आज के युग में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। अब हर क्षेत्र में में वह अपनी भागीदारी निभा रही हैं। महिला सशक्तिकरण का भी खूब डंका बज रहा है। लेकिन प्रश्न यह है की आज महिलाओं के खिलाफ अपराध भी तेजी से बढ़े हैं। देश की राजधानी दिल्ली में भी वे सुरक्षित नहीं है। निर्भया ,श्रद्धा, अंजलि ने जाने कितनी लड़कियां आज इंसाफ के लिए समाज की तरफ देख रही हैं। पुरुष होने का अहम आज भी लड़कियों की प्रगति में सबसे बड़ा बाधक है।
सुरक्षा और सम्मान के इतने वादों के बाद भी लड़कियों की सुरक्षा व आत्मसम्मान
उन्हें नहीं मिल पा रहा है। प्रश्न है तो
उत्तर भी हमें खोजने होंगे। हमारी शिक्षा व्यवस्था हमें डिग्री तो दे रही है पर संस्कार और नैतिकता जैसे शब्द आज की युवा पीढ़ी के बीच दकियानूसी हो गए हैं। हम उन्हें नारी का सम्मान करना नहीं सिखा पा रहे हैं। यही कारण है की महिलाओं के प्रति अपराधों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में जरूरत है कि हमारे कानून कठोर हो, तथा स्वयं स्त्री को आगे आकर मां के रूप में अपने बच्चों को वे संस्कार देने होंगे ताकि नारी का शोषण न हो। एक मां ही अपने बच्चों को ऐसे संस्कार व परवरिश दे सकती है कि उसके बच्चे अपराध की ओर ना जाए। लेकिन उसके लिए उसे खुद सशक्त,शिक्षित, सबला होना पड़ेगा। जो खुद दीन हीन हो वह यह काम नहीं कर सकती।
अतः आज के भौतिकता वादी युग में स्त्री को भी अपने अधिकारों के प्रति, अपने सम्मान के प्रति सचेत, जागरूक होना पड़ेगा। तथा अपनी सुरक्षा के लिए भी उसे जुडो कराटे या इस तरह प्रशिक्षित होना चाहिए कि वह अपनी तथा दूसरों की भी सुरक्षा कर सकें। अपराध पहले भी होते थे, क्या भरी सभा में दुशासन का द्रोपदी की साड़ी खींचना अपराध नहीं था। और सारे पुरुष चुप बैठे थे। अत, जरूरत है कि नारी शक्ति अपने खिलाफ होने वाले अपराधों के लिए चुप ना बैठे।और जब तक अपराधी को सजा ना मिले, आवाज उठाई जानी हीं चाहिए।
और सरकार की तरफ से से भी इन अपराधों पर अंकुश लगना चाहिए।
(© ज्योति)