फुर्सत के कुछ पलों में
फिर से अपने को ढूंढने निकली हूं
अपने गीतों में ,अपनी कहानियों में
कुछ टूटे सपने जोड़ने निकली हूं।
फुरसत के कुछ पलों में
फिर से अपने को तराशने निकली हू
अपनी रचनाओं में ,अपने लेखों में कुछ अधूरे ख्वाब पूरा करने निकली हूं।
फुरसत के कुछ पलों में
कुछ नये चित्र बनाने निकली हूं
कुछ नये ख्वाब सजाने निकली हूं
बदरंग होती जिंदगी में
कुछ नए रंग भरने निकली हूं।
। फुर्सत के कुछ पलों में
धूल लगी तस्वीरों से धूल हटाने निकली हूं
। पुरानी पड़ी जंजीरों से
खुद को खोलने निकली हूं।
फुर्सत के कुछ पलों में
अपने से सवाल
अपने से ही जवाब छोड़कर
दुनिया नई बनाने निकली हूं।
(©ज्योति)