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नोक-झाेंक

9 जून 2022

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जा रही हैं सूखती सुख क्यारियाँ।

जो रहीं न्यारे रसों से सिंच गईं।

खिंच गये तुम भी इसी का रंज है।

खिंच गईं भौंहें बला से खिंच गईं।


साँच को आँच है नहीं लगती।

हम करेंगे कभी नहीं सौंहें।

चिढ़ गये तो चिढ़े रहें डर क्या।

चढ़ गईं तो चढ़ी रहें भौंहें।


जाय जिससे कुचल कभी कोई।

चाल ऐसी भले न चलते हैं।

आप तो बात ही बदलते थे।

आँख अब किसलिए बदलते हैं।


जब जगह रह गई नहीं जी में।

तब भला क्यों न जी फिरा पाते।

जब बचा रह गया न अपनापन।

आँख कैसे न तब बचा जाते।


जो बहुत से भेद जी के थे छिपे।

आँख से ही लग गये उन के पते।

क्या हुआ जी की अगर चोरी खुली।

जब रहे आँखें चुरा कर देखते।


क्या अजब जो ललक पड़ें; उमगें।

खिल उठें, स्वांग सैकड़ों रच लें।

मुँह खिला देख प्यार-पुतलों का।

आँख की पुतलियाँ अगर मचलें।


पक गया जी, नाक में दम हो गया।

तुम न सुधरे, सिर पड़ी हम ने सही।

हँस रहे हो या नहीं हो हँस रहे।

पर तुम्हारी आँख तो है हँस रही।


छोड़िये ऐंठ मानिये बातें।

किसलिए आप इतने ऐंठे हैं।

आइये आँख पर बिठायेंगे।

आज आँखें बिछाये बैठे हैं।


हम तुम्हें देख देख जीयेंगे।

और के मुँह को देख तुम जी लो।

हम न बदलेंगे रंग अपना, तुम।

आँख अपनी बदल भले ही लो।


हम सदा जी दिया किये तुम को।

तुम हमें जी कभी नहीं देते।

आँख हम तो नहीं बदलते हैं।

आप हैं आँख क्यों बदल लेते।


कुछ पसीजी और जी के मैल को।

एक दो बूँदें गिरा, कुछ धो गईं।

देख लो लाचार तुम भी हो गये।

आज तो दो चार आँखें हो गईं।


लूट लो, पीस दो, मसल डालो।

पर सितम मौत का बसेरा है।

देख अँधेरा, यह कहेंगे हम।

आँख पर छा गया अँधेरा है।


जब कि धन भर गया बहुत उस में।

तब मुरौअत कहाँ ठहर पाती।

जब उलट कर न आप देख सके।

आँख कैसे न तब उलट जाती।


छूट कैसे हाथ से उसके सकें।

जो किसी को हाथ में नट कर करे।

किस तरह उस से बचावें आँख हम।

जो हमारी आँख ही में घर करे।


देखना ही कमाल रखता है।

प्यार का रंग कब जमा वैसे।

आँख जिस पर ठहर नहीं पाती।

आँख में वह ठहर सके कैसे।


आज भी है याद वैसी ही बनी।

है वही रंगत औ चाहत है वही।

तुम तरस खा कर कभी मिलते नहीं।

आँख अब तक तो तरसती ही रही।


देखने ही के लिए सूरत बनी।

देखने ही में न वह पीछे पड़े।

आँख में चुभ कर न आँखों में चुभे।

आँख में गड़ कर न आँखों में गड़े।


जो किसी को लगा बुरा धब्बा।

तो ढिठाई उसे नहीं धोती।

सामने आँख तब करें कैसे।

सामने आँख जब नहीं होती।


हो सराबोर तुम रसों में, तो।

मैं रसों का अजीब सोता हूँ।

किस लिए आँख यों बचाते हो।

मैं नहीं आँखफोड़ तोता हूँ।


देखिये क्या कर दिखाता भाग है।

वे भरे हैं और हम भी हैं खरे।

आज वे बेदरदियों पर हैं अड़े।

हम खड़े हैं आँख में आँसू भरे।


तब भला बात का असर क्या हो।

जब असर के न रह गये नाते।

है कसर बैठ जब गई जी में।

किस तरह आँख तब उठा पाते।


तब भला सीध में कसर क्यों हो।

जब रहे ठीक आँख का तारा।

तब सके चूक किस तरह से वह।

जब गया तीर ताक कर मारा।


आज तक कुछ भी सँभल पाये नहीं।

बात से तो नित सँभलते ही रहे।

ढंग बदलें जो बदलते बन सके।

आप तेवर तो बदलते ही रहे।


काम टेढे से बने टेढे चला।

मान सीधो हो सके सीधो कहे।

क्यों न हम भी आज तेवर लें चढ़ा।

हैं बुरे तेवर दिखाई दे रहे।


हम बड़ी बातें करें तो क्यों करें।

आप ही तो कर बड़ी बातें बढ़े।

हम चढ़ायेंगे कभी तेवर नहीं।

क्यों न होवें आप के तेवर चढे।


बेतरह अरमान मेरे मिस उठे।

साँसतें सारी उमंगों ने सहीं।

हम रहें तो किस तरह अच्छे रहें।

आज तेवर आप के अच्छे नहीं।


किस लिए उन पर कड़े पड़ते रहे।

हाथ बाँधो जो रहे सब दिन खड़े।

डर हमें तिरछी निगाहों का नहीं।

देखिये अब बल न तेवर पर पड़े।


चाहिए था न चोट यों करना।

पत्थरों के बने न सीने थे।

क्यों भला आप भर गये साहब।

कान ही तो भरे किसी ने थे।


क्यों कहेंगे न, सुन सके; सुन लें।

हम मनायेंगे, आप ऐंठे हैं।

हम सकें मूँद मुँह भला कैसे।

आप तो कान मूँद बैठे हैं।


आप तूमार बाँध देते हैं।

और हम ने न खोल मुँह पाया।

हो न जावें तमाम हम कैसे।

आपका गाल तमतमा आया।


आप ही जब कि तन गये मुझ से।

तब भला किस तरह भवें न तनें।

जब हुईं लाल लाल आँखें तब।

गाल कैसे न लाल लाल बनें।


भेद कितने बिन खुले ही रह गये।

आज तक भी आप ने खोले नहीं।

आप का मुँह ताकते ही रह गये।

आप तो मुँह भर कभी बोले नहीं।


किस तरह से दूसरे मीठे बने।

और हम कैसे बने तीते रहे।

आप मुँह से बोल तक सकते नहीं।

आप का मुँह देख हम जीते रहे।


हैं हमीं ऐसे कि जिस को हर घड़ी।

निज सगों का ही बना खटका रहा।

लख लटूरे बाल को जी लट गया।

लट लटकती देख मुँह लटका रहा।


आँख से क्या निकल पड़े आँसू।

मैल जी का सहल नहीं धुलना।

आप मुँह देख जीभ ले ही लें।

है बहुत ही मुहाल मुँह खुलना।


बढ़ गये पर बुरे बखेड़ों के।

बैर का पाँव गाड़ना देखा।

हो गये पर बिगाड़ बिगड़े का।

मुँह बिगड़ना बिगाड़ना देखा।


वह उतर कर चढ़ा रहा चित पर।

रंग लाया पसीज पड़ कर भी।

बन गई बात बिन बनाये ही।

रंग मुँह का बना बिगड़ कर भी।


कारनामा वह बहुत आला रहा।

आप की करतूत है भोंड़ी बड़ी।

मुँह दिया था दैव ने ही तो बना।

आप को क्या मुँह बनाने की पड़ी।


क्यों न सब दिन मुँह चुराते वे रहें।

चोर को देती चिन्हा हैं चोरियाँ।

हैं बड़ी कमजोरियाँ उन में भरी।

देख लीं मुँहजोर की मुँहजोरियाँ।


बात वह भी लगी बहुत खलने।

आप को जो न थी कभी खलती।

अब लगे आप मुँह चलाने क्यों।

जीभ तो कम नहीं रही चलती।


इस तरह का बना कलेजा है।

जो कि सारी मुसीबतें सह ले।

बेधड़क आग मुँह उगल लेवे।

जीभ बातें गरम गरम कह ले।


आप साहस बँधाइये मुझ को।

क्या करेंगी भली बुरी घातें।

देखिये दब न जाय जी मेरा।

सुन दबी जीभ की दबी बातें।


जब कि नीरस बात मुँह पर आ गई।

किस तरह रस-धार तब जी में बहे।

छरछराहट जब कलेजे में हुई।

मुसकुराहट होठ पर कैसे रहे।


प्यार का कुम्हला गया मुखड़ा खिला।

पड़ गये अरमान पर रस के घड़े।

मैल कितना ही निकल पल में गया।

खोल कर दिल खिलखिलाकर हँस पड़े।


आँख कैसे न तब बहा करती।

आँख ही आँख जब गड़ाती है।

किस तरह तब हँसी न छिन जाती।

जब हँसी ही हँसी उड़ाती है।


दिल छिलेंगे कभी न क्या उन के।

क्या पड़ेंगे न जीभ पर छाले।

बेतरह छिल गये कलेजे को।

छील लें बात छीलने वाले।


सामना जब बदसलूकी का हुआ।

तब बिचारी बूझ जाती दब न क्यों।

बान ही जब है उलझने की पड़ी।

बात कह उलझी उलझते तब न क्यों।


दिल भला किस तरह न जाता हिल।

जब कपट से न ठीक ठीक पटी।

जीभ कैसे न लटपटा जाती।

बात कहते हुए लगी लिपटी।


बान जिन की पड़ी बहकने की।

मानते वे नहीं बिना बहके।

बेतुकापन नहीं दिखाते कब।

बेतुके बात बेतुकी कह के।


जब सुलझना उन्हें नहीं आता।

तब गिरह खोल किस तरह सुलझें।

चाल का जाल जब बिछाते हैं।

तब न क्यों बात बात में उलझें।


लूटते हैं फँसा लपेटों में।

बेतरह हैं कभी कभी ठगते।

कब नहीं बूझ से गये तोले।

हैं बतोले बहुत बुरे लगते।


जो किसी चित से नहीं पाती उतर।

दे बना बेचैन वह मूरत नहीं।

अनबनों में पड़ न आँखों में गड़े।

देखिये बिगड़े बनी सूरत नहीं।


सब तरह के लाभ की बातें सुना।

रुचि बहुत ही आज बहलाई गई।

किस तरह देखे बिना सूरत जियें।

वह हमें सूरत न बतलाई गई।


भौंह सीधी, हँसी बहुत सादी।

औ सरलपन भरी हुई बोली।

हम भला भूल किस तरह देवें।

भूलती हैं न सूरतें भोली।


लालसा है रस बरसती ही रहे।

पर तुमारी आँख रिस से लाल है।

यह चमेली है खिलाना आग में।

यह हथेली पर जमाना बाल है।


प्यारे का प्याला नहीं हम भर सके।

भर सको तो अब उसे भर लो तुम्हीं।

हम तुम्हें तो ले न मूठी में सके।

मूठियों में अब हमें कर लो तुम्हीं।


गुदगुदायें औ रिझायें रीझ कर।

बात मीठी बोल कर मन मोल लें।

दूसरा तो खोल सकता ही नहीं।

खोलना हो आप मूठी खोल लें।


काम कब तक भला बनावट दे।

रीझ कब तक भला रहे रूठी।

बोलते बोलते गये खुल हम।

खोलते खोलते खुली मूठी।


हम बलायें आप की हैं ले रहे।

और हम पर आप लाते हैं बला।

चाल चलने से कभी चूके नहीं।

चाह है तो लो तमाचे भी चला।


यह सताने में सहमता ही नहीं।

सब सुखों के हैं हमें लाले पड़े।

सुन गँसीली बात हाथों के मले।

छिल गया दिल, हाथ में छाले पड़े।


मत बचन-बान मार बीर बनें।

क्या नहीं प्यार प्यार-थाती में।

छेद लें छेदने चले हैं तो।

देखिये हो न छेद छाती में।


आप के जैसा जिसे हीरा मिले।

क्यों मरे वह चाट हीरे की कनी।

आप तन करके हमें तन बिन न दें।

जो तनी है तो रहे छाती तनी।


जब कभी बात तर कही न गई।

हो सके किस तरह कलेजा तर।

देखना हो अगर दहल दिल की।

देखिये हाथ रखकर कलेजे पर।


किस तरह प्यार कर सकें उन को।

जो चुभे बार बार नेजे से।

दुख कलेजा गया जिन्हें देखे।

क्यों लगायें उन्हें कलेजे से।


बेतरह रोब गाँठते ही थे।

अब गया मौत को सहेजा क्यों।

आँख तो आप काढ़ते ही थे।

अब लगे काढ़ने कलेजा क्यों।


किस तरह रीझता रिझाये वह।

जब किये प्यार खीज खीजा ही।

किस तरह तब पसीजता कोई।

जब कलेजा नहीं पसीजा ही।


है बड़े बेपीर से पाला पड़ा।

भाग में सुख है न दुखियों के लिखा।

जो कलेजा देख दुख पिघला नहीं।

तो कलेजा काढ़ कैसे दें दिखा।


प्यार ही से भरा हुआ वह है।

देख लें देख वे सकें जैसे।

जब निकलती नहीं कसर जी की।

हम कलेजा निकाल दें कैसे।


ताड़ने वाले नहीं कब ताड़ते।

तोड़ना है दिल अगर तो तोड़ लो।

मुँह चिढ़ा लो मोड़ लो मुँह बक बहँक।

फोड़ लो दिल के फफोले फोड़ लो।


वे चुहल के चाव के पुतले बने।

चोचलों का रंग है पहचानते।

चाल चखना, चौंकना, जाना मचल।

दिल चलाना दिलजले हैं जानते।


वह भला है, है भलाई से भरा।

या घिनौने भाव हैं उस में घुसे।

खोल कर हम दिल दिखायें किस तरह।

देख लें दिल देखने वाले उसे।


देखने दें मूँद आँखों को न दें।

हिल गये क्यों, जो गई है जीभ हिल।

आप छन भर सोचने देवें हमें।

सब गया छिन, अब न लेवें छीन दिल।


कुछ नहीं रंग ढंग मिल पाता।

हिल गया वह, कभी गया वह खिल।

क्या भला खीज कर किया दिल ने।

क्या करेगा पसीज करके दिल।


क्यों हँसी मेरी उड़ाती है हँसी।

बात रंगत में चुहल की क्यों ढली।

किस लिए दिल काटने चुटकी लगा।

आप ने चुटकी अगर दिल में न ली।


प्यार तो हम किया करेंगे ही।

बारहा क्यों न जाय दिल फेरा।

दिलजले हम बने रहेंगे ही।

क्यों न हो दिल दलेल में मेरा।


प्यार जब चाहते नहीं करना।

क्यों न सुन नाम प्यार का काँखें।

रंग बदला, बदल गये तेवर।

दिल बदलते बदल गईं आँखें।


कर सके तो कर दिखाये प्यार ही।

वह सितम के खोज ले हीले नहीं।

ले भले ही ले दुखाये दिल नहीं।

छीन ले दिलदार दिल छीले नहीं।


है कलह तोर मोर का पुतला।

है कपट का उसे मिला ठीका।

है भरी पोर पोर कोर कसर।

वह बड़ा ही कठोर है जी का।


हम नहीं आँखें लड़ाना चाहते।

हैं लड़ाकी आप की आँखें लड़ें।

आप जी में जल रहे हैं तो जलें।

क्यों फफोले और के जी में पड़ें।


अब न आँसू आँख में मेरी रहा।

आप ने आँखें उठा ताका नहीं।

क्यों पके जी का मरम वह, पा सके।

हो गया जिसका कि जी पाका नहीं।


थीं पसंद बनाव की बातें हमें।

अलबनों का तुम गला रेते रहे।

कब रहे लेते हमारा जी न तुम।

हम तुम्हें कब जी नहीं देते रहे।


बात पर आन बान वालों की।

आप क्यों कान दे नहीं सकते।

तो गँवा मान और क्या माँगें।

जी अगर दान दे नहीं सकते।


बे ठने उस से रहेगी किस तरह।

जो कि उठते बैठते है ऐंठता।

बात क्यों उस से बिठाये बैठती।

फेर करके पीठ जो है बैठता।


आप के हाथ ही बिके हम हैं।

रुचि रही कब न आप की चेरी।

है अगर चाह भाँप लेने की।

आप तो पीठ नाप लें मेरी।


अड़ गये अपनी जगह पर गड़ गये।

देख लो तुम टाल टलते ही नहीं।

हम न मचले हैं चलें तो क्यों चलें।

ऐ हमारे पाँव चलते ही नहीं।

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रचनाएँ
चोखे चौपदे
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प्रत्येक भाषा के लिये स्थायी साहित्य की आव-श्यकता होती है। जो विचार व्यापक और उदात्त होते हैं, जिन का सम्बन्ध मानवीय महत्त्व अथवा सदा-चार से होता है, जो चरित्रगठन और उल की चरितार्थता के सम्बल होते हैं, जिन भावों का परम्परागत सम्बन्ध किसी जाति की सभ्यता और आदर्श से होता है, जो उद्गार हमारे तमोमय मार्ग के आलोक बनते हैं, उन का वर्णन अथवा निरूपण जिन रचनाओं अथवा कविताओं में होता है, वे रखना और उक्तियां स्थायिनी होती हैं ।
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प्रेमबंधन

9 जून 2022
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जो किसी के भी नहीं बाँधे बँधे। प्रेमबंधदन से गये वे ही कसे। तीन लोकों में नहीं जो बस सके। प्यारवाली आँख में वे ही बसे।। पत्तियों तक को भला कैसे न तब। कर बहुत ही प्यार चाहत चूमती। साँवली सूरत त

2

माँ की ममता

9 जून 2022
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भूल कर देह-गेह की सब सुधा। माँ रही नेह में सदा माती। जान को वार कर जिलाती है। पालती है पिला-पिला छाती।। देख कर लाल को किलक हँसते। लख ललक बार-बार ललचाई। कौन माँ भर गई न प्यारों से। कौन छाती भल

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कवि

9 जून 2022
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कवि अनूठे कलाम के बल से। हैं बड़ा ही कमाल कर देते। बेधाने के लिए कलेजों को। हैं कलेजा निकाल धार देते।। है निराली निपट अछूती जो। हैं वही सूझ काम में लाते। कम नहीं है कमाल कवियों में। है कलेजा

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प्यार के पुतले

9 जून 2022
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बात मीठी लुभावनी सुन-सुन। जो नहीं हो मिठाइयाँ देते। तो खिले फूल से दुलारे का। चाह से गाल चूम तो लेते।। हाथ उन पर भला उठायें क्यों। जो कि हैं ठीक फूल ही जैसे। पा सके तन गला-गला जिन को। गाल उनक

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अनूठी बातें

9 जून 2022
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जो बहुत बनते हैं उनके पास से। चाह होती है कि कब कैसे टलें। जो मिले जी खोल कर, उनके यहाँ। चाहता है जी कि सिर के बल चलें।। भूल जावे कभी न अपनापन। जान दे पर न मान को दे, खो। लोग जिस आँख से तुम्हे

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सुनहली सीख

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सैकड़ों ही कपूत-काया से। है भली एक सपूत की छाया। हो पड़ी चूर खोपड़ी ने ही। अनगिनत बाल पाल क्या पाया। जो भला है और चलता है सँभल। है भला उस को किसी से कौन डर। दैव की टेढ़ी अगर भौंहें न हों। क्य

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अछूते फूल

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फूल में कीट, चाँद में धब्बे। आग में धूम, दीप में काजल। मैल जल में, मलीनता मन में। देख किस का गया नहीं दिल मल। है बुरा, घास-फूस-वाला घर। मल भरा तन, गरल भरा प्याला। रिस भरी आँख, सर भरा सौदा। मन

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रस के छींटे

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भाग में मिलना लिखा था ही नहीं। तुम न आये साँसतें इतनी हुईं। जी हमारा था बहुत दिन से टँगा। आज आँखें भी हमारी टँग गईं। सूखती चाह-बेलि हरिआई। दूध की मक्खियाँ बनीं माखें। रस बहा चाँदनी निकल आई। ख

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नोक-झाेंक

9 जून 2022
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जा रही हैं सूखती सुख क्यारियाँ। जो रहीं न्यारे रसों से सिंच गईं। खिंच गये तुम भी इसी का रंज है। खिंच गईं भौंहें बला से खिंच गईं। साँच को आँच है नहीं लगती। हम करेंगे कभी नहीं सौंहें। चिढ़ गये त

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दृष्टान्त

9 जून 2022
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है जिन्हें सूझ, जोड़ से ही, वे। भिड़ सके लाग डाँट साथ बड़ी। भूल कर भी लड़ी न भौंहों से। जब लड़ी आँख साथ आँख लड़ी। देख कर रंग जाति का बदला। जाति का रंग है बदल जाता। देख आँखें हुईं लहू जैसी। आँ

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बाल

9 जून 2022
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बीर ऐसे दिखा पड़े न कहीं। सब बड़े आनबान साथ कटे। जब रहे तो डटे रहे बढ़ कर। बाल भर भी कभी न बाल हटे। नुच गये, खिंच उठे, गिरे, टूटे। और झख मार अन्त में सुलझे। कंघियों ने उन्हें बहुत झाड़ा। क्या

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चोटी

9 जून 2022
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जो समय के साथ चल पाते नहीं। टल सकी टाले न उन की दुख-घड़ी। छीजती छँटती उखड़ती क्यों नहीं। जब कि चोटी तू रही पीछे पड़ी। निज बड़ों के सँग बुरा बरताव कर। है नहीं किस की हुई साँसत बड़ी। क्यों नहीं

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सिर और पगड़ी

9 जून 2022
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सिर! उछालीं पगड़ियाँ तुम ने बहुत। कान कितनों का कतर यों ही दिया। लोग भारी कह भले ही लें तुम्हें। पर तुमारा देख भारीपन लिया। सूझ के हाथ पाँव जो न चले। जो बनी ही रही समझ लँगड़ी। तो तुम्हारी न पत

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सिर और सेहरा

9 जून 2022
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सोच लो, जी में समझ लो, सब दिनों। यों लटकती है नहीं मोती-लड़ी। जब कि तुम पर सिरसजा सेहरा बँधा। मुँह छिपाने की तुम्हें तब क्या पड़ी। ला न दें सुख में कहीं दुख की घड़ी। ढा न दें कोई सितम आँखें गड़

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सिर और पाँव

9 जून 2022
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जो बड़े हैं भार जिन पर है बहुत। वे नहीं हैं मान के भूखे निरे। है न तन के बीच अंगों की कमी। पर गिरे जब पाँव पर तब सिर गिरे। लोग पर के सामने नवते मिले। पर न ये कब निज सगों से, जी फिरे। दूसरों के

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सिर

9 जून 2022
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क्या हुआ पा गये जगह ऊँची। जो समझ औ बिचार कर न चले। सिर! अगर तुम पड़े कुचालों में। तो हुआ ठीक जो गये कुचले। जो कि ताबे बने रहे सब दिन। वे सँभल लग गये दिखाने बल। हाथ क्या, उँगलियाँ दबाती हैं। स

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माथा

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छूट पाये दाँव-पेचों से नहीं। औ पकड़ भी है नहीं जाती सही। हम तुम्हें माथा पटकते ही रहे। पर हमारी पीठ ही लगती रही। चाहिए था पसीजना जिन पर। लोग उन पर पसीज क्यों पाते। जब कि माथा पसीज कर के तुम।

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तिलक

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हो भले देते बुरे का साथ हो। भूल कर भी तुम तिलक खुलते नहीं। किस लिए लोभी न तुम से काम लें। तुम लहर से लोभ को धुलते नहीं। हो भलाई के लिए ही जब बने। तब तिलक तुम क्यों बुराई पर तुले। भेद छलियों के

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आँख

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सूर को क्या अगर उगे सूरज। क्या उसे जाय चाँदनी जो खिल। हम अँधेरा तिलोक में पाते। आँख होते अगर न तेरे तिल। क्या हुआ चौकड़ी अगर भूले। लख उछल कूद और छल करना। है छकाता छलाँग वालों को। आँख तेरा छला

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आँसू

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तुम पड़ो टूट लूटलेतों पर। क्यों सगों पर निढाल होते हो। दो गला, आग के बगूलों को। आँसुओं गाल क्यों भिंगोते हो। आँसुओ! और को दिखा नीचा। लोग पूजे कभी न जाते थे। क्यों गँवाते न तुम भरम उन का। जो त

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नाक

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हो उसे मल से भरा रखते न कम। यह तुम्हारी है बड़ी ही नटखटी। तो न बेड़ा पार होगा और से। नाक पूरे से न जो पूरी पटी। जो भरे को ही रहे भरते सदा। वे बहुत भरमे छके बेढंग ढहे। नाक तुम को क्यों किसी ने

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कान

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रासपन के चिद्द से जो सज सका। क्यों नहीं तन बिन गया वह नोचतन। कान! तेरी भूल को हम क्या कहें। बोलबाला कब रहा बाला पहन। धूल में सारी सजावट वह मिले। दूसरा जिससे सदा दुख ही सहे। और पर बिजली गिराने

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गाल

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वह लुनाई धूल में तेरी मिले। दूसरों पर जो बिपद ढाती रहे। गाल तेरी वह गोराई जाय जल। जो बलायें और पर लाती रहे। तो गई धूल में लुनाई मिल। औ हुआ सब सुडौलपन सपना। पीक से बार बार भर भर कर। गाल जब तू

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मुँह

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हो गयी बन्द बोलती अब तो। तू बहुत क्या बहक बहक बोला। तू भली बात के लिए न खुला। मुँह तुझे आज मौत ने खोला। हैं बहुत से अडोल ऐसे भी। जो कि बिजली गिरे नहीं डोले। 'जी' गये भी नहीें खुला जो मुँह। मौ

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दाँत

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हो बली, रख डीलडौल पहाड़ सा। बस बड़े घर में, समझ होते बड़ी। हाथियों को दाँत काढ़े देख कर। दाबनी दाँतों तले उँगली पड़ी। जब कि करतूत के लगे घस्से। तब भला किस तरह न वे घिसते। पीसते और को सदा जब थे

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जीभ

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कट गई, दब गई, गई कुचली। कौन साँसत हुई नहीं तेरी। जीभ तू सोच क्या मिला तुझ को। दाँत के आस पास दे फेरी। जब बुरे ढंग में गई ढल तू। फल बुरा तब न किस तरह पाती। बोलती ऐंठ ऐंठ कर जब थी। जीभ तब ऐंठ क

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होठ

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पान ने लाल और मिस्सी ने। होठ तुम को बना दिया काला। क्या रहा, जब ढले उसी रंग में। रंग में जिस तुमें गया ढाला। जब कि उन में न रह गई लस्सी। वे भला किस तरह सटेंगे तब। नेह का नाम भी न जब लेंगे। हो

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हँसी

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जब कि बसना ही तुझे भाता नहीं। तब किसी की आँख में तू क्यों बसी। क्या मिला बेबस बना कर और को। क्यों हँसी भाई तुझे है बेबसीे। जो कि अपने आप ही फँसते रहे। क्यों उन्हीं के फाँसने में वह फँसी। जो बल

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दम

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क्यों लिया यह न सोच पहले ही। आप तुम बारहा बने यम हो। हैं खटकते तुम्हें किये अपने। क्या अटकते इसी लिए दम हो।

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छींक

9 जून 2022
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पड़ किसी की राह में रोड़े गये। औ गये काँटे बिखर कितने कहीं। जो फला फूला हुआ कुम्हला गया। यह भला था छींक आती ही नहीं। क्यों निकल आई लजाई क्यों नहीं। क्यों सगे पर यों बिपद ढाती रही। तब भला था, थ

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दाढ़ी

9 जून 2022
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बेबसी तो है इसी का नाम ही। पड़ पराये हाथ में हैं छँट रही। प्रोंच कट क्या सैकड़ों कट में पड़ी। आज कितनी दाढ़ियाँ हैं कट रही। जब रहा पास कुछ न बल-बूता। जब न थी रोक थाम कर पाती। जब उखड़ती रही उखा

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गला

9 जून 2022
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तब खिले फूल से सजा क्या था। तब भला क्या रहा सुगंधा भरा। तब दिलों को रहा लुभाता क्या। जब किसी के गले पड़ा गजरा। वह तुम्हारा बड़ा रसीलापन। सच कहो हो गया कहाँ पर गुम। जो कभी काम के न फल लाये। तो

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कंठ

9 जून 2022
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जब भले सुर मिले नहीं उस में। जब कि रस में रहा न वह पगता। तब पहन कर भले भले गहने। कंठ कैसे भला भला लगता। जो निराला रंग बू रखते रहे। फूल ऐसे बाग में कितने खिले। जो कि रस बरसा बहुत आला सके। वे र

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गाना, गला, कंठ

9 जून 2022
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हो सके हम सुखी नहीं अब भी। आप का मेघराज आना सुन। आँख से आज ढल पड़ा आँसू। मल गया दिल मलार गाना सुन। बेसुरी तब बनी न क्यों बंसी। बीन का तार तब न क्यों टूटा। तब रहीं क्या सरंगियाँ बजती। आज सस्ते

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हथेली

9 जून 2022
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क्या कहें हम और हम ने आज ही। आँख से मेहँदी लगाई देख ली। जब ललाई और लाली के लिए। तब हथेली की ललाई देख ली। कर रही हैं लालसायें प्यार की। क्या लुनाई के लिए अठखेलियाँ। या किसी दिल के लहू से लाल बन

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उँगली

9 जून 2022
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काम जैसे पसंद हैं जिस को। फल मिलेंगे उसे न क्यों वैसे। हैं अगर काट कूट में रहती। तो कटेंगी न उँगलियाँ कैसे। हाथ का तो प्यार सब के साथ है। काम उस को है सबों से हर घड़ी। है छोटाई या बड़ाई की न स

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मूठी

9 जून 2022
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वह भरी तो क्या जवाहिर से भरी। जो नहीं हित-साधनाओं में सधी। जब बँधी वह बाँधने ही के लिए। तब अगर मूठी बँधी तो क्या बँधी। लाल मुँह कर तोड़ दे कर दाँत को। साधने में बैर के ही जब सधी। जब खुले पंजा,

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हाथ

9 जून 2022
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बीज बोते रहे बुराई के। जो बदी के बने रहे बम्बे। जो उन्हें देख दुख न लम्बे हों। तो हुए हाथ क्या बहुत लम्बे। घिर गये पर जब निकल पाये नहीं। तब रहे क्या दूसरों को घेरते। आप ही जब फेर में वे हैं पड

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छाती

9 जून 2022
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नाम को जिन में भलाई है नहीं। बन सकेंगे वे भले कैसे बके। कह सकेंगे हम नरम कैसे उसे। जो नरम छाती न नरमी रख सके। जो रही चूर रँगरलियों में। जो सदा थी उमंग में माती। आज भरपूर चोट खा खा कर। हो गई च

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पेट

9 जून 2022
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कुछ बड़ाई अगर नहीं रखते। हो सके कुछ न तो बड़े हो कर। दुख कड़ाई किसे नहीं देती। देख लो पेट तुम कड़े हो कर। तू न करता अगर सितम होता। तो बड़े चैन से बसर होती। तो न हम बैठते पकड़ कर सर। पेट तुझ म

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तलवा

9 जून 2022
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जब न काँटे के लिए काँटा बने। पाँव के नीचे पड़े जब सब सहें। जब छिदे छिल छिल गये सँभले नहीं। क्यों न तब छाले भरे तलवे रहें।

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बात की करामात

9 जून 2022
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क्या अजब मुँह सी गया उनका अगर। टकटकी बाँधे हुए जो थे खड़े। जब बरौनी से तुझे सूई मिली। आँख तुझ में जब रहे डोरे पड़े। थिर नहीं होतीं थिरकती हैं बहुत। हैं थिरकने में गतों को जाँचती। काठ का पुतला

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अनूठे विचार

9 जून 2022
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जब न उस में मिला रसीलापन। जीभ उस की बनी सगी तब क्या। फूल मुँह से अगर न झड़ पाया। बात की झड़ भला लगी तब क्या। खोट घुट्टी में किसी की जो पड़ी। वह बँटाने से कभी बँटती नहीं। नाक कटवा ली गई कह कर ज

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पते की बातें

9 जून 2022
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रुच गई तो रँगरलियाँ किस तरह। दिल न जो रंगीनियों में था रँगा। छिप सकेगी तो लहू की चाट क्यों। हाथ में लहू अगर होवे लगा। किस तरह तब निकल सके कीना। जब कसर ही निकल न पाती है। किस लिए बाल-दूब तो न ज

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भेद की बातें

9 जून 2022
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है उसी एक की झलक सब में। हम किसे कान कर खड़ा देखें। तो गड़ेगा न आँख में कोई। हम अगर दीठ को गड़ा देखें। एक ही सुर सब सुरों में है रमा। सोचिये कहिये कहाँ वह दो रहा। हर घड़ी हर अवसरों पर हर जगह।

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आनबान

9 जून 2022
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लोग काना कहें, कहें, सब क्या। लग किसी की न जायगी गारी। चाहिए और की न दो आँखें। है हमें एक आँख ही प्यारी। चाहते हैं कभी न दो आँखें। दुख जिन्हें धुंध साथ घेरे हो। ठीक, सुथरी, निरोग, उजली हो। एक

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प्यार के पहलू

9 जून 2022
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है उन्हें चाव ही न झगड़ों का। पाँव जो प्यार-पंथ में डालें। वे रखेंगे न काम रगड़ों से। नाक ही क्यों न हम रगड़वा लें। सब सहेंगे हम, सहें कुछ भी न वे। जाँयगे हम सूख उन के मुँह सुखे। जाय दुख तो जी

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निवेदन

9 जून 2022
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हम सदा फूलें फ़लें देखें सुदिन। पर उतारा जाय कोई सर नहीं। हो कलेजा तर रहे तर आँख भी। पर लहू से हाथ होवे तर नहीं। रंगरलियाँ हमें मनाना है। रंग जम जाय क्यों न जलवों से। है ललक लाल लाल रंगत की।

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मन

9 जून 2022
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है मनाना या मना करना कठिन। मन सबों को छोड़ पाता छन नहीं। तब भला कैसे न मनमानी करे। है किसी के मान का जब मन नहीं। काम के सब भले पथों को तज। फँस गया बार बार भूलों में। छोड़ फूले फले भले पौधो। म

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कुछ कलेजे

9 जून 2022
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मोम-माखन सा मुलायम है वही। प्यार में पाया उसी को सरगरम। है उसी में सब तरह की नरमियाँ। फूल से भी माँ-कलेजा है नरम। प्यार की आँच पा पिघलने में। माँ-कलेजा न मोम से कम है। वह निराली मुलायमीयत पा।

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कलेजा कमाल

9 जून 2022
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है लबालब भरा भलाई खल। सोहती है सहज सनेह लहर। है खिला लोक-हित-कमल जिस में। है कलेजा सुहावना वह सर। हैं सुरुचि के जहाँ बहे सोते। है दिखाती जहाँ दया-धारा। पा सके प्यार सा जहाँ पारस। है कलेजा-पहा

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कसौटी

9 जून 2022
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पास खुरचाल पेचपाच कसर। कुढ़ कपट काटछाँट कीना है। क्यों करेगा नहीं कमीनापन। कम कलेजा नहीं कमीना है। कुछ न है माल सामने उस के। वह बिना माल मालवाला है। है उसी में कमाल सब मिलता। नर-कलेजा कमालवाल

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हाथ और दान

9 जून 2022
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दान जब तक फूल फल करता रहा। पेड़ तब तक फूल फल पाता रहा। दान-रुचि जी में नहीं जिस के रही। धन उसी के हाथ से जाता रहा। हित नमूना जो दिखाना है हमें। जो चहें यह, सुख न सूना घर करें। तो बना दिल सब दि

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हाथ और कमल

9 जून 2022
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है न वह रंग औ न वह बू। और वैसा नहीं बिमलपन है। वे भले ही रहें कमल बनते। पर कहाँ हाथ में कमलपन है। कब सका लिख, सका बसन कब सी। कब सका वह कभी कमा पैसा। हाथ तुझ में कमाल है वैसा। क्या कमल में कमा

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हाथ और फूल

9 जून 2022
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देखते उस की फबन जो आँख पा। तो कभी हित से नहीं मुँह मोड़ते। धूल में तुम हाथ क्यों मिलते नहीं। भूल है जो फूल को हो तोड़ते। जो खले दुख किसी तरह का दे। कब किसे ढंग वह सुहाता है। क्यों न ले तोड़ फू

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हाथ और तलवार

9 जून 2022
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खेलने पर के भरोसे क्या लगे। किस लिए हो भेद अपना खोलते। तोल तुम ने क्यों न अपने को लिया। हाथ तुम तलवार क्या हो तोलते। हाथ में तो तमकनत कम है नहीं। पर गईं बेकारियाँ बेकार कर। ताब तो है वार करने

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जी की कचट

9 जून 2022
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ब्योंत करते ही बरस बीते बहुत। कर थके लाखों जतन जप जोग तप। सब दिनों काया बनी जिससे रहे। हाथ आया वह नहीं काया कलप। किस तरह हम मरम कहें अपना। कब न काँटे करम रहा बोता। तब रहे क्यों भरम धरम क्यों ह

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थपेड़े

9 जून 2022
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पेटुओं को कभी टटोलो मत। कब गई बाँझ गाय दुह देखी। जो कि मुँह देख जी रहे हैं, वे। बात कैसे कहें न मुँह देखी। आज सीटी पटाक बन्द हुई। वे सटकते रहे बहुत वैसे। बात ही जब कि रह नहीं पाई। बात मुँह से

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निघरघट

9 जून 2022
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कर सकेगा नहीं निघरघटपन। जिस किसी में न लाज औ डर हो। जब बड़ों की बराबरी की तो। आँख कैसे भला बराबर हो। नामियों ने नाम पाकर क्या किया। किस लिए बदनामियों से हम डरें। मुँह भले ही लाल हो जावे, मगर।

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मुँहचोर

9 जून 2022
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हम नहीं हैं कमाल वाले कम। लोग हममें कमाल पाते हैं। कुछ चुराते नहीं किसी का भी। पर सदा मुँह हमीं चुराते हैं। वे अगर हैं चतुर कहे जाते। ए बड़े बेसमझ कहायेंगे। जब कि चितचोर चित चुराते हैं। क्यों

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हमारे मालदार

9 जून 2022
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क्या कहें हाल मालदारों का। माल से है छिनाल घर भरता। काढ़ते दान के लिए कौड़ी। है कलेजा धुकड़ पुकड़ करता। किस तरह तब मान की मोहरें मिलें। उलहती रुचि बेलि रहती लहलही। देख कौड़ी दूर की लाते हमें।

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निराले लोग

9 जून 2022
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एक डौंडी है बजाती नींद की। दूसरे मुँहचोर से ही हैं हिले। नाक तो है बोलती ही, पर हमें। नाक में भी बोलने वाले मिले। आप जो चाहिए बिगड़ कहिये। पर नहीं यह सवाल होता हल। पाँव की धूल झाड़ने वाला। कि

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