भारत की संसद द्वारा पारित यह एक अधिनियम है जिसके द्वारा सन 1955 के नागरिकता कानून को संशोधित करके यह व्यवस्था की गई है कि 31 दिसंबर 2014 के पहले पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिंदू ,बौद्ध , जैन सिक्ख, पारसी एवं ईसाईयों को भारत की नागरिकता प्रदान की जा सकेगी। इस विधेयक में भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए आवश्यक 11 वर्ष तक भारत में रहने की शर्त में भी ढील देते हुए इस अवधि में को केवल 5 वर्ष तक भारत में रहने की शर्त के रूप में बदल दिया गया है। इस बिल को लोकसभा ने 10 दिसंबर 2019 को, पारस पति ने 12 दिसंबर को स्वीकृति दे दी यह विधेयक बन गया। 20 दिसंबर 2019 को पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देकर से लागू भी कर दिया गया। भारत में इस विधेयक का
विरोध हो रहा है। लोगों ने इसे अल्पसंख्यक विरोधी बताया है।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ,जामिया मिलिया में भी इसका विरोध हुआ। अल्पसंख्यकों ने इसे मौलिक अधिकारों के खिलाफ ,भेदभाव पूर्ण, प्रशासन में कठिनाई, द्विपक्षीय संबंधों में बाधक व विशेष समुदाय के खिलाफ बताया है। जबकी सरकार का कहना है यह है सहानुभूति शील और सुधारात्मक है ।जो प्रवासी 31 दिसंबर 2014 से भारत में अवैध रूप से रह रहे हैं अब भारतीय नागरिकता हेतु आवेदन कर सकते हैं। यह विधेयक अभी कानून बनने के लिए लंबित है। आशा है विरोध के बीच कुछ हल निकलेगा और देश में अवैध प्रवासी जो इतने सालों से रह रहे हैं उन्हें न्याय व अधिकार मिलेगा। आशा है सरकार का जो भी विरोध हो रहा है,। सरकार उस पर व्यापक चर्चा करके ही इसे कानूनी जामा पहनाते।
(©ज्योति)