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मानव

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मानव जीवन है मिला , कर ले प्रभु का ध्यान। धन दौलत कामोह तज, त्याग सकल अभिमान।। इस जीवन का सार है, कर ले प्रभु से प्रीत। परम गति यदि पा सका, तो है सच्ची जीत।। प्राणी आया जगत में, क्या है इसका अर्थ। काम क्रोध मद लोभ में,फँस कर मत

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मानव अब मानव नहीं रहा। मानव अब दानव बन रहा। हमेशा अपनी तृप्ति के लिए, बुरे कर्मों को जगह दे रहा। राक्षसी वृत्ति इनके अन्दर। हृदय में स्थान बनाकर । विचरण चारों दिशाओं में, दुष्ट प्रवृत्ति को अपनाकर। कहीं कर रहे हैं लुट-पाट।कहीं जीवों का काट-झाट। करतें रहते बुराई का पाठ, यही बुनते -रहते सांठ-गाँठ। य

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