हरिऔध जी पहले ब्रज भाषा में कविता किया करते थे | किंतु द्विवेदी जी के प्रभाव से खड़ी बोली के क्षेत्र में आए और खड़ी बोली को काव्य भाषा के रूप में प्रयुक्त किया | यह भारतेंदु के बाद सबसे अधिक प्रसिद्ध कवि थे | जो नए विषयों की काव्य जगत में स्थापना की उनके साहित्य पर भारतेंदु युग की प्रवृत्तियों की छाप स्पष्ट है | इनके काव्य में जहां एक ओर भावुकता है वहीं दूसरी ओर बौद्धिकता का समावेश भी है | हरिऔध जी का भाषा पर पूर्ण अधिकार है | इनमें सरल से सरल भाषा तथा कठिन भाषा लिखने की क्षमता थी, खड़ी बोली एवं ब्रजभाषा दोनों पर इनका समान अधिकार था | हिंदी की खड़ी बोली के सार्थक एवं समर्थक प्रयोग पर जितना इनका अधिकार रहा उतना इन के युग में शायद किसी कोई और कवि का रहा हो | इनकी भाषा प्रमुख रूप से संस्कृत गर्वित और उर्दू फारसी मिश्रित हिंदुस्तानी थी
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