देवभूमि उत्तराखंड आजकल चर्चा में है, कारण जोशीमठ में आई भूस्खलन की खबरें। घरों में दरारे आ रही हैं, पहाड़ सरक रहे हैं। लोग कड़ाके की ठंड में निर्वासित जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं। अपने घरों को छोड़कर वह कहां जाएं? कितना दुखदाई है घरों में दरारे आ रही हैं। पर प्रकृति के आगे सभी विवश। विकास के नाम पर पेड़ों को काटा गया जंगलों को
काटा गया। आज उसी की परिणाम है जोशीमठ में पहाड़ का सरकना। भौतिकता की अंधी दौड़ में हमने प्रकृति पर बहुत अत्याचार किए हैं। यही कारण है की आज प्रकृति हमारे विरोध में खड़ी है। हम बेबस हैं, पहाड़ में घरों में दरारे क्यों आ रही हैं। यह चिंता का विषय है, क्या प्रस्तावित टनल की वजह से? आज हम प्रश्नों के उत्तर ढूंढ रहे हैं पर हम यह क्यों भूल जाते हैं की हमने ही प्रकृति को रौंदा है। विकास के नाम पर पहाड़ों पर काट काट कर हमने सुविधाएं दी। हमने वहां कालोनियां बसाई,
सुविधाओं के नाम पर हमने पहाड़ों को पहाड़ नहीं रहने दिया।
पर्यटन के नाम पर हमने वहां पर पर्यावरण प्रदूषण का जाल बिछा दिया। आज जब प्रकृति अपने रौद्र रूप में हमें समझा रही है की अपनी स्वार्थपरता के लिए मनुष्य ने क्या नहीं किया?
तब भी सबक लेने के लिए हम तैयार नहीं हैं। हमारे ग्लेशियर पिघल रहे हैं, कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन से विश्व का तापमान बढ़ गया है। पर प्रदूषण को रोके कैसे? यह हम नहीं सोच रहे हैं, जब भी कोई आपदा आती है। तब हम प्रकृति को कोसते हैं, पर मनुष्य को यह भी याद रखना चाहिए की वह जो बोता है, वही काटेगा। 2013 की केदारनाथ आपदा को हम भूल भी नहीं पाए हैं, अब यह जोशीमठ की आपदा। लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना व प्रकृति का सानिध्य एकमात्र उपाय है जिससे हम मानव को प्रकृति के कहर से बचा सकते हैं। हमारे पूर्वज प्रकृति को पूजते थे, उनका विकास प्रकृति के विकास के साथ था। अतः जरूरी है मनुष्य पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ ऐसे विकास को प्राथमिकता दें, जहां प्रकृति का दोहन ना हो। प्रकृति का सानिध्य ही हमें प्रकृति को समझने उसे प्यार करने की सीख दे सकता है।
(© ज्योति)