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मन

9 जून 2022

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है मनाना या मना करना कठिन।

मन सबों को छोड़ पाता छन नहीं।

तब भला कैसे न मनमानी करे।

है किसी के मान का जब मन नहीं।


काम के सब भले पथों को तज।

फँस गया बार बार भूलों में।

छोड़ फूले फले भले पौधो।

मन भटकता फिरा बबूलों में।


ठान उस ने न कब बुरी ठानी।

कब ठिठक हम गये न ठन गन से।

बैठ पटरी सकी न कपटी से।

कब पटी नटखटी-भरे मन से।


जब गया घर जान सारी बात का।

तब भला कैसे न घरजानी करें।

हैं उसे सामान मनमाने मिले।

मन भला कैसे न मनमानी करे।


संग पासँग है कड़ापन में।

ठोस इस्पात है नहीं ऐसा।

है न वैसा कठोरपन उसमें।

काठ है कब कठोर मन जैसा।


छिन गया आराम दुख दूना हुआ।

कर रहा है रोग सौगुना सितम।

तन गया तन बिन मिला धन धूल में।

पर हुआ मन का कमीनापन न कम।


दे नहीं पेर पीस औरों को।

जल रहें, बन न जाँय ओले हम।

बात जितनी कहें मोलायम हो।

हो न मन की मुलायमीयत कम।


खोलने पर नयन न खुल पाया।

सूझ पाया हमें न पावन थल।

लोकहित जल मिला न मिल कर भी।

धुल न पाया मलीन मन का मल।


है नहीं परवाह सुख दुख की उसे।

जो कि सचमुच जाय बे-परवाह बन।

तब बलंदी और पस्ती क्या रही।

जब करे मस्ती किसी का मस्त मन।


तो उसे प्रेमरंग में रँग दो।

वह सदा रंग है अगर लाता।

लोकहित के लिए न क्यों मचले।

मन अगर है मचल मचल जाता।


प्यास पैसों की उन्हें है जब लगी।

क्यों न तो पानी भरेंगे पनभरे।

जग-विभव जब आँख में है भर रहा।

किस तरह तो मन भरे का मनभरे।


दौड़ने में ठोकरें जिसको लगीं।

वह भला कैसे न मुँह के बल गिरे।

फेर की है बात इस में कौन सी।

जो किये मन फेर कोई मन फिरे।


बैल में बैलपन मिलेगा ही।

क्यों करेगा न छैलपन छैला।

क्यों न तन में हमें मिलेगा मल।

क्यों न होगा मलीन मन मैला।


फूल किसको गूलरों से मिल सके।

फल सरों से है न कोई पा सका।

मोतियों से मिल सका पानी किसे।

कौन मन के मोदकों को खा सका।


है सराबोर सब रसों में वह।

सन सभी भाव में वही सनकी।

खेल नित रंग रंग के दिखला।

रंग लाती तरंग है मन की।


क्यों सकेगा न सुख-बसन जन बुन।

कात हित-सूत तन अगर न थके।

तन सके क्यों न तो अमन ताना।

मन अगर बन अमन-पसंद सके।


बात हित की कब बताती है नहीं।

कब न समझाती बुझाती वह रही।

मान कर बैठे मनाने से खिझे।

मति करे क्या, जो न मन, माने कही।


पत्तियों तक को बहुत सुन्दर बना।

हैं उसी ने ही सजाये बाग बन।

फल उसी से हैं फबीले हो रहे।

फूल फबता है मिले मन की फबन।


हैं उसी में भाव के फूले कमल।

जो सदा सिर पर सुजन सुर के चढ़े।

हैं उपज लहरें उसी में सोहतीं।

सोत रस के मन सरोवर से कढ़े।


हैं उसी के खेल जग के खेल सब।

लोक-कौतुक गोद में उस की पला।

हैं उसी की कल सकल तन की कलें।

सब कलायें एक मन की हैं कला।


मोल वालों में बड़ा अनमोल है।

सामने उस के सकल धन धूल है।

माल है वह सब तरह के माल का।

सब जगत के मूल का मन मूल है।


क्या कहीं भूत का बसेरा है?

भूल है भय अगर कँपाये तन।

तो चढेगा न भूत सिर पर क्यों।

भूत बन जाय जो किसी का मन।


तो बनायेगा बड़ा ही औ गुनी।

औ गुनों से वह अगर होगा भरा।

कौन इतनी है बुराई कर सका।

है बुरे मन सा न बैरी दूसरा।


जायगा कैसे न वह दानव कहा।

जो कि दानवभाव लेकर अवतरा।

देवता कैसे न देवेगा बना।

देवभावों से अगर है मन भरा।


तो यहाँ ही हम नरक में हैं पड़े।

पाप का जी में जमा है जो परा।

स्वर्ग का सुख तो बेलसते हैं यहीं।

है भला मन जो भले भावों भरा।


चाह बैकुंठ की नहीं रखते।

हैं नहीं स्वर्ग की रुचीं राहें।

है यही चाह चाह हरि की हो।

हों चुभी चित्त में भली चाहें।


छोड़ खलपन अगर नहीं पाता।

पर-विभव क्यों न तो उसे खलता।

डाह जब है जला रही उस को।

मन बिना आग क्यों न तो जलता।


क्यों न बनते सुहावना सोना।

लाग कर लौहपन अगर खोते।

पर नहीं कर सके रसायन हम।

पास पारस समान मन होते।


किस तरह जी में जगह देते उसे।

जी बहुत जिस से सदा ऊबा रहा।

मान वालों से मिले तो मान क्यों।

मन अगर अभिमान में डूबा रहा।


बार घर बार को न तो समझें।

जो न जी में बिकार हो थमता।

तो न बैठें रमा रमा धूनी।

मन रहे जो न राम में रमता।


तो तजा घर बना बनाया क्यों।

घर बनाया गया अगर बन में।

आप को संत मान क्यों बैठे।

मान अपमान है अगर मन में।


तब लगाया भभूत क्या तन पर।

जो सके मोह-भूत को न भगा।

तो किया क्या बसन रँगा कर के।

मन अगर राम-रंग में न रँगा।


घर बसे और क्या बसे बन में।

बासना जो बनी रहे बस में।

बेकसे और क्या कसे काया।

मन किसी का अगर रहे कस में।


ढोंग हैं लोक साधनायें सब।

जी हमारा अगर न हो सुलझा।

उलझनें छोड़ और क्या हैं वे।

मन कहीं और हो अगर उलझा।


एक को पूछता नहीं कोई।

एक आधार प्रेमधन का है।

एक मन है न एक मन का भी।

एक मन एक लाख मन का है।


फेन से भी है बहुत हलका वही।

मेरु से भारी वही है बन सका।

मान किस में है कि मन को तौल ले।

जब सका तब तौल मन को मन सका।


मन न हो तो जहान है ही क्या।

मन रहे है जहान का नाता।

मन सधो क्या सधा नहीं साधो।

मन बाँधो है जहान बँध जाता।


डूब कर के रंगतों में प्यार की।

साथ ही दो फूल अलबेले खिले।

मेल कर अनमोल दो तन बन गये।

मोल मन का बढ़ गया दो मन मिले।


मन उबारे से उबरते हैं सभी।

कौन तारे से नहीं मन के तरा।

मन सुधारे ही सुधरता है जगत।

मन उधारे ही उधरती है धारा।


बार घर के बार जो हैं हो रहे।

तो न सूबे के लिए ऊबे रहें।

क्यों पड़े तो मनसबों के मोह में।

पास मन के जो न मनसूबे रहें।


जान है जानकार लोगों की।

और सिरमौर माहिरों का है।

जौहरों का सदा रहा जौहर।

जौहरी मन जवाहिरों का है।


एक मन है भरा हुआ मल से।

एक मन है बहुत धुला उजला।

एक मन को कमाल है सिड़ में।

एक मन है कमाल का पुतला।


लोथ पर लोथ तो नहीं गिरती

लोभ होता उसे न जो धन का।

लाखहा लोग तो न मर मिटते।

मन अगर जानता मरम मन का।


एक मन है नरमियों से भी नरम।

एक मन की फूल जैसी है फबन।

एक मन की रंगतें हैं मातमी।

संग को है मात करता एक मन।


मान ईमान तो करे कैसे।

जो समझ बूझ बेईमान बने।

तो सके जान दुख दुखी कैसे।

मन अगर जान सब अजान बने।


भेद है तो भेद क्यों होता नहीं।

भेद रख कर भेद पहचाने गये।

जन न सनमाने गये सब एक से।

औ न सब मन एक से माने गये।


बात लगती बोलियाँ औ बिदअतें।

कब कहाँ किस ने सुखी बन कर सहीं।

क्यों सताये एक मन को एक मन।

एक मन क्या दूसरे मन सा नहीं।


निज दुखों सा गिने पराये दुख।

पीर को ठीक ठीक पहचाने।

तो न मन मानियाँ कभी होंगी।

जो मनों को समान मन माने।


तो सितम पर सितम न हो पाते।

तो न होती बदी बड़े बद से।

तो न दिल चूर चूर हो जाते।

चूर होता न मन अगर मद से।


सुख मिले सुख किसे नहीं होता।

हैं सभी दुख मिले दुखी होते।

मन सके मान या न मान सके।

हैं सकल मन समान ही होते।


नाम सनमान सुन नहीं पाता

देख मेहमान को सदा ऊबा।

मान का मान कर नहीं सकता।

मन गुमानी गुमान में डूबा।


है उसी एक की कला सब में।

किस लिए नीच बार बार नुचा।

काम लेवे न जो कमालों से।

तो कहाँ मन कमाल को पहुँचा।


है जगत जगमगा रहा जिससे।

जो मिला वह रतन न नर-तन में।

कर बसर जो सके न सरबस पा।

तो भरी है बड़ी कसर मन में।


जो न रँग जाय प्यार रंगत में।

तो उमग क्यों उमंग में आवे।

किस लिए धन समान तो उमड़े।

मन दया-बारि जो न बरसावे।


अनगिनत जग बिसात मोहरों का।

कौन मन के समान माहिर है।

वह समझ बूझ सोत का सर है।

ज्ञान की जोत का जवाहिर है।


चैन चौपाल चोज चौबारा।

चाव चौरा चबाव आँगन है।

चाल का चौतरा चतुरता कल।

चाह थल चेतना महल मन है।


है पुलकता लहू सगों का पी।

बाप को पीस मूस माँ का धन।

कब उठा काँप पाप करने से।

पाप को पाप मान पापी मन।


है कतरब्योंत पेच पाच पगा।

छल उसे छोड़ता नहीं छन है।

मौत का मुँह मुसीबतों का तन।

साँप का फन कपट भरा मन है।


क्यों कढ़े आँख से न चिनगारी।

क्यों न उठने लगे लवर तन में।

क्यों बचन तब बनें न अंगारे।

कोप की आग जब जली मन में।


यम नहीं हैं भयावने वैसे।

है न रौरव नरक बुरा वैसा।

है अधमता सभी भरी उस में।

है अधम कौन मन अधम जैसा।


टूट पड़ती रहे मुसीबत सब।

खेलना साँप से पड़े काले।

काल डाले सकल बलाओं में।

पर पड़े मन न कोप के पाले।


कुछ करेंगे रंग बिरंगे तन नहीं।

जायगी बहुरंगियों में बात बन।

रंग में उस के सभी रँग जायगा।

प्रेम रंगत में अगर रँग जाय मन।


छानते तो बड़े बड़े जंगल।

और गो पद समुद्र बन जाता।

डालते पीस पर्वतों को हम।

मन डिगाये अगर न डिग पाता।


डालते किस लोक में डेरा नहीं।

डर गये कोई नहीं कुछ बोलता।

धाक से तो डोल जाता सब जगत।

जो न डावाँडोल हो मन डोलता।


आँख में तो नये नये रस का।

बह न सकता सुहावना सोता।

चहचहे तो न कान सुन पाता।

जो दिखाता न रंग मन होता।


रंग जाता बिगड़ लताओं का।

पेड़ प्यारा हरा बसन खोता।

फूल रंगीनियाँ न रह पातीं।

रंग लाता अगर न मन होता।


जीभ रस-स्वाद तो नहीं पाती।

तो पिरोती न लेखनी मोती।

मोहती नाक को महक कैसे।

जो न मन की कुमक मिली होती।


रख सकें आन बान जो अपना।

हैं हमें मिल सके नहीं वैसे।

सामने झुक गये हठीले सब।

मन हठी ठान ले न हठ कैसे।


चाँद सूरज चमक दमक खो कर।

जाँयगे बन बनाय बेचारे।

जोत मन की न जो रहे जगती।

तो सकेंगे न जगमगा तारे।


तो रुचिरता कहाँ रही उस में।

रुचि हितों में रहे न जो पगती।

तो भले का कहाँ भला मन है।

जो भलाई भली नहीं लगती।


हो सकेगा कुछ नहीं काया कसे।

जो पराया बन नहीं पाया सगा।

योग जप तप रंगतों में क्या रँगे।

जो न परहित रंग में मन हो रँगा।


मूल उस को कमाल का समझे।

छोड़ जंजाल जाप का जपना।

सोच अपना बिकास अपना हित।

मन जगत को न मान ले सपना।


है अगर घट में नहीं गंगा बही।

कौन तो गंगा नहा कर के तरा।

तो न होवेंगे बिमल जल से धुले।

है अगर मन में हमारे मल भरा।


है बड़े सुन्दर सुरों की संगिनी।

बज रही है भाव में भर हर घड़ी।

रस बरस कर हैं सुरत को मोहती।

बाँसुरी मन की सुरीली है बड़ी।


बादलों में हैं अनूठी रंगतें।

इन्द्रधनु में हैं निराली धारियाँ।

है नगीना कौन सा तारा नहीं।

हैं कहाँ मन की न मीनाकारियाँ।


चाह बिजली चमक अनूठी है।

श्याम रंग में रँगा हुआ तन है।

है बरसता सुहावना रस वह।

मन बड़ा ही लुभावना घन है।


है वही सुन्दर सराहे मन जिसे।

हैं जगत में सब तरह की सूरतें।

मन अगर ले मान मन दे मान तो।

देवता हैं मन्दिरों की मूरतें।


है अगर मानता नहीं मन तो।

कौन नाना व कौन मामा है।

मन कहे और मान मन ले तो।

बाप है बाप और माँ, माँ, है।


है जहाँ चाहता वहीं जाता।

कौन है दौड़ धूप में ऐसा।

बेग वाला बहुत बड़ा है वह।

है पवन बेग में न मन जैसा।


है कपट काटछाँट का पुतला।

छूट औ छेड़छाड़ का घर है।

छैलपन है छलक रहा उस में।

मन छिछोरा छली छछूँदर है।


बात करता कभी हवा से है।

वह कभी मंद मंद चलता है।

खूब भरता कभी छलाँगें है।

मन कभी कूदता उछलता है।


मूँद आँखें क्या अँधेरे में पड़े।

जो लगाये है समाधि न लग रही।

खोल आँखें मन सजग कर देख लो।

है जगतपति जोत जग में जग रही।


अनमने क्यों बने हुए मन हो।

नेक सन्देह है न सत्ता में।

कह रहे हैं हरे भरे पौधो।

हरि रमा है हरेक पत्ता में।


मतलबी पालिसी-पसन्द बड़ा।

बेकहा बेदहल जले तन है।

है उसे मद मुसाहिबी प्यारी।

साहिबी से भरा मनुज-मन है।


पाक पर-दुख-दुखी परम कोमल।

हित धुरा, प्यार-जोत-तारा है।

है दया-भाव का दुलारा वह।

संत मन संतपन सहारा है।


है सुधा में सना हलाहल है।

फूल का हार साँप काला है।

है निरा प्यार है निरा अनबन।

नारि का मन बड़ा निराला है।


है खिला फूल, लाल अंगारा।

बाग सुन्दर बड़ा भयानक बन।

काठ उकठा हरा भरा पौधा।

है गरम है बड़ा नरम नर-मन।


है बड़ा ही सुहावना सुन्दर।

है उसी का कमाल भोलापन।

लोक के लाड़-प्यार-वालों का।

है बड़ा लाड़-प्यार-वाला मन।


क्यों न उस पर वार दें लाखों टके।

है जगत में दूसरा ऐसा न धन।

है निराला लाल आला माल है।

गोदियों के लाल का अनमोल मन।


हैं उसी से भलाइयाँ उपजी।

लोक का लाभ है उसी का धन।

कब न जन-हित रहा सजन उस का।

है सुजनता भरा सुजन का मन।


है बदी बीज बैर का पुतला।

पाप का बाप साँप का है तन।

है छुरा धार है धुरा-छल का।

है बहुत ही बुरा कुजन का मन।


देख करके और को फूला फला।

रह सका उसका नहीं मुखड़ा हरा।

कीच तो उसने उछाला ही किया।

नीच का मन नीचपन से है भरा।


वह अनूठा बसंत जैसा है।

है बड़ा ही सुहावना उपवन।

चाँद जैसा चमक दमक में है।

है खिले फूल सा सुखी का मन।


भोर का चाँद साँझ का सूरज।

है लगातार दग्ध होता बन।

है कमलदल तुषार का मारा।

बहु दुखों से भरा दुखी का मन।


पा समय मोम सा पिघलता है।

फूल है प्यार रंग में ढाला।

है मुलायम समान माखन के।

है दयावान मन दयावाला।


है सुफल भार से झुका पौधा।

है बिमल वारि से बिलसता घन।

दीनहित के लिए दयानिधि का।

है बड़ा दान दानियों का मन।


दिल उसे दे दें मगर उस से कभी।

एक मूठी मिल नहीं सकता चना।

जान देगा पर न देगा दान वह।

सूमपन में सूम का मन है सना।


वह कभी काल से नहीं डरता।

त्रास यमराज का उसे कैसा।

है बना सूर, सूर मन से ही।

कौन है सूर सूर-मन जैसा।


कर सकेगा और का कैसा भला।

जो भलाई में लगाया तन न हो।

हो सकेगा तो न पूरा हित कभी।

जो भरा हित से पुरोहित मन न हो।


है अबल के लिए बड़ा बल वह।

धाक गढ़ आनबान देरा है।

धीरता धाम धावरहर धुन का।

बीर-मन बीरता बसेरा है।


है गगन तल में हवा उस की बँधी।

धाक उसकी है धरातल में धँसी।

कौन साहस कर सका इतना कभी।

साहसी मन ही बड़ा है साहसी।


आँख में सुरमा लगाया है गया।

है घड़ी की होठ पर न्यारी फबन।

भूलती हैं चितवनें भोली नहीं।

तन हुआ बूढ़ा हुआ बूढ़ा न मन।


तो भले भाव के लिए वह क्यों।

बारहा जाय जी लगा जाँचा।

हो मगन देख लोक-हित-घन तन।

मन अगर मोर सा नहीं नाचा।


है बड़ी भूल भाव में डूबा।

पी कहाँ नाद जो नहीं भाया।

जाति-उपकार-स्वाति के जल का।

मन पपीहा अगर न बन पाया।


है बड़ा भाग जो बड़े हों हम।

सब भले रंग में रँगा हो तन।

दुख दिखाये न दुखभरी सूरत।

सुख कमल मुख भँवर बना हो मन।


तब भलाई भली लगे कैसे।

भूलता जब कि तोर मोर नहीं।

लोकहित चाव चन्द्रमा का जब।

मन चतुर बन सका चकोर नहीं।


जो गया भूल देख भोलापन।

चौगुना चाव क्यों न तो करता।

मुखकमल भावरस भरा पाकर।

मन-भँवर क्यों न भावँरें भरता।


हो गया है हवा, हवस में फँस।

बह गया बदहवास बन बौड़ा।

हो सका दूर दुख नहीं उसका।

मन बहुत दूर दूर तक दौड़ा।


आम वैसा कहाँ रसीला है।

चाँद कब रस बरस सका ऐसा।

कर रसायन मिली जवानी कब।

रस कहाँ है जवान-मन जैसा।


मानता हो न जब कही मेरी।

और करता सदा किनारा हो।

अनमने तब न हम रहें कैसे।

मन हमारा न जब हमारा हो।


कौन सा पद मिला नहीं उससे।

कौन सा सुख गया नहीं भोगा।

फिर करे मोल-जोल क्यों कोई।

मोल क्या मन अमोल का होगा।


प्यार का प्यार जब न हो उस को।

जब न हित का उसे सहारा हो।

तब हमें मान मिल सके कैसे।

मन न जब मानता हमारा हो।


कब निछावर हुआ न वह उस पर।

धन बराबर कभी न तन के है।

है रतन कौन इस रतन जैसा।

कौन सा मणि, समान मन के है।


तब न कैसे और भी कस जायगा।

जब कि सन की गाँठ में पानी पड़ा।

तब कठिन से भी कठिन होगा न क्यों।

मन कठिन कठिनाइयों में जब पड़ा।


भर गई हैं खुटाइयाँ जिस में।

भाव उस में भले भरोगे क्या।

हैं बुरे कब बुराइयाँ तजते।

मन बुरा मान कर करोगे क्या।


हैं कराती काम वे बातें नहीं।

जो जमाये से नहीं जी में जमें।

मान करके जो न मन की ही चलें।

मिल सके ऐसे न मन वाले हमें।


कम न अपमान हो चुका जिन का।

हित उन्हें मान क्यों नहीं लेते।

बात यह मान की तुम्हारे है।

मन उन्हें मान क्यों नहीं देते।


जो बनाये जाँय बिगड़े काम सब।

बात बिगड़ी जायगी कैसे न बन।

माल मनमाना उसे मिल जाय तो।

क्यों न मालामाल हो पामाल मन।


चाहतें तंग हैं बहुत होती।

है बुढ़ापा तरंग ही तन में।

रंग ही है न ढंग ही है वह।

अब न है वह उमंग ही मन में।

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रचनाएँ
चोखे चौपदे
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प्रत्येक भाषा के लिये स्थायी साहित्य की आव-श्यकता होती है। जो विचार व्यापक और उदात्त होते हैं, जिन का सम्बन्ध मानवीय महत्त्व अथवा सदा-चार से होता है, जो चरित्रगठन और उल की चरितार्थता के सम्बल होते हैं, जिन भावों का परम्परागत सम्बन्ध किसी जाति की सभ्यता और आदर्श से होता है, जो उद्गार हमारे तमोमय मार्ग के आलोक बनते हैं, उन का वर्णन अथवा निरूपण जिन रचनाओं अथवा कविताओं में होता है, वे रखना और उक्तियां स्थायिनी होती हैं ।
1

प्रेमबंधन

9 जून 2022
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जो किसी के भी नहीं बाँधे बँधे। प्रेमबंधदन से गये वे ही कसे। तीन लोकों में नहीं जो बस सके। प्यारवाली आँख में वे ही बसे।। पत्तियों तक को भला कैसे न तब। कर बहुत ही प्यार चाहत चूमती। साँवली सूरत त

2

माँ की ममता

9 जून 2022
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भूल कर देह-गेह की सब सुधा। माँ रही नेह में सदा माती। जान को वार कर जिलाती है। पालती है पिला-पिला छाती।। देख कर लाल को किलक हँसते। लख ललक बार-बार ललचाई। कौन माँ भर गई न प्यारों से। कौन छाती भल

3

कवि

9 जून 2022
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कवि अनूठे कलाम के बल से। हैं बड़ा ही कमाल कर देते। बेधाने के लिए कलेजों को। हैं कलेजा निकाल धार देते।। है निराली निपट अछूती जो। हैं वही सूझ काम में लाते। कम नहीं है कमाल कवियों में। है कलेजा

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प्यार के पुतले

9 जून 2022
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बात मीठी लुभावनी सुन-सुन। जो नहीं हो मिठाइयाँ देते। तो खिले फूल से दुलारे का। चाह से गाल चूम तो लेते।। हाथ उन पर भला उठायें क्यों। जो कि हैं ठीक फूल ही जैसे। पा सके तन गला-गला जिन को। गाल उनक

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अनूठी बातें

9 जून 2022
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जो बहुत बनते हैं उनके पास से। चाह होती है कि कब कैसे टलें। जो मिले जी खोल कर, उनके यहाँ। चाहता है जी कि सिर के बल चलें।। भूल जावे कभी न अपनापन। जान दे पर न मान को दे, खो। लोग जिस आँख से तुम्हे

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सुनहली सीख

9 जून 2022
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सैकड़ों ही कपूत-काया से। है भली एक सपूत की छाया। हो पड़ी चूर खोपड़ी ने ही। अनगिनत बाल पाल क्या पाया। जो भला है और चलता है सँभल। है भला उस को किसी से कौन डर। दैव की टेढ़ी अगर भौंहें न हों। क्य

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अछूते फूल

9 जून 2022
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फूल में कीट, चाँद में धब्बे। आग में धूम, दीप में काजल। मैल जल में, मलीनता मन में। देख किस का गया नहीं दिल मल। है बुरा, घास-फूस-वाला घर। मल भरा तन, गरल भरा प्याला। रिस भरी आँख, सर भरा सौदा। मन

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रस के छींटे

9 जून 2022
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भाग में मिलना लिखा था ही नहीं। तुम न आये साँसतें इतनी हुईं। जी हमारा था बहुत दिन से टँगा। आज आँखें भी हमारी टँग गईं। सूखती चाह-बेलि हरिआई। दूध की मक्खियाँ बनीं माखें। रस बहा चाँदनी निकल आई। ख

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नोक-झाेंक

9 जून 2022
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जा रही हैं सूखती सुख क्यारियाँ। जो रहीं न्यारे रसों से सिंच गईं। खिंच गये तुम भी इसी का रंज है। खिंच गईं भौंहें बला से खिंच गईं। साँच को आँच है नहीं लगती। हम करेंगे कभी नहीं सौंहें। चिढ़ गये त

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दृष्टान्त

9 जून 2022
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है जिन्हें सूझ, जोड़ से ही, वे। भिड़ सके लाग डाँट साथ बड़ी। भूल कर भी लड़ी न भौंहों से। जब लड़ी आँख साथ आँख लड़ी। देख कर रंग जाति का बदला। जाति का रंग है बदल जाता। देख आँखें हुईं लहू जैसी। आँ

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बाल

9 जून 2022
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बीर ऐसे दिखा पड़े न कहीं। सब बड़े आनबान साथ कटे। जब रहे तो डटे रहे बढ़ कर। बाल भर भी कभी न बाल हटे। नुच गये, खिंच उठे, गिरे, टूटे। और झख मार अन्त में सुलझे। कंघियों ने उन्हें बहुत झाड़ा। क्या

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चोटी

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जो समय के साथ चल पाते नहीं। टल सकी टाले न उन की दुख-घड़ी। छीजती छँटती उखड़ती क्यों नहीं। जब कि चोटी तू रही पीछे पड़ी। निज बड़ों के सँग बुरा बरताव कर। है नहीं किस की हुई साँसत बड़ी। क्यों नहीं

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सिर और पगड़ी

9 जून 2022
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सिर! उछालीं पगड़ियाँ तुम ने बहुत। कान कितनों का कतर यों ही दिया। लोग भारी कह भले ही लें तुम्हें। पर तुमारा देख भारीपन लिया। सूझ के हाथ पाँव जो न चले। जो बनी ही रही समझ लँगड़ी। तो तुम्हारी न पत

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सिर और सेहरा

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सोच लो, जी में समझ लो, सब दिनों। यों लटकती है नहीं मोती-लड़ी। जब कि तुम पर सिरसजा सेहरा बँधा। मुँह छिपाने की तुम्हें तब क्या पड़ी। ला न दें सुख में कहीं दुख की घड़ी। ढा न दें कोई सितम आँखें गड़

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सिर और पाँव

9 जून 2022
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जो बड़े हैं भार जिन पर है बहुत। वे नहीं हैं मान के भूखे निरे। है न तन के बीच अंगों की कमी। पर गिरे जब पाँव पर तब सिर गिरे। लोग पर के सामने नवते मिले। पर न ये कब निज सगों से, जी फिरे। दूसरों के

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सिर

9 जून 2022
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क्या हुआ पा गये जगह ऊँची। जो समझ औ बिचार कर न चले। सिर! अगर तुम पड़े कुचालों में। तो हुआ ठीक जो गये कुचले। जो कि ताबे बने रहे सब दिन। वे सँभल लग गये दिखाने बल। हाथ क्या, उँगलियाँ दबाती हैं। स

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माथा

9 जून 2022
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छूट पाये दाँव-पेचों से नहीं। औ पकड़ भी है नहीं जाती सही। हम तुम्हें माथा पटकते ही रहे। पर हमारी पीठ ही लगती रही। चाहिए था पसीजना जिन पर। लोग उन पर पसीज क्यों पाते। जब कि माथा पसीज कर के तुम।

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तिलक

9 जून 2022
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हो भले देते बुरे का साथ हो। भूल कर भी तुम तिलक खुलते नहीं। किस लिए लोभी न तुम से काम लें। तुम लहर से लोभ को धुलते नहीं। हो भलाई के लिए ही जब बने। तब तिलक तुम क्यों बुराई पर तुले। भेद छलियों के

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आँख

9 जून 2022
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सूर को क्या अगर उगे सूरज। क्या उसे जाय चाँदनी जो खिल। हम अँधेरा तिलोक में पाते। आँख होते अगर न तेरे तिल। क्या हुआ चौकड़ी अगर भूले। लख उछल कूद और छल करना। है छकाता छलाँग वालों को। आँख तेरा छला

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आँसू

9 जून 2022
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तुम पड़ो टूट लूटलेतों पर। क्यों सगों पर निढाल होते हो। दो गला, आग के बगूलों को। आँसुओं गाल क्यों भिंगोते हो। आँसुओ! और को दिखा नीचा। लोग पूजे कभी न जाते थे। क्यों गँवाते न तुम भरम उन का। जो त

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नाक

9 जून 2022
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हो उसे मल से भरा रखते न कम। यह तुम्हारी है बड़ी ही नटखटी। तो न बेड़ा पार होगा और से। नाक पूरे से न जो पूरी पटी। जो भरे को ही रहे भरते सदा। वे बहुत भरमे छके बेढंग ढहे। नाक तुम को क्यों किसी ने

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कान

9 जून 2022
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रासपन के चिद्द से जो सज सका। क्यों नहीं तन बिन गया वह नोचतन। कान! तेरी भूल को हम क्या कहें। बोलबाला कब रहा बाला पहन। धूल में सारी सजावट वह मिले। दूसरा जिससे सदा दुख ही सहे। और पर बिजली गिराने

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गाल

9 जून 2022
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वह लुनाई धूल में तेरी मिले। दूसरों पर जो बिपद ढाती रहे। गाल तेरी वह गोराई जाय जल। जो बलायें और पर लाती रहे। तो गई धूल में लुनाई मिल। औ हुआ सब सुडौलपन सपना। पीक से बार बार भर भर कर। गाल जब तू

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मुँह

9 जून 2022
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हो गयी बन्द बोलती अब तो। तू बहुत क्या बहक बहक बोला। तू भली बात के लिए न खुला। मुँह तुझे आज मौत ने खोला। हैं बहुत से अडोल ऐसे भी। जो कि बिजली गिरे नहीं डोले। 'जी' गये भी नहीें खुला जो मुँह। मौ

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दाँत

9 जून 2022
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हो बली, रख डीलडौल पहाड़ सा। बस बड़े घर में, समझ होते बड़ी। हाथियों को दाँत काढ़े देख कर। दाबनी दाँतों तले उँगली पड़ी। जब कि करतूत के लगे घस्से। तब भला किस तरह न वे घिसते। पीसते और को सदा जब थे

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जीभ

9 जून 2022
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कट गई, दब गई, गई कुचली। कौन साँसत हुई नहीं तेरी। जीभ तू सोच क्या मिला तुझ को। दाँत के आस पास दे फेरी। जब बुरे ढंग में गई ढल तू। फल बुरा तब न किस तरह पाती। बोलती ऐंठ ऐंठ कर जब थी। जीभ तब ऐंठ क

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होठ

9 जून 2022
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पान ने लाल और मिस्सी ने। होठ तुम को बना दिया काला। क्या रहा, जब ढले उसी रंग में। रंग में जिस तुमें गया ढाला। जब कि उन में न रह गई लस्सी। वे भला किस तरह सटेंगे तब। नेह का नाम भी न जब लेंगे। हो

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हँसी

9 जून 2022
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जब कि बसना ही तुझे भाता नहीं। तब किसी की आँख में तू क्यों बसी। क्या मिला बेबस बना कर और को। क्यों हँसी भाई तुझे है बेबसीे। जो कि अपने आप ही फँसते रहे। क्यों उन्हीं के फाँसने में वह फँसी। जो बल

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दम

9 जून 2022
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क्यों लिया यह न सोच पहले ही। आप तुम बारहा बने यम हो। हैं खटकते तुम्हें किये अपने। क्या अटकते इसी लिए दम हो।

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छींक

9 जून 2022
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पड़ किसी की राह में रोड़े गये। औ गये काँटे बिखर कितने कहीं। जो फला फूला हुआ कुम्हला गया। यह भला था छींक आती ही नहीं। क्यों निकल आई लजाई क्यों नहीं। क्यों सगे पर यों बिपद ढाती रही। तब भला था, थ

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दाढ़ी

9 जून 2022
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बेबसी तो है इसी का नाम ही। पड़ पराये हाथ में हैं छँट रही। प्रोंच कट क्या सैकड़ों कट में पड़ी। आज कितनी दाढ़ियाँ हैं कट रही। जब रहा पास कुछ न बल-बूता। जब न थी रोक थाम कर पाती। जब उखड़ती रही उखा

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गला

9 जून 2022
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तब खिले फूल से सजा क्या था। तब भला क्या रहा सुगंधा भरा। तब दिलों को रहा लुभाता क्या। जब किसी के गले पड़ा गजरा। वह तुम्हारा बड़ा रसीलापन। सच कहो हो गया कहाँ पर गुम। जो कभी काम के न फल लाये। तो

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कंठ

9 जून 2022
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जब भले सुर मिले नहीं उस में। जब कि रस में रहा न वह पगता। तब पहन कर भले भले गहने। कंठ कैसे भला भला लगता। जो निराला रंग बू रखते रहे। फूल ऐसे बाग में कितने खिले। जो कि रस बरसा बहुत आला सके। वे र

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गाना, गला, कंठ

9 जून 2022
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हो सके हम सुखी नहीं अब भी। आप का मेघराज आना सुन। आँख से आज ढल पड़ा आँसू। मल गया दिल मलार गाना सुन। बेसुरी तब बनी न क्यों बंसी। बीन का तार तब न क्यों टूटा। तब रहीं क्या सरंगियाँ बजती। आज सस्ते

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हथेली

9 जून 2022
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क्या कहें हम और हम ने आज ही। आँख से मेहँदी लगाई देख ली। जब ललाई और लाली के लिए। तब हथेली की ललाई देख ली। कर रही हैं लालसायें प्यार की। क्या लुनाई के लिए अठखेलियाँ। या किसी दिल के लहू से लाल बन

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उँगली

9 जून 2022
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काम जैसे पसंद हैं जिस को। फल मिलेंगे उसे न क्यों वैसे। हैं अगर काट कूट में रहती। तो कटेंगी न उँगलियाँ कैसे। हाथ का तो प्यार सब के साथ है। काम उस को है सबों से हर घड़ी। है छोटाई या बड़ाई की न स

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मूठी

9 जून 2022
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वह भरी तो क्या जवाहिर से भरी। जो नहीं हित-साधनाओं में सधी। जब बँधी वह बाँधने ही के लिए। तब अगर मूठी बँधी तो क्या बँधी। लाल मुँह कर तोड़ दे कर दाँत को। साधने में बैर के ही जब सधी। जब खुले पंजा,

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हाथ

9 जून 2022
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बीज बोते रहे बुराई के। जो बदी के बने रहे बम्बे। जो उन्हें देख दुख न लम्बे हों। तो हुए हाथ क्या बहुत लम्बे। घिर गये पर जब निकल पाये नहीं। तब रहे क्या दूसरों को घेरते। आप ही जब फेर में वे हैं पड

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छाती

9 जून 2022
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नाम को जिन में भलाई है नहीं। बन सकेंगे वे भले कैसे बके। कह सकेंगे हम नरम कैसे उसे। जो नरम छाती न नरमी रख सके। जो रही चूर रँगरलियों में। जो सदा थी उमंग में माती। आज भरपूर चोट खा खा कर। हो गई च

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पेट

9 जून 2022
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कुछ बड़ाई अगर नहीं रखते। हो सके कुछ न तो बड़े हो कर। दुख कड़ाई किसे नहीं देती। देख लो पेट तुम कड़े हो कर। तू न करता अगर सितम होता। तो बड़े चैन से बसर होती। तो न हम बैठते पकड़ कर सर। पेट तुझ म

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तलवा

9 जून 2022
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जब न काँटे के लिए काँटा बने। पाँव के नीचे पड़े जब सब सहें। जब छिदे छिल छिल गये सँभले नहीं। क्यों न तब छाले भरे तलवे रहें।

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बात की करामात

9 जून 2022
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क्या अजब मुँह सी गया उनका अगर। टकटकी बाँधे हुए जो थे खड़े। जब बरौनी से तुझे सूई मिली। आँख तुझ में जब रहे डोरे पड़े। थिर नहीं होतीं थिरकती हैं बहुत। हैं थिरकने में गतों को जाँचती। काठ का पुतला

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अनूठे विचार

9 जून 2022
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जब न उस में मिला रसीलापन। जीभ उस की बनी सगी तब क्या। फूल मुँह से अगर न झड़ पाया। बात की झड़ भला लगी तब क्या। खोट घुट्टी में किसी की जो पड़ी। वह बँटाने से कभी बँटती नहीं। नाक कटवा ली गई कह कर ज

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पते की बातें

9 जून 2022
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रुच गई तो रँगरलियाँ किस तरह। दिल न जो रंगीनियों में था रँगा। छिप सकेगी तो लहू की चाट क्यों। हाथ में लहू अगर होवे लगा। किस तरह तब निकल सके कीना। जब कसर ही निकल न पाती है। किस लिए बाल-दूब तो न ज

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भेद की बातें

9 जून 2022
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है उसी एक की झलक सब में। हम किसे कान कर खड़ा देखें। तो गड़ेगा न आँख में कोई। हम अगर दीठ को गड़ा देखें। एक ही सुर सब सुरों में है रमा। सोचिये कहिये कहाँ वह दो रहा। हर घड़ी हर अवसरों पर हर जगह।

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आनबान

9 जून 2022
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लोग काना कहें, कहें, सब क्या। लग किसी की न जायगी गारी। चाहिए और की न दो आँखें। है हमें एक आँख ही प्यारी। चाहते हैं कभी न दो आँखें। दुख जिन्हें धुंध साथ घेरे हो। ठीक, सुथरी, निरोग, उजली हो। एक

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प्यार के पहलू

9 जून 2022
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है उन्हें चाव ही न झगड़ों का। पाँव जो प्यार-पंथ में डालें। वे रखेंगे न काम रगड़ों से। नाक ही क्यों न हम रगड़वा लें। सब सहेंगे हम, सहें कुछ भी न वे। जाँयगे हम सूख उन के मुँह सुखे। जाय दुख तो जी

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निवेदन

9 जून 2022
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हम सदा फूलें फ़लें देखें सुदिन। पर उतारा जाय कोई सर नहीं। हो कलेजा तर रहे तर आँख भी। पर लहू से हाथ होवे तर नहीं। रंगरलियाँ हमें मनाना है। रंग जम जाय क्यों न जलवों से। है ललक लाल लाल रंगत की।

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मन

9 जून 2022
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है मनाना या मना करना कठिन। मन सबों को छोड़ पाता छन नहीं। तब भला कैसे न मनमानी करे। है किसी के मान का जब मन नहीं। काम के सब भले पथों को तज। फँस गया बार बार भूलों में। छोड़ फूले फले भले पौधो। म

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कुछ कलेजे

9 जून 2022
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मोम-माखन सा मुलायम है वही। प्यार में पाया उसी को सरगरम। है उसी में सब तरह की नरमियाँ। फूल से भी माँ-कलेजा है नरम। प्यार की आँच पा पिघलने में। माँ-कलेजा न मोम से कम है। वह निराली मुलायमीयत पा।

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कलेजा कमाल

9 जून 2022
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है लबालब भरा भलाई खल। सोहती है सहज सनेह लहर। है खिला लोक-हित-कमल जिस में। है कलेजा सुहावना वह सर। हैं सुरुचि के जहाँ बहे सोते। है दिखाती जहाँ दया-धारा। पा सके प्यार सा जहाँ पारस। है कलेजा-पहा

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कसौटी

9 जून 2022
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पास खुरचाल पेचपाच कसर। कुढ़ कपट काटछाँट कीना है। क्यों करेगा नहीं कमीनापन। कम कलेजा नहीं कमीना है। कुछ न है माल सामने उस के। वह बिना माल मालवाला है। है उसी में कमाल सब मिलता। नर-कलेजा कमालवाल

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हाथ और दान

9 जून 2022
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दान जब तक फूल फल करता रहा। पेड़ तब तक फूल फल पाता रहा। दान-रुचि जी में नहीं जिस के रही। धन उसी के हाथ से जाता रहा। हित नमूना जो दिखाना है हमें। जो चहें यह, सुख न सूना घर करें। तो बना दिल सब दि

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हाथ और कमल

9 जून 2022
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है न वह रंग औ न वह बू। और वैसा नहीं बिमलपन है। वे भले ही रहें कमल बनते। पर कहाँ हाथ में कमलपन है। कब सका लिख, सका बसन कब सी। कब सका वह कभी कमा पैसा। हाथ तुझ में कमाल है वैसा। क्या कमल में कमा

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हाथ और फूल

9 जून 2022
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देखते उस की फबन जो आँख पा। तो कभी हित से नहीं मुँह मोड़ते। धूल में तुम हाथ क्यों मिलते नहीं। भूल है जो फूल को हो तोड़ते। जो खले दुख किसी तरह का दे। कब किसे ढंग वह सुहाता है। क्यों न ले तोड़ फू

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हाथ और तलवार

9 जून 2022
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खेलने पर के भरोसे क्या लगे। किस लिए हो भेद अपना खोलते। तोल तुम ने क्यों न अपने को लिया। हाथ तुम तलवार क्या हो तोलते। हाथ में तो तमकनत कम है नहीं। पर गईं बेकारियाँ बेकार कर। ताब तो है वार करने

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जी की कचट

9 जून 2022
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ब्योंत करते ही बरस बीते बहुत। कर थके लाखों जतन जप जोग तप। सब दिनों काया बनी जिससे रहे। हाथ आया वह नहीं काया कलप। किस तरह हम मरम कहें अपना। कब न काँटे करम रहा बोता। तब रहे क्यों भरम धरम क्यों ह

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थपेड़े

9 जून 2022
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पेटुओं को कभी टटोलो मत। कब गई बाँझ गाय दुह देखी। जो कि मुँह देख जी रहे हैं, वे। बात कैसे कहें न मुँह देखी। आज सीटी पटाक बन्द हुई। वे सटकते रहे बहुत वैसे। बात ही जब कि रह नहीं पाई। बात मुँह से

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निघरघट

9 जून 2022
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कर सकेगा नहीं निघरघटपन। जिस किसी में न लाज औ डर हो। जब बड़ों की बराबरी की तो। आँख कैसे भला बराबर हो। नामियों ने नाम पाकर क्या किया। किस लिए बदनामियों से हम डरें। मुँह भले ही लाल हो जावे, मगर।

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मुँहचोर

9 जून 2022
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हम नहीं हैं कमाल वाले कम। लोग हममें कमाल पाते हैं। कुछ चुराते नहीं किसी का भी। पर सदा मुँह हमीं चुराते हैं। वे अगर हैं चतुर कहे जाते। ए बड़े बेसमझ कहायेंगे। जब कि चितचोर चित चुराते हैं। क्यों

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हमारे मालदार

9 जून 2022
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क्या कहें हाल मालदारों का। माल से है छिनाल घर भरता। काढ़ते दान के लिए कौड़ी। है कलेजा धुकड़ पुकड़ करता। किस तरह तब मान की मोहरें मिलें। उलहती रुचि बेलि रहती लहलही। देख कौड़ी दूर की लाते हमें।

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निराले लोग

9 जून 2022
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एक डौंडी है बजाती नींद की। दूसरे मुँहचोर से ही हैं हिले। नाक तो है बोलती ही, पर हमें। नाक में भी बोलने वाले मिले। आप जो चाहिए बिगड़ कहिये। पर नहीं यह सवाल होता हल। पाँव की धूल झाड़ने वाला। कि

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