे हुए प्रतिबिंब छिन्न-भिन्न हो गये। उसने कार के बाहर देखा तो उसके बंगले का पोर्च था। उसने भारी मन से कार का दरवाजा खोला और थके कदमों से बिला के अंदर बढ गया। उसके चलने के अंदाज से लग रहा था कि वो महीनों से बीमार हो। लेकिन जब वो लीविंग हाँल में पहुंचा तो चौंक उठा!
                 चौंकना भी तो लाजिमी था, सामने सोफे पर वैभव शांडिल्य बैठे हुए अखबार पढने में तल्लीन थे। उसके कदमों की आहट ने उनकी तंद्रा भंग की, उन्होंने नजर उठाकर सौरभ को देखा और सपाट लहजे में बोले। आजा, करीब आजा, मैं जानता हूं कि तू थक गया हैं, काफी थक गया हैं, अब तुझे प्यार और संबल की जरूरत हैं।
         सुनना था कि बस लगभग सौरभ दौड़ ही पड़ा और वो दौड़ कर उनके कदमों के पास बैठ गया और उनके गोद में सिर रख कर सिसक पड़ा । वैभव ने ममता के अहसासों से उसके बालो में जुम्बिश कर रहे थे और गंभीर होकर बोल रहे थे। बेटा मैं ने तुम्हें पहले ही कहा था कि हौसलों की ऊँची उड़ान जरूर उड़ो लेकिन आसमान चाहे कोई भी हो, अपनापन जरूरी हैं।
                  वैभव बोले जा रहे थे और सौरभ सुनता जा रहा था एवं आंसुओं को बहाये जा रहा था। आज उसे लगने लगा था कि जीवन को सुखमय और शांत बनाने के लिये अनुभव की जरूरत होती है। उसके लिये शहर का छोटा या बरा होना नगण्य हैं। पर अनुभव आये कहां से, शायद उम्र का पड़ाव ही हैं जो आदमी को आदमी बनाता हैं जीने के लिए। आज उसे पश्चाताप हो रहा था अपने किए पर। उसने अपने मम्मी पापा के भावनाओं को बहुत रौंदा था और शायद यही कारण भी था कि उसकी सारी ग्लानि उसके आँखों से वह जाना चाहती थी।
                 समय बहुत बीत गया ऐसे ही, शाम होने लगी थी। वैभव ने सौरभ को कंधे से पकड़ कर उठाया और सोफे पर बिठाया। फिर किचन में चले गये, और जब लौटे तो उनके हाथ में प्लेट था। जिसमें गाजर का हलवा था, वो मुस्कराये और उसके बगल में बैठ कर हाथों से उसे खिलाने लगे ।
मेरा प्यारा बेटा, देख तो तूने कैसे हालत बना लिए हैं। तेरी माँ बहुत परेशान रहती हैं, उसे मालूम हैं कि तुझे गाजर का हलवा बहुत पसंद हैं। इसीलिए उसने खुद ही अपने हाथों से बना कर भेजा हैं।
जी पापा, सौरभ रूंधे हुए आवाज में सिर्फ इतना ही बोल सका।
             जबकि वैभव उसे खिलाते हुए बरे इम्तिनान से बोले। चिन्ता नहीं करते बेटा, बीती बातों को भूल जा। अब मैं आ गया हूं ना, देखना सभी ठीक कर दूंगा। वैभव बोलते जा रहे थे, परन्तु उसने कोई जबाव नहीं दिया और थोड़ा सा खाने के बाद अपने बेडरूम में चला गया।
कांबले ने बंगले की सारी लाइटें जला दी। शाम का वक्त ढलने लगा था, इसलिये वैभव बंगले से बाहर घूमने के लिये निकल गए।
                              सौरभ जब अपने रूम में पहुंचा, तो उसे लगा कि सौम्या उसके करीब ही हो, उसे कमरे से भीनी- भीनी खुशबू आ रही थी। फिर तो बेचैनी में उसने पूरा रूम छान मारा और जब पूरा का पूरा रूम खाली मिला। फिर उसने दिल को समझाया कि यह उसका वहम हैं, वो थका- थका सा निढाल होकर बेड पर गिरा, सांसे थी कि बेतरतीब चलने लगी थी। नफरत से उसकी सांस धौंकनी की तरह चलने लगी, वो खुद को नियंत्रित करने की कोशिश करने लगा। जिसके कारण उसको हृदय में दर्द की भी अनुभूति हुई।
                     फिर वो ख्यालों के अथाह समंदर में खोने लगा। वो उस दिन के बाद सौम्या के करीब खींचने लगा था, उसे लगने लगा था कि अगर उसे सौम्या नहीं मिली तो उसकी जिन्दगी वीरान हो जायेगी। ऐसा नहीं था कि आग सिर्फ उसकी तरफ ही थी, आग सौम्या के हृदय में भी लगी थी। प्रेम का रंग ही ऐसा होता हैं जनाब कि जिसपर भी चढे उसे अपने रंगो में रंग लेता हैं। यह वो सांचा हैं, जो प्रेमी जोड़े को अपने सांचे में ढालने में कोई कसर नहीं छोड़ता।
                      तभी तो दोनों ही एक दूसरे से मिलने को व्यग्र रहने लगे थे। उन लोगों के बीच मुलाकात के दौर बढते गये और वे एक दूसरे के करीब आते गए। इजहार तो कब की हो चुकी थी, इकरार भी हो गया था और करार भी खो गया था। बाकी बचा था तो सिर्फ पार होना, एक दूसरे के करीब आना और एक दूसरे के सांसो में उतर जाना! शायद दोनों ही इसके लिये व्यग्र भी थे।
                    शायद दोनों तरफ की बेचैनी ही थी कि सनडे को सौरभ ने कांबले की छुट्टी कर दी, कांबले से उसे भय सा लगता था कि कहीं वो उसकी हरकतों को उसके घर तक ना पहुंचा दे। कांबले के जाने के बाद उसने सौम्या को काँल किया कि आज वो बंगले पर आ जाये। वो अकेला हैं, आज दोनों मिल कर मस्ती करेंगे, एंज्वाय करेंगे। सौम्या ने हामी भरी और शाम को आने के लिए बोली।
                    थोड़ी देर तो उसने जैसे- तैसे समय को बिताया, लेकिन अब उसे समय की सुई धीमी सी चलती प्रतीत होती थी। आज उसके बस में होता, तो वो समय की सुई को खुद ही आगे कर देता। लेकिन ऐसा क्योंकि मुमकिन नहीं था, इसलिये वो बेचैन होने लगा। उसने बेडरूम में भी जो उसे अच्छा लगा, तबदीली कर डाली। फिर भी काफी समय बचा था,यह सही फैक्ट हैं कि जब आप किसी के इंतजार में हों तो समय का परिधि काफी बरा हो जाता हैं।
                 खैर उसने उलझनों में उलझा हुआ समय की दरिया को पार करने लगा, तभी बंगले के बाहर कार की हौर्न बजने लगी। उसने नजर उठा कर देखा, तो घड़ी शाम के पांच बजने की उद्घोषणा कर रही थी। वो खुशी से झूम उठा, उसके पूरे शरीर में हर्ष की तरंग दौर गई। वो समझ गया कि उसके दिल की मलिका आ गई है। वो लगभग दौड़ ही पड़ा, उसने बरे ही उतावले पन से सौम्या का हाथ पकड़ कर लीविंग हाँल में ले आया।
 बरी ही नजाकत से सोफे पर बिठा कर पुछा। आपके खिदमत में क्या पेश किया जाये मुहतरमा।
दो गिलास व्हिश्की की बोतल, शोडा और साथ में चखना। बोलने के साथ ही सौम्या खिलखिला कर हंस पड़ी।
तेरे इसी अदा पर तो हम कुर्बान हैं जालिम। जबाव में सौरभ मस्ती में बोला।
             फिर तो वो फ्रीजर से सारी चीज उठा लाया और सामने टेबुल पर सजा दिया। फिर तो सौम्या पैग बनाये जा रही थी, दोनों शीप करते जा रहे थे। मस्ती अपने चरम पर छाता जा रहा था। बाहर शाम ढल चुकी थी और अँधेरा घिर चुका था। सौरभ ने लड़खड़ाते कदमों से उठ कर लाइट जलाई। फिर अपनी जगह पर आ बैठा, फिर पीने का दौर और मदहोशी में बोला।
अमा यार सौम्या तुम्हारे ओठ गुलाब के सुर्ख पंखुड़ी से हैं।
तो क्या? सौम्या शोखी में बोली।
बस मन करता हैं इसके पराग को चूम लूं। सौरभ बहकता हुआ बोला।
तो रोका किसने हैं, चूम लो। सौम्या बहकते हुए बोली फिर खिलखिला कर हंस परी।
                इजाजत मिलने भर की देर थी। सौरभ उठा और उसके करीब बैठ गया, उसके चेहरे को हाथों से थामा और अपने ओठों को उसके ओठों पर टीका दिये। फिर तो वहां पर हलचल बढ गई,दोनों ही अपने दिल की जगी प्यास को मिटा लेना चाहते थे। लेकिन यह एक ऐसी प्यास हैं कि जितनी भी बुझाने की कोशिश करो बढती ही जाती हैं। यह इश्क का बुखार हैं साहब,तड़प और भी बढाती हैं।
                दोनों के हरकतों ने हाँल का तापमान बढा दिया था। जब सौरभ से नहीं रहा गया, तो उठा और सौम्या को गोद में उठा कर बेडरूम की ओर बढ गया। उस रात बंगले में जज्बात का तूफान गुजरता रहा। सुबह सौम्या काँफी का मग लेकर आ गई। सौरभ सोया ही हुआ था, उसने सौरभ को उठाया। फिर दोनों काँफी सीप करने लगे।
और रात की बातें याद करके शर्माने लगे।
                        फिर तो जिस्म मिलते ही उनके चाहत का पैमाना भी बढने लगा। मिलने का सिलसिला बढ गया, सौरभ में काफी तबदीली आ गई थी। सौम्या जब भी उसके आँखों से ओझल होती उसके दिल की बेचैनी बढ जाती। वो लाख कोशिश करता दिल को समझाने की, लेकिन दिल विद्रोह करने पर उतर जाता। विद्रोह इतना बढ जाता कि उसे खुद को संभालना मुश्किल हो जाता। जब उससे परेशानी सही नहीं गई। तो उसने सौम्या को काँफी शाँप पर बुलाया।
जब वे दोनों मिले, तो उसने अपने दिल की बात उसे बता दी।
मामला तो काफी गंभीर है। सौम्या बोली।
हां जानु, समझ नहीं आता कि क्या करें?
मैं भी तो इसी समस्या से दो चार हो रही हूं। सौम्या धीरे से बोली!
यही तो मैं कहना चाहता हूं कि अब तुमसे अलग होकर नहीं रहा जाता। सौरभ भावुक हो चुका था।
वो बात तो ठीक हैं हनी, पर मैं अभी शादी के बंधन में बंधना नहीं चाहती।
वो तो मैं भी नहीं चाहता। सौरभ ने उसके सुर में सुर मिलाए।
                     फिर वहां शांति छा गई, उन दोनों के चेहरे पर सोचने के भाव फैले हुए थे। सुबह का वक्त होने के कारण काँफी शाँप में भीड़ ना के बराबर थी, इसलिये वहां चीर शांति फैली हुई थी। आखिर कार सौम्या चहक कर बोली। हनी हमारे पास इक रास्ता हैं।
वो क्या? सौरभ चौंक बोला।
हम लीव इन रिलेसन शीप में रह सकते हैं। सौम्या चहक कर बोली।
खयाल तो अच्छा हैं। सौरभ ने उसके हां में हां मिलाई।
                         फिर दोनों मौन होकर खयालों में खो गये। उन दोनों ने लीव इन रिलेसन शीप में रहने का फैसला तो कर लिया था। लेकिन उसके सामने सबसे बड़ी समस्या कांबले को मैनेज करने का था। वो नहीं चाहता था कि उसके करतूतों की भनक उसके घर तक पहुंचे। दूसरी बात उसके हरकतों से थी, जिसके कारण उसके कारोबार पर गलत असर हो रहा था। तंग आकर कांबले ने उसे टोक भी दिया था कि वो कारोबार पर ध्यान दे।
                      काफी कोशिशों के बाद वो कांबले को राजी कर पाया। कांबले ने शर्त रखी थी कि वो एक शाल के बाद शादी कर लेगा। कांबले ने सिर्फ इतना बोला था कि साहब ऐसे रिश्ते टिकते नहीं है। ब्याह ही वो पवित्र संस्था है, जिसमें बंध कर इंसान सुकून की जिन्दगी गुजारता हैं। पर उसने कांबले की बातों को अनसुना कर दिया था। फिर तो सौम्या उसके पास ही बंगले पर आ गई रहने के लिए।
                      शुरूआत के दिनों में तो उन दोनों में काफी छनने लगी थी। काफी खुश थे वे दोनों, लेकिन एक दिन वो रात के करीब आठ बजे जब आँफिस से लौटा तो सौम्या को नहीं पाकर थोड़ा विचलित हुआ। उसने जब माली से पुछा, तो माली ने बताया कि सौम्या बेबी अभी तक नहीं लौटी हैं। वो परेशान हो उठा, उसने सौम्या के मोबाइल पर काँल किया तो स्वीच आँफ। अब उसकी बेचैनी बढती जा रही थी, वो लाख कोशिश कर रहा था खुद को संभालने का। लेकिन गुस्से की अधिकता से उसकी सांसे तेज हो गई थी।
                      वो लीविंग हाँल में ही चहलकदमी करने लगा, बीच- बीच में बार-बार उसकी नजर वाँल घड़ी पर चली जाती थी। धीरे-धीरे समय आगे भागता रहा, उसी रफ्तार में उसकी बेचैनी भी बढती रही। घड़ी ने रात के ग्यारह बजने की उद्घोषणा की और बाहर कार के रुकने की आवाज आई।
वो लगभग दौड़ ही पड़ा, लेकिन वो प्रेम की अधिकता से नहीं दौड़ा था। आज उसके अंदर उत्तेजना थी, गुस्से की अधिकता से उसके चेहरे बार- बार बन बिगड़ रहे थे। वो लीविंग हाँल से निकलने ही वाला था कि सौम्या ने अंदर कदम रखा। उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। जब उसने सौरभ की बेचैनी देखी तो मुसकुरा कर बोली।
क्या हुआ हनी?
मुझे क्या हुआ उसकी छोड़ो, तुम अभी तक कहां थी? सौरभ खुद को नियंत्रित करने की कोशिश करते हुए बोला।
दोस्तों के साथ पार्टी कर रही थी। सौम्या परिस्थिति को टालने के लिये कहा और सौरभ उस पर बरस पड़ा। तुमने ऐसी कौन सी पार्टी अटैंड करनी धी कि मुझे बताया भी नहीं। बताने की तो बात छोड़ो, तुम ने तो मोबाइल को भी आँफ कर दी।
तो क्या मैं तुम्हारा जर खरीद गुलाम हूं, मैं तुम से बंधी हुई नहीं हूं। मेरी मर्जी जो आये वो करूँ। सौम्या भी तैश में बोली।
                  फिर तो दोनों में ठन गया, सौरभ उसे भद्दी- भद्दी गालियां देने लगा। तो सौम्या भी कहां पीछे रहने बाली थी। फिर तो उनका वाक् युद्ध मारपीट में तबदील हो गया। शोर सुनकर कांबले दौड़ कर आया और बीच- बचाव किया। उस रात दोनों एक दूसरे से अलग होकर  सोए। फिर तो उन दोनों में आये दिन टकराव होने लगा, दूरियां बढने लगी। जिस्मानी संबद्ध नहीं होने के कारण सौरभ चिड़चिड़ा स्वभाव का होने लगा। उसके परिणाम स्वरूप उसका व्यापार भी प्रभावित होने लगा।
                एक दिन तो हद ही हो गई। सौम्या देर शाम जब लौटी, बंगले में कोई नहीं था सौरभ के अलावा, वो नशे में चुर था। उसने पहले तो खुब सौम्या से लड़ाई की। उसके बाद जबरदस्ती पर उतर आया। उसने सौम्या को जबरन उठा कर बेडरूम में ले गया और उसके साथ जबरन संबद्ध बनाने लगा। सौम्या चीखती रही, चिल्लाती रही, लेकिन उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और फिर वो बेसुध होकर लुढ़क गया। उसके बाद तो सौम्या रोती रही,चीखती रही, चिल्लाती रही और देर रात अपना सामान लेकर बंगले से निकल गई।
                      सुबह देर से सौरभ की आँख खुली। सूर्य देव आसमान पर चढ आये थे, रात की खुमारी उसकी उतरी नहीं थी। जब उसने खुद को थोड़ी देर तक सहेजता रहा। तब जा कर बीती रात की सारी हरकत उसे याद आ गई और उसका हृदय ग्लानि से भर गया। उसको लगने लगा कि उसने गलती की हैं और उसे सौम्या से माफी मांग लेना चाहिये। लेकिन जब उसने माफी मांगने के लिये सौम्या को ढूंढा, तो वो नदारद थी। उसने पूरा बंगला छान मारा, लेकिन सौम्या उसे कहीं नहीं मिली। अब उसका दिल किसी आशंका से धड़कने लगा।
               वो अपना सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गया। बेचैनी बढने लगी थी, सिर चकरा रहा था, तभी वहां कांबले आया। वो आँफिस के लिये तैयार था। उसने जब पुछा कि आँफिस चलना हैं, तो सौरभ ने मना कर दिया। कांबले समझ चुका था कि उसका मूड अपसेट हैं। वो निकल गया,सुबह के नौ बज चुके थे और सूरज की रोशनी ने चारों तरफ अपने प्रकाश का साम्राज्य स्थापित कर लिया था। चारों तरफ ही सब कुछ खिला- खिला और कोलाहल से भरा था। अँधेरा था तो उसके दिल में। वो खुद में ही उलझ गया था, समय बीतता जा रहा था और वो इसी हालात में बैठा रहा।
                     दिन के एक बजे अचानक से ही उसका बंगला पुलिस छावनी बन गया। उसे तो समझ ही नहीं आया कि क्या हो रहा हैं। जब उसे अरेस्ट करके पुलिस थाने लाया गया। तो उसे पता चला कि उसके ऊपर सौम्या ने इण्डियन पीनल कोड के तहत केस दायर किया हैं ओर वो फिलहाल पुलिस के चंगुल में फँस चुका हैं। उसने पुलिस इंस्पेक्टर सदाशिव भाले को काफी सफाई दी कि मैं बेकसूर हूं। हम दोनों में आपसी थोड़ी सी लड़ाई के सिवा और कुछ भी नहीं हैं। वो लाख कहता रह गया, लेकिन वहां उसका कोई सुनने बाला था। उसे लाँकअप में डाल दिया गया।
                        हाई प्रोफाईल परिवार से विलाँग करने के कारण थोड़े ही मिनटों में पूरे शहर में यह बात आग की तरह फैल गई। चारों तरफ उसके बारे में तरह-तरह की बातें की जाने लगी। शाम होते ही कांबले और उसका पर्सनल एडवाईजर दयाल महंतों ने वहां प्रवेश किया। कांबले ने साइन का इशारा करके उसे भरोसा दिलाया कि सब ठीक हैं, वो चिन्ता न करें।
                  पुलिस की सभी कार्रवाइयों के बाद उसकी अग्रिम जमानत हो गई। इसके बाद तो कोर्ट के चक्कर और जलालत का सिलसिला सा शुरू हो गया। जिससे दिनों दिन उसके लिये दुष्कर सा होता गया। वो अब तो समझने लगा था कि उसके लिए खुशियों का सवेरा नहीं है।
बेटे सौरभ, लगता हैं निंद नहीं आ रही हैं बेटा। तभी कमरे में वैभव ने प्रवेश करते हुए बोला।
आवाज सुन कर उसके खयालों के माला बिखर गये। वो पहले तो दीवाल घड़ी की ओर देखा। रात के नौ बज रहे थे, फिर उसने अपने को संयमित करता हुआ बोला। ऐसी बात नहीं हैं पिताजी, वो तो मैं बस।
मैं समझता हूं बेटा, तुम्हारे हालात को, पर तुम चिन्ता मत करो। मैं आ गया हूं ना, अब सब ठीक हो जाएगा। वैभव उसकी बातों को काटते हुए बोले, फिर उसको चादर ओढाने के बाद कमरे से निकल गये।
                           सौरभ काफी कोशिश करता रहा कि उसे निंद आ जाये। पर निंद थी कि उससे रूठ गई थी और उसके आँखों से कोसो दूर थी। समय यूं ही बीतता रहा ओर ना जाने कब उसकी आँख लग गई। सपने में उसने देखा कि वो बादलों में उड़ा जा रहा है। आज उसका मन प्रमुदित है। आज मौसम भी तो काफी सुहाना और अहसासों से भिगा हुआ है। तभी उससे कोई कठोर वस्तु टकराती हैं। वो चौंकता है, देखता है तो वो सौम्या है, खून से लथपथ,वो खुद को देखता है। तो वो भी खून से भिंगता जा रहा है,वो भय के मारे चीखता हैं। पर उसकी आवाज नहीं निकल रही।
                                  तभी सौरभ की निंद टूट गई। वो भय से व्याकुल हो गया। मुख से सहसा निकला, हे राम। आज तक वो कभी भी इतना भयभीत नहीं हुआ था। वो बेड से उतरा और एक ही सास में जग का पूरा पानी पी गया। पर उसे चैन नहीं पड़ा, वो समझ नहीं पा रहा था कि इस सपने का क्या मतलब हैं। फिर से उसने कोशिश की और बेड पर लेट गया। जल्द ही निंद की देवी ने उसे अपने आगोश में ले लिया।
                सुबह शांडिल्य बिला, वैभव अहाते में चेयर पर बैठे अखबार के पन्नों को यूं ही उलट-पलट रहे थे। उनके चेहरे पर चीर शांति छाई हुई थी। तभी कांबले भी आ गया और उनके सामने बैठ गया। सूर्य देव धीरे- धीरे अपने किरणों के पंख को फैला रहे थे। तभी सौरभ भी उठकर बाहर आया एवं उन लोगों को बैठा देख कर उनके पास बैठ गया। तभी माली काका उन लोगों को काँफी का मग थमा गये।
शुभ प्रभात बेटा। वैभव ने सौरभ को संबोधित किया।
आपको भी गुड माँर्णिंग पिताजी। जबाव में सौरभ बोला।
बेटा मैं आपको आज कुछ खास मेहमान से मिलवाने बाले हैं, वे लोग बस आते ही होंगे। वैभव मुसकुरा कर बोले।
मैं समझा नहीं पिताजी।
आप आने तो दीजिए उन लोगों को, सब समझ में आ जाएगा। वैभव अपनी ही टोन में बोले। उनकी बोली सुनकर कांबले के चेहरे पर भी मुस्कान छा गई। जबकि वो असमंजस की स्थिति में उन दोनों के चेहरे को देखता रहा!
                    तभी गेट से काले रंग की इनोवा ने प्रवेश किया। तीनों की ही नजर गेट पर टीक गई। इनोवा बढती हुई आकर पार्किंग में लगी और उसमें से वृद्ध दंपति उतरे। उन दोनों के चेहरे से ही लग रहा था कि वे बड़े घर के हैं।
                 वे लोग जब करीब आए, तो वैभव ने उठकर उनका स्वागत किया। कांबले भी उठा और अंदर जा कर माली काका को निर्देश देने लगा। वैभव ने उन लोगों को सामने बाली सोफे पर बिठाया और फिर खुद बैठे। उसके बाद उन्होंने इशारा किया सौरभ को कि वो उनको प्रणाम करें। सौरभ भौचक्का सा उन लोगों को देखता रहा और पिता के कहने पर उठ कर प्रणाम किया। फिर अपनी जगह पर आकर बैठ गया।
             तब वैभव ने उन लोगों का परिचय सौरभ को करवाया। उनके आवाज में गर्मजोशी थी। बेटा ये हैं मिस्टर प्रभात शुक्ला। सौम्या के पिता और शुक्ला इनङस्ट्रिज के मालिक और ये हैं उनकी माता भावना शुक्ला। ये लोग तुमसे ही मिलने आए हैं। वैभव चब बोलकर रुके तब तक माली काका काँफी के प्याले और नाश्ता का प्लेट लाकर सामने टेबुल पर सजा दिया था।
बेटे सौरभ, हम लोग तुमसे ही मिलने आए हैं। प्रभात शुक्ला गंभीर होकर बोले।
जी कहिए। सौरभ ने कहा।
बेटा, हम लोग समझते हैं कि जो हुआ, वो बुरा हुआ और हम लोग चाहते हैं कि उसका डैमेज कंट्रोल हो। शुक्ला जी बोलते वक्त और भी गंभीर हो गये।
जी! धीरे से सौरभ ने कहा।
हां बेटा, हम तुम्हारी बात समझते हैं। हमने तुम्हारे पापा से बात कर ली हैं। बस आप लोगों की रजामंदी जरूरी हैं।
जी मैं समझा नहीं? सौरभ चौंक कर बोला।
बेटा इसमें ना समझने बाली कोई बात नहीं हैं। हम लोग चाहते हैं कि तुम दोनों आपस में सुलह कर लो। फिर हम लोग तुम दोनों की शादी धूमधाम से करना चाहते हैं। प्रभात शुक्ला गंभीर होकर बोले।
लेकिन सौम्या, वो इसके लिए राजी होगी। सौरभ ने आशंका जाहिर की।
उसकी चिन्ता ना करो बेटा। उसे हम लोग मना लेंगे। प्रभात शुक्ला पूर्ववत् बोले, जबाव में सौरभ ने कहा कि जैसा आप लोग ठीक समझे। इसके बाद उन लोगों में बात होती रही। सौरभ मौन होकर उनकी बात सुनता रहा।
             दो घंटे की लंबी बात करने के बाद शुक्ला दंपति ने वहां से रुखसत ली। वैभव उनको उनकी कार तक छोड़ने गये। उनको जाते देखकर सौरभ अपने रूम की ओर बढ गया और थोड़ी देर बाद तैयार होकर निकला। आज उसका मन थोड़ा सा हल्का था और वो इस पल को वो कैद कर लेना चाहता था। उसने कार श्टार्ट की और बिला के गेट से निकाल दी।
                  आज वो अपने आप को कुछ हल्का सा महसूस कर रहा था। इसलिए वो कार को सड़क पर यूं ही इधर से उधर भगाता रहा। दिन के नौ बज गये थे और इसके साथ ही सड़क गाड़ियों के अवर-जवड़ से गुलजार हो रही थी। पर इस भीड़ से दूर कहीं उसका दिल सफर कर रहा था। आज उसे महसूस हो रहा था कि इंसान जब गलतीं करता हैं। तो उसे आभास हो रहा था कि उसने जो गलती की, काश कि वो पहले संभल जाता।
                     आज उसे जिस्म की गरमाहट और नजदीकी की खास जरूरत महसूस हो रही थी। उसने अपना मोबाइल उठाया और अपने नजदीकी दोस्त प्रशांत भार्गव को काँल लगाया और उससे इधर-उधर की बात करने के बाद अपनी जरूरत बतलाया। सामने से प्रशांत ने कहकहे लगाये फिर बोला। यार इतना टेंशन नक्को लेने का। तुम अपने फार्म हाउस पर पहुंचो, मैं अभी तुम्हारे लिये टंच माल भेजता हूं।
                   सुनने के बाद सौरभ का दिल थोड़ा सा शांत हुआ। वो जानता था कि इंसान अपनी जरूरतों को एक हद तक ही रोक सकता हैं। उसे अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कभी ना कभी अपने आदर्शों से समझौता तो करना ही पड़ता है। फिर तो जब वो जर्मनी में पढाई कर रहा था। उस दरमियान उसने ना जाने कितनी ही लकड़ियों से संबद्ध बनाये थे। वो इस कदर हरकत करने लगा था कि उसके कारनामों से न्यूज पेपर भरने लगे थे।
ऐसा नहीं था कि उसे अपने परिवार की,अपने संस्कार की फिक्र नहीं थी। पर वो अपने आदतों से मजबूर था। उसकी आदत सी हो गई थी, जिस्म और वियर के मग की। जब तक इन दोनों चीजो की वो पूर्ति नहीं कर लेता था। उसे चैन ही नहीं मिलती थी। वो तो भारत में वापस लौटा और उसकी इच्छाओं पर लगाम लगी।
                    वो सोचो के जाले  उलझा हुआ था कि कभी- कभी ड्राइविंग में उसका हाथ फिसल जाता था और कार लहरा उठती थी। जिसे वो मुश्किल से संभालता था। आज उसके मन का दैत्य जाग उठा था, जिसके कारण उसे जिस्म की जरूरत शिद्दत से महसूस हो रही थी। सोचो में खोया हुआ वो इस तरह रहा कि उसे पता ही नहीं चला कि कब उसका फार्म हाउस आ गया। उसे पता ही नहीं चला, एकाएक जब उसकी नजर फार्म हाउस पर पड़ी। तो उसने तेजी से ब्रेक लगाए, ब्रेक लगने के कारण टायरो की आवाज से इलाका गूंज उठा। फिर सौरभ ने गाड़ी बैक करके फार्म हाउस के गेट के अंदर किया। कार पार्क की और हाँल के अंदर की तरफ बढ गया।
                           उसने आते ही देख लिया था कि पार्किंग में दूसरी कार पार्क की गई थी। इसीलिए उसके दिल को सुकून था कि उसके आरामगाह की वस्तु वहां पहुंच गई हैं। इस दरमियान उसने घड़ी पर नजर डाली। दिन के बारह बज चुके थे। ऐसे तो वो दिन के उजाले में ऐसी हरकतों का ख्वाहिश मंद नहीं था। पर उसकी जिस्मानी भूख इस तरह बढ गई थी कि क्या दिन और क्या रात, बस उसको जिस्म हासिल करना था।
              वो जब हाँल में पहुंचा, तो भौचक्का रह गया। वास्तव में वो हुस्न की मलिका थी। हाँल के बीचोबीच परे सोफे पर बैठी मानो वो उसका इंतजार कर रही थी। सौरभ ने वहां पहुंचते ही उससे सेक हैंङ किया। दोनों में औपचारिक बातें हुई। बातों ही बातों में उसने बताया कि उसका नाम मोनिका धूलर हैं और वो यहां उसके ही ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए आई हैं। सुन कर सौरभ के दिल को संतोष पहुंचा। उसने मोनिका से पुछा, आप क्या लेंगी, शाँफ्ट या हार्ङ ङ्रींक्स?
           जबाव में मोनिका मुसकुराई और बोली। आप जो पीला दे। बस सुनना था कि सौरभ व्हिश्की की दो बोतल, खाने को नमकीन और गिलास उठा लाया और टेबुल पर सजा कर सामने बैठ गया। फिर मुसकुराने लगा, उसका मतलब मानो मोनिका समझ गई, वो पैग तैयार करने लगी। फिर तो पीने का दौर शुरु हुआ, वो बढता ही गया। धीरे- धीरे उन दोनों पर नशा छाने लगा था और नशे का ही असर था कि सौरभ बहकने लगा था। वो उठा और मोनिका के सुर्ख लवो को अपने होंठों के नीचे दबा लिए। पर उसको मानो झटका लगा हो, उसे लगा कि मोनिका के होंठ बेमजा हैं। उसने अपने होंठों से मोनिका के शरीर पर चुंबनों की बौछार लगा दी। लेकिन उत्तेजित होने की जगह उसका नशा ही उतर गया।
                 वो अपनी जगह वापस आकर बैठ गया और तेजी से पैग बनाकर गले से उतारने लगा। उसकी हरकतों से हतप्रभ हुई मोनिका उसे आश्चर्य चकित देखती रही। थोड़े पल के लिए वहां सर्द खामोशी छा गई। जिसे सौरभ ने तोड़ा, वो धीरे से बोला। मोनिका अब तुम जा सकती हो, मेरा मन नहीं हैं।
लेकिन क्यों? मोनिका विस्मय बस बोली।
बस यूं ही मेरा मन नहीं हैं, बोलने के बाद सौरभ ने नोटों का बंडल निकाला और मोनिका की ओर बढा कर बोला। यह लो अपना मेहनताना, अब प्लीज मुझे अकेला छोड़ दो।
                सुन कर मोनिका एक पल को झुंझलाई, फिर नोटों का बंडल उठा कर बड़बड़ाती हुई निकल गई। थोड़े पल तक तो सौरभ अपनी हरकतों पर हैरान था। फिर उदासी के गर्त में समाता चला गया, उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि उसे क्या हो गया हैं?
                निकिता अपार्ट मेंट,इस वक्त वहां काफी तनाव फैला हुआ था। कारण था सौम्या के माता पिता, जो उसके सामने बैठे हुए थे। जबकि सौम्या बेड पर लेटी थी। उसके आँखों से अभी भी आँसू बह रहे थे। जिससे लगता था कि कुछ पहले तक वो जी भर के रोई है, समय दिन के एक बजा था!
तो बेटा, क्या इरादा हैं तुम्हारा? शुक्ला जी गंभीर होकर बोले।
पापा इरादा कैसा? आप तो जानते ही हो कि सौरभ कमीना इंसान हैं। मैं उसके बारे में सोच भी नहीं सकती। सौम्या अपने गुस्से को नियंत्रित करते हुए बोली। इस वक्त उसकी आवाज गुस्से और नफरत की अधिकता से तेज हो गई थी।
लेकिन बेटा, तुम समझने की कोशिश नहीं कर रही हो। इस बार उसकी माँ बोली।
आप लोग कहना क्या चाहते हैं, मैं तो बस इतना समझती हूं कि वो शख्स सिर्फ नफरत के लायक हैं। सौम्या जहर बुझे स्वर में बोली।
लेकिन बेटा मेरा मानना हैं कि ताली एक हाथ से कभी नहीं बजती। मैं मानता हूं कि सौरभ की अकेले की गलती नहीं हो सकती हैं। जरूर तुमने भी गलती की होंगी। शुक्ला साहब गंभीर होकर बोले।
आपका मतलब हैं कि मेरी भी गलती हैं। बिफर कर बोली सौम्या।
हां बेटा, मैं यह नहीं कहता कि सौरभ ने गलती नहीं की है। उसने गलती तो जरूर की हैं, पर उस गलती में तुम भी भागीदार हो। बोलते वक्त शुक्ला साहब की आवाज तेज हो गई थी।
आप आखिर चाहते क्या हैं? सौम्या उठ कर बैठ गई और गुस्से में बोली।
हम लोग तो बस इतना चाहते हैं कि बेटा सौरभ अच्छे परिवार का लड़का हैं। तू एक बार कोशिश तो करके देख लो समझौते का। अगर बात बनती हैं, तो हम लोग गंगा नहायें समझो। बोलते- बोलते शुक्ला जी भावुक हो गए।
नहीं पापा, ऐसा कभी भी नहीं हो सकता। अब मैं कभी उस कमीने से समझौता नहीं कर सकती। पापा यह दिल हैं मेरा, खिलौना नहीं। मैं कभी भी उसे माफ नहीं करूंगी, मैं उसे सजा दिलवा कर रहूंगी। सौम्या गुस्से की अधिकता से भभकते हुए बोली।
नहीं बेटा ऐसा नहीं बोलते, प्लीज एक बार तू समझौता की कोशिश तो कर। मेरी ही खातिर सही, प्लीज बेटा। हालात को समझ। इस बार उसकी माँ लगभग गिड़गिड़ा ही पड़ी। 
ठीक हैं माँ-पापा, आप लोग कहते हैं, तो मैं तैयार हूं । सौम्या ने हथियार डालते हुए कहा।
              उसका कहना था कि शुक्ला दंपति में खुशी की लहर छा गई। उसके फैसले से उस अपार्ट मेंट की दीवार भी मानो खिलखिला उठी। शुक्ला दंपति उठे और उन्होंने वैभव शांडिल्य को काँल लगाई और उनको सिलसिलेवार सारी बात बताई। फिर तो उधर से हर्ष से डुबा हुआ स्वर उभड़ा। तो फिर देर किस बात की, हम लोग कल सुबह ही मिलते हैं, आप सौम्या को लेकर आ जाओ। फोन डिस्कनैक्ट होने के बाद शुक्ला दंपति ने राहत की सांस ली!
                    दूसरे दिन सुबह से ही शांडिल्य बिला में गहमा- गहमी थी। खुद वैभव शांडिल्य सारी तैयारियों को देख रहे थे। उन्होंने खास इंस्ट्रक्सन दिया था कांबले को। तैयारियां तो ऐसे हो रही थी, मानो कोई खास मेहमान आ रहे हों। तभी चहल पहल सुन कर सौरभ की आँख खुली। निंद खुलते ही सबसे पहले उसने घड़ी की ओर देखा। सुबह के आठ बजे थे, समय बहुत हो गया था। सूर्य की किरणें खिड़की से छन कर आ रही थी। वातावरण के स्पंदन को महसूस करके वो उठकर बैठ गया। तभी उसका सिर चकराने लगा और उसे कल की बातें याद आ गई। वो तो अपने फार्म हाउस पर था, हां उसने गम गलत करने के लिए खुब शराब पी थी। उसके बाद उसे होश नहीं रहा था। वो समझ नहीं पा रहा था कि वो फिर वापस कैसे अपने बंगले पर आया।
                      वो अपने विचारो के झंझा वात में उलझा हुआ था, तभी वहां वैभव ने कदम रखा और उसे जगा हुआ देख कर मुसकुरा परे और उसे जल्द तैयार होने के लिए कहा। सौरभ की हिम्मत नहीं हो रही थी। उसके दिलो- दिमाग पर कल का नशा हैंगओवर कर रहा था। फिर भी वो उठा और वैभव के चरणों में झुक गया। पिता तो पिता होता हैं। वैभव ने उसे उठाकर गले से लगा लिया और प्यार से उसके पीठ पर थपकी करने लगे। वो लाख बुरा था लेकिन माता पिता का सम्मान करता था और यही बात थी कि वैभव को लगता था कि उनका लाड़ला अनमोल मोती हैं और एक दिन जरूर इसका रंग निखरेगा।
                     खैर जो भी हो, वैभव ने उसे जल्द तैयार होकर बाहर आने को कहा। सौरभ उनसे अलग होकर वाथरुम में चला गया और वैभव बाहर हाँल की ओर बढ गए। समय क्रमशः पंख लगाए बढ रहा था और उसी गति से वैभव के दिलो की धड़कन बढती जा रही थी। पिता होने के नाते उन्हें भय था कि ना जाने आगे क्या हो। तय समय पर गेट से इनोवा कार ने प्रवेश किया। कार ने गेट से प्रवेश किया और वैभव दौड़ पड़े। अगवानी के लिए। गाड़ी पोर्च में लगी, उसमें से शुक्ला दंपति उतरे। साथ में सौम्या थी, सौम्या को देखकर वैभव की बांछे खील  गई। जबकि सौम्या ने झुक कर उसके पाँव छूए !
                   फिर वे लोग अहाते में लगी आराम चेयर पर बैठ गए। तब तक सौरभ भी तैयार होकर आ गया। उसने झुक कर शुक्ला दंपति के पांव छूए। फिर सौम्या और सौरभ की आँखें मिली। फिर तो मानो दोनों तरफ से नफरत की फुलझड़ी जली हो। लेकिन दोनों ने ही खुद को संभाला और एक दूसरे से हाथ मिलाया। उनकी हरकतें वैभव से छुप नहीं सकी थी। लेकिन उनका मानना था कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा। तब तक माली काका उन लोगों के लिए काँफी का मग और नाश्ता रख गया था।
अच्छा तो हम लोग थोड़ा सा फूल हो ले काँफी और नाश्ता से। देखो ना माली काका ने हम लोगों के लिये बड़े ही प्रेम से तैयार किया हैं। वैभव ने वहां बोझिल स्थिति को सामान्य करने के लिए कहा और उनकी बातों से शुक्ला दंपति ठठाकर हंस पड़े। फिर वे लोग नाश्ता करने में बीजी हो गए। तभी गेट से काले रंग की एस यु वी कार ने प्रवेश किया। सभी की नजर उधर ही टीक गई। गाड़ी पार्किंग में खड़ी होने के बाद उसमें से दयाल महंतों उतरे और तेज कदमों से चलते हुए उनके पास पहुँचे। उनके हाथ में ब्लू रंग की फाइल थी।
या रब सब भला करें। आप लोग पहले आ गए, मैं थोड़ा सा लेट हो गया। दयाल महंतों उन लोगों के पास पहुंच कर बोला। फिर उसने उन लोगों से हाय हैल्लो किया।
                            उनको आते ही माली काका उनके लिए भी काँफी और नाश्ता सर्व कर गए। फिर नाश्ता काँफी के दरमियान ही उन लोगों में इधर उधर की बातें होती रही। जब सब नाश्ता काँफी से फारिग हुए, तब दयाल महंतों सौम्या की तरफ मुखातिब होकर बोले।
सौम्या बेटा, हम लोग यहां किसलिये इकट्ठा हुए हैं। वो तो तुम्हें मालूम ही होगा।
जी अंकल। सौम्या ने छोटा सा वाक्य बोला।
तो बेबी, इस फाइल पर तुम दोनों सिग्नेचर कर दो। दयाल महंतों उत्साहित होकर बोले। इतना सुनना था कि नफरत की लहर सौम्या और सौरभ,दोनों के चेहरे से होकर गुजरी। लेकिन सौम्या ने फाइल थामा, पन्ने पलटे और कलम उठा कर सिग्नेचर कर दिया। सौरभ ने भी बे-मन से साइन किया। तभी सभी लोगों ने ताली बजाई, खुशी का माहौल सा बन गया।
मैं जानता था कि तुम लोग जरूर हमारी भावना को समझोगे। आज मेरे मनोरथ पूरे हुए। शाम को तुम दोनों की मंगनी का आयोजन किया हैं। अब तुम लोग ऐसी कोई हरकत मत करना, जो हम लोगों के दिलो को ठेस पहुंचाए। भावनाओं के सागर में डूबते हुए वैभव शांडिल्य बोले।
                   उनके घोषणा करते ही वहां तालियों की गड़गड़ाहट गुंज उठी। शाम होते- होते शांडिल्य व
बिला को दुल्हन की तरह सजा दिया गया था। कांबले की खुशी का ठिकाना नहीं था, वो दौड़- दौड़ कर सारी तैयारियों का जायजा ले रहा था। खुशी की कोई सीमा तो वैभव शांडिल्य की भी नहीं थी। वो खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। आज ऐसा लगता था कि उनपर जवानी फिर से चढ गई हो। आज उन्हें कमी खल रही थी, तो सिर्फ अपने धर्मपत्नी की, आज वो अगर यहां होती। तो खुशी कई गुणा बढ जाती। वो भावनाओं में प्रवाहित हो रहे थे, तभी उनका मोबाइल बजी।
वो यारा वो यारा, मिलना हमारा।
उन्होंने मोबाइल निकाल कर देखा, सामने उनकी जीवन संगिनी थी। फिर तो वे फोन लाइन पर बीजी हो गए। इधर-उधर की ढेर सारी बातें, बात जज्बात और कभी- कभी आँखों में छलकते आँसू। भावनाओं का ज्वार और उसमें एक दूसरे को दिलासा देते हुए। काफी वक्त बीत गया दोनों को बात करते हुए। तब वैभव ने ही फोन लाइन डिस्कनैक्ट किया। शाम ढल चुकी थी, इसी के साथ शांडिल्य बिला रोशनी से दुल्हन की तरह नहा गई और खूबसूरती से दमकने लगी।
              तय समय से पहले ही मेहमानों के आने का सिलसिला शुरू हो गया। कांबले मेहमानों के स्वागत में तल्लीन था। खुशी तो माली काका को भी थी, वो पूरे जोश-खरोश से मेहमानों की सेवा में जुट गए। मेहमानों के आने का ताता लगा हुआ था और लगे भी क्यों नहीं। बिजनेस मैन होने के साथ ही वैभव का समाज में काफी रुतबा था। रात ज्यों- ज्यों छा रही थी,शांडिल्य बिला की सुन्दरता बढती जा रही थी। तभी तय समय पर गेट से इनोवा कार ने प्रवेश किया।
             कार के प्रवेश करते ही वैभव पार्किंग की ओर दौड़े और गाड़ी के रुकते ही नजाकत से सौम्या को उतारा। सौम्या ने उतरते ही उनके चरणों में झुक कर प्रणाम किया। बस वैभव गदगद हो गए। वे सौम्या के माथे पर ममता से सिंचित हाथ फेरा और हाँल की तरफ लेकर बढ चले। सौम्या के आते ही हाँल में हलचल बढ गई थी। जितने मुख, उतनी बातें, शुक्ला दंपति भी मेहमानों में घुल मिल गए। तभी सिढीयों पर सौरभ दिखा, उसे देखते ही हाँल में चहल पहल बढ गई। पहले तो वैभव ने सौम्या और सौरभ को मिलवाया, दोनों एक दूसरे को देख कर शर्मा उठे। लेकिन उनके आँखों में एक अजब किस्म की चिंगारी थी। जो वहां और किसी को नजर नहीं आ रही थी और वो चिंगारी थी नफरत की। जो दोनों एक दूसरे से करते थे।
               समय की अनुकूलता देख कर वैभव ने इको वायरलेस थामा और पूरे जोश-खरोश से बोले। लेङीज एण्ड जेंन्टल मैन,आज खुशी का दिन है। जिसका कि हमने वर्षों से इंतजार किया था। मैं आज अपने पुत्र सौरभ शांडिल्य का सौम्या शुक्ला के साथ इंगेजमेंट की घोषणा करता हूं और दोनों की शादी अगले सप्ताह पटना के कंकर बाग के लाल भवन में आयोजित की जाएगी। जब वैभव ने अपनी बात खत्म की, तो पूरा हाँल तालियों के गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
                     सौम्या और सौरभ ने आगे बढ कर इंगेज रींग एक दूसरे को पहनाया, इसी के साथ महफिल के रंग जम गए। सभी पार्टी का लुफ्त उठाने में व्यस्त हो गए। महफिल ने रंग जमाये, तो जोड़े एक दूसरे से ताल मिला कर थिरकने लगे। लेकिन इस सबसे अलग सौम्या ने सौरभ का हाथ पकड़ा और उसे उसके बेडरूम में ले गई। वहां पहुंच कर दोनों ने राहत की सांस ली!
तुम्हें तो मजा आ रहा होगा ना, आखिरकार तुम मुझे अपना गुलाम बनाने में सफल हुए। सौम्या गुस्से की अधिकता से बोली।
मजा मुझे नहीं बल्कि तुम्हें आ रहा होगा। तुम्ही तो चाहती थी कि मैं बर्बाद हो जाऊँ, सो कर दिया, अब जले पर नमक छिड़कने के लिए साथ आना चाहती हो। सौरभ कुटिलता से मुसकुरा कर बोला।
             सुनकर सौम्या के हृदय में नफरत की ज्वाला भभकने लगी, वो बेड पर बैठ गई और अपने सांसो को नियंत्रित करने लगी। जबकि सौरभ दीवार से लगा खड़ा रहा। पर दोनों के चेहरे पर बेचैनी थी और यही बात वहां माहौल को तंग कर रही थी। एकाएक सौम्या मुसकुरा कर बोली। जानते हो, मैं ने तुमसे रिश्ते का प्रपोजल क्यों स्वीकार किया, जबकि मैं तो तुमसे नफरत करती हूं।
नहीं, मुझे मालूम नहीं,सौरभ मासूमियत से बोला।
बस इसीलिए जालिम कि मैं तुमको चाहती नहीं हूं और ना ही किसी और का होने देना चाहती। मैं जानती थी कि मैं अगर ना कहती हूं। तो तुम किसी और के बांह में झूमोगे, जो मुझे मंजूर नहीं था। बोलने के साथ ही सौम्या के हाथों में रिवाल्वर चमका। उसने निशाना लगाया और फायर कर दिया, गोली सौरभ के सीने में लगी। वो लहरा कर झुका और वहीं बैठ गया। तभी सौरभ के हाथ में भी रिवाल्वर चमका। उसने भी सौम्या की तरफ फायर झोंक दिया। गोली सौम्या के पेट में लगी, वो भी लहरा कर बेड पर लूढक गई।
                   तब सौरभ अपने दर्द को पीने की कोशिश करता हुआ मुसकुरा कर बोला। मैं भी तो नहीं चाहता था कि तेरे जुल्फों से कोई दुसरा खेले। इसीलिए तो हामी भरी थी, अब जाकर इंतकाम पूरा हुआ। इधर वे लोग घायल होकर परे थे, उधर हाँल में गोलियां चलने की तेज आवाज ने हर कंप मचा दिया। कितनों के हाथों से तो जाम का भरा प्याला ही छूट कर फर्श पर गिरा और चुर- चुर हो गया। हाँल में भगदड़ सी मच गई, सभी सौरभ के रूम की ओर भागे। वहां की स्थिति देख कर सभी के होश उड़ गए। वैभव तो हतप्रभ थे, उन्हें तो समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करें। उन्होंने क्या सोचा था और क्या से क्या हो गया।
                 आखिरकार कांबले ने हिम्मत दिखाई, उसने सौरभ को बांहों में उठाया। तब जाकर वैभव की भी तंद्रा टूटी, वे भी सौम्या को बांहों में उठा कर बाहर भागे। पलक झपकते ही दोनों को इनोवा कार में डाला गया। स्वयं वैभव ने ड्राइवर शीट संभाली, फिर तो कार हवा से बात करने लगी। कांबले ने लीलावती हाँस्पिटल को फोन कर दिया था, अतएव कार पोर्च में लगते ही दोनों को स्ट्रेचर पर लेकर इमरजेंसी वार्ड में ले जाया गया। इस दरमियान वैभव पसीने से पुरी तरह नहा चुके थे, अनजाने भय से उनका हृदय कांप रहा था। आँखों से आँसुओं की धार बह रही थी, कहां तो उन्होंने सपने सजाए थे। खुशियों के और कहां उसके दामन में कांटे ही कांटे चुभ गए थे।
                 उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वो क्या करें। उनसे सौरभ के परवरिश में कहां चुक हुई थी कि उन्हें आज यह दिन देखना पड़ा। वो हाँस्पिटल की दीवार से सटकर खड़े हो गए। तभी उनके कंधे पर किसी के हाथों का स्पर्श हुआ। उन्होंने पलट कर देखा तो प्रभात शुक्ला थे। वो शुक्ला के गले लग गए और हिचकिया बांध कर रोने लगे। थोड़ी देर बाद जब मन हल्का हुआ तो इमरजेंसी वार्ड की ओर लपके।
             पूरी अनिश्चितताओं में वो रात कटी। डाक्टर की टीम दोनों को बचाने की भरपूर कोशिश कर रही थी। तो इधर सभी के चेहरे पर गम के घनघोर बादल छाए हुए थे। सुबह होते ही आपरेशन थियेटर का लाइट बुझा और सभी की सांसे थम सी गई। तभी आपरेशन थियेटर का दरवाजा खुला और उसमें से डाक्टर माथुर निकले। उनको देखते ही वैभव उनकी ओर लपके।
मिस्टर शांडिल्य, अब चिन्ता की बात नहीं। दोनों ही खतरे से बाहर हैं, माथुर मुसकुरा कर बोले। तो सभी की जान में जान आई, जबकि माथुर ने फिर कहा। हालांकि रक्त ज्यादा निकल जाने के कारण उन दोनों को होश नहीं आया है। पर चिन्ता की बात नहीं, दिन के बारह बजते-बजते वे होश में आ जाएंगे। फिर आप लोग मिल लीजिएगा।
                    उसके बाद दोनों को आपरेशन थियेटर से शिफ्ट किया गया। इस बीच इंस्पेक्टर शांन्तनु साहा ने आकर सारी औपचारिकताएँ पूरी की। शांडिल्य बिला में जो घटना घटी थी, वो न्यूज चैनल बालो के लिए मसाला बन गया। प्रिंट और इलेक्ट्रोनीक मीडिया में इस न्यूज को बढा चढा कर दिखाया जाने लगा और पूरे शहर में यही न्यूज छा गया। जिसके मुंह देखो वही बात। खैर सौम्या और सौरभ को ठीक होने में लगभग आठ दिन लगे। उसके बाद दोनों को शांडिल्य बिला ले आया गया।
               हाँस्पिटल से आते- आते शाम हो चुकी थी। अँधेरा घिरने लगा था, कार ने जब बिला में प्रवेश की, तो पूरे बिला की लाइट जलने लगी। उसके बाद माली काका दौड़ पड़े कार के पास। उनका चेहरा मलीन था और उन लोगों के सही सलामत आने पर उनके चेहरे पर चमक छा गई थी। अँधेरे में भी स्पष्ट दिखता था कि रो-रो कर उनकी आँखें सूज गई हैं। कार पोर्च में रुकी, वैभव ने दोनों को उतरने में मदद की। कार के दूसरी तरफ से शुक्ला दंपति के साथ कांबले भी उतरा। सभी लोग हाँल में आ गए।
          हाँल में सौम्या और सौरभ, दोनों को सोफे पर बिठाया गया। वैभव भी सौरभ के पास ही बैठ गए। बाकी सभी लोग वाथरुम फ्रेश होने के लिए चले गए। तभी माली काका काँफी का प्याला ले आए और उन्होंने सौरभ और सौम्या को थमा दिया, तीसरा कप वैभव ने खुद उठा लिए। तब तक कांबले और शुक्ला दंपति भी आ गए थे। उन लोगों ने भी काँफी का मग उठा लिया और सामने बाला सोफे पर बैठ गये। माहौल थोड़ा तंग था, सौरभ और सौम्या का चेहरा सपाट था। काँफी खतम करने के बाद वैभव ने मुसकुरा कर सौम्या को संबोधित किया।
सौम्या बेटा।
जी अंकल। सौम्या ने धीरे से कहा।
बेटा मैं आप दोनों को कुछ दिखाना चाहता हूं। शायद वो आपके लिए प्रेरणा स्रोत हो। उसके बाद मैं आप लोगों को वो बात बताऊँगा। जो हम सभी के लिए काम की चीज है। भावुकता में बोले वैभव, जबकि ऐसा नहीं लगा कि उनके बातों का कोई खासा प्रभाव दोनों पर पड़ा हो। तभी वैभव ने इशारा किया, मानो यह कोई संकेत हो। कांबले उठा और प्रोजेक्टर उठा लाया। फिर थोड़े से छेड़छाड़ के बाद पेन ड्राइव लगा कर वीडियो चालू कर दिया।
        वीडियो चालू होने के साथ ही हाँल में सन्नाटा पसर गया। हाँस्पिटल के आपरेशन थियेटर का दृश्य, कैसे डाक्टर दोनों का आपरेशन कर रहे थे। पल- पल डाक्टरों के चेहरे पर बढती परेशानी, और इस सब के बीच सौम्या और सौरभ के होंठों से निकलते वो वाक्य, जो डाक्टरों को भी भावुक कर रहे थे। सौम्या बेहोशी में भी बार- बार बोल रही थी। प्लीज डाक्टर सौरभ को बचा लो, जबकि सौरभ सौम्या को बचाने के लिए बोल रहा था।
                    इशारा हुआ और कांबले ने वीडियो बंद कर दिया। तब वैभव सौरभ और सौम्या से मुखातिब हुए। अच्छा तुम दोनों तो काफी पढे-लिखे हो। मुझे बताओ कि वीडियो से तुम दोनों को क्या सीख मिली। जबाव में सौम्या और सौरभ ने सिर्फ गरदन हिलाई। दोनों के आँखों से आँसू बह रहे थे, गला अवरूद्ध हो गया था। जबकि वैभव फिर बोलने लगे। तुम लोग नई पीढी के पुरोधा बनते हो, तुम लोग महत्वाकांक्षा में डूब जाते हो और बड़े शहरों की ओर पलायन कर जाते हो। पर जीवन जीने की कला नहीं सीख पाते। अपने अहंकार, सुख-सुविधा में दूसरे की भावना कुचलना जानते हो।
               वहां चुप्पी छा गई थी, सभी दम साधे उनकी बातें सुनते जा रहे थे। जबकि वैभव फिर बोले, मैं ने कहा था कि ब्याह कर लो। यह जीवन की गाड़ी चलाने के लिए जरूरी हैं। पर तुम दोनों ने ही इनकार किया। और मुंबई चले आए,हां तुम दोनों की शादी पहले ही तय हो चुकी थी। पर तुम लोग रिश्तों के डोर को क्या समझो। तुम्हें तो प्रेम करना ही नहीं आता। प्रेम कहते किसे है, उसी सत्य से अनजान हो, प्रेम पाने का ही नहीं खोने का भी नाम हैं। प्रेम में समर्पण होता है, इसमें अधिकार दिखाया नहीं जाता। वस्तुतः स्वतः हो जाता है। हां मुझे अब मुझे अनुभूति हो गई हैं कि तुम लोग अब प्रेम के वास्तविक रूप को पहचान गए होंगे।
जी पिताजी, हम समझ गए है, सारी परेशानियाँ अब दूर हो गई है। सौरभ और सौम्या एक साथ बोल पड़े।
हां और तुम लोग एक दूसरे को बखूबी समझ लो। इसलिए तुम लोग का टिकट कटवा दिया हैं। तुम लोग पटना जाकर एक साथ रहो और एक दूसरे को महसूस करो। तब तक यहां का व्यापार मैं देखूंगा और कांबले मेरी मदद करेगा। जब तुम लोग प्यार का असली मतलब समझ लोगे। तो वहां हम लोग भी आएंगे और तुम दोनों की शादी कर देंगे।
जी पिताजी, इस बार सौरभ शर्मा कर बोला। उसके बोलते ही सभी के चेहरे पर मुस्कुराहट छा गई।
(यह पहला भाग हैं, दूसरे भाग में सौरभ और सौम्या के दिल में एक दूसरे के लिए उभरता हुआ प्रेम। छोटे शहर के गलियों की कुछ अनकही शरारत। प्यार की छोटी-छोटी बातें, गंगा किनारे की अनकही कहानी और विभाग शांडिल्य की हरकतें, बहुत कुछ हैं।)

17 सितम्बर 2022

मदन मोहन मैत्रेय

मदन मोहन मैत्रेय

17 सितम्बर 2022

धन्यवाद!....मैम

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यह भी एक छोटी सी कहानी है, जो कि आज के समय को परिभाषित करती है। आज-कल जिस प्रकार से युवा परिवारिक रिश्ते को महत्व नहीं देते और अलग रहने की कोशिश करते है। आज-कल जिस प्रकार से हमारे समाज में लव का मतलव सिर्फ और सिर्फ कामनाओं की पुर्ति रह गया है और जिस प्रकार से हम पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण करकेे लीव इन रिलेशनशीप में रहने को लालायित हो गए है, कहानी उसके दुष्परिणाम दिखाता है। मदन मोहन"मैैत्रेय

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