आज राष्ट्रीय बालिका दिवस है,। बालिका शिक्षा, बालिका उत्थान, लैंगिक भेदभाव दूर करना, बालिकाओं को समाज में समानता का अधिकार देना इसका उद्देश्य है। आज हमारी बालिकाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। वे हर क्षेत्र में नए कीर्तिमान बना रही हैं। पर प्रश्न यह है की आज भी हम जब गांव की ओर देखते हैं तो बालिका शिक्षा ,बालिका समानता जैसी बातें व्यर्थ प्रतीत होती हैं। क्योंकि अभी भी लड़कियां उपेक्षित हैं, बेटा ,बेटी में फर्क होता है। लड़कियों को लड़कों की अपेक्षा कमतर आंका जाता है।
पुरुष प्रधान समाज में लड़कियों को बोझ समझा जाता है,
उन्हें जो पद समाज में प्राप्त होना चाहिए जो महत्व मिलना चाहिए वह नहीं मिलता। जबकि कहा जाता है कि स्त्री को शिक्षित करने का मतलब है दो घरों को शिक्षित करना। पर आज भी स्त्रियों को समाज में वह सम्मान नहीं मिलता वह अधिकार नहीं मिलते जिसकी वह हकदार है। अतः जरूरत है
कि स्त्रियों में समाज में जागरूकता आए। बहू और बेटी का फर्क समाप्त हो। बेटा और बेटी में भेदभाव ना किया जाए। सरकार ने स्त्रियों के लिए बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ, लाड़ली, जैसी कई योजनाएं शुरू की हैं पर समाज में परिवर्तन तभी आएगा जब स्त्रियां खुद जागरूक होंगी ,शिक्षित होंगी। अतः हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम बेटे और बेटी में भेद नहीं करेंगे। तभी हमारा राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाना सार्थक है जब समाज के निर्माण में बालक और बालिका दोनों ही समर्थ होकर शिक्षित होकर अपना योगदान दे सकें। समाज के विकास व उन्नति के लिए दोनों की प्रगति जरूरी है। लड़कियां नहीं होगी तो मां, बहन , बहु, पत्नी जैसे रिश्ते कहां से मिलेंगे।
अतः समाज को जागरूक करना पड़ेगा ताकि लड़कियां अपने अधिकारों को प्राप्त कर समाज को नई दिशा दे सके।
( ©ज्योति,)