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यह मन्दिर का दीप

1 मार्च 2016

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यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो
रजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर,
गये आरती वेला को शत-शत लय से भर,
जब था कल कंठो का मेला,
विहंसे उपल तिमिर था खेला,
अब मन्दिर में इष्ट अकेला,
इसे अजिर का शून्य गलाने को गलने दो!

चरणों से चिन्हित अलिन्द की भूमि सुनहली,
प्रणत शिरों के अंक लिये चन्दन की दहली,
झर सुमन बिखरे अक्षत सित,
धूप-अर्घ्य नैवेदय अपरिमित
तम में सब होंगे अन्तर्हित,
सबकी अर्चित कथा इसी लौ में पलने दो!

पल के मनके फेर पुजारी विश्व सो गया,
प्रतिध्वनि का इतिहास प्रस्तरों बीच खो गया,
सांसों की समाधि सा जीवन,
मसि-सागर का पंथ गया बन
रुका मुखर कण-कण स्पंदन,
इस ज्वाला में प्राण-रूप फिर से ढलने दो!

झंझा है दिग्भ्रान्त रात की मूर्छा गहरी

आज पुजारी बने, ज्योति का यह लघु प्रहरी,

जब तक लौटे दिन की हलचल,

तब तक यह जागेगा प्रतिपल,

रेखाओं में भर आभा-जल

दूत सांझ का इसे प्रभाती तक चलने दो!

-महादेवी वर्मा

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यह मन्दिर का दीप

1 मार्च 2016
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यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो रजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर,गये आरती वेला को शत-शत लय से भर,जब था कल कंठो का मेला,विहंसे उपल तिमिर था खेला,अब मन्दिर में इष्ट अकेला,इसे अजिर का शून्य गलाने को गलने दो!चरणों से चिन्हित अलिन्द की भूमि सुनहली,प्रणत शिरों के अंक लिये चन्दन की दहली,झर सुमन बिखर

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जो तुम आ जाते एक बार

1 मार्च 2016
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जो तुम आ जाते एक बारकितनी करूणा कितने संदेशपथ में बिछ जाते बन परागगाता प्राणों का तार तारअनुराग भरा उन्माद रागआँसू लेते वे पथ पखारजो तुम आ जाते एक बारहँस उठते पल में आर्द्र नयनधुल जाता होठों से विषादछा जाता जीवन में बसंतलुट जाता चिर संचित विरागआँखें देतीं सर्वस्व वारजो तुम आ जाते एक बार-महादेवी वर्म

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तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या!

1 मार्च 2016
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तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या!तारक में छवि, प्राणों में स्मृतिपलकों में नीरव पद की गतिलघु उर में पुलकों की संस्कृतिभर लाई हूँ तेरी चंचलऔर करूँ जग में संचय क्या?तेरा मुख सहास अरूणोदयपरछाई रजनी विषादमयवह जागृति वह नींद स्वप्नमय,खेल-खेल, थक-थक सोने देमैं समझूँगी सृष्टि प्रलय क्या?तेरा अधर विचुंबित प

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अधिकार

1 मार्च 2016
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वे मुस्काते फूल, नहीं जिनको आता है मुर्झाना, वे तारों के दीप, नहीं जिनको भाता है बुझ जाना; वे नीलम के मेघ, नहीं जिनको है घुल जाने की चाह वह अनन्त रितुराज,नहीं जिसने देखी जाने की राह| वे सूने से नयन,नहीं जिनमें बनते आँसू मोती, वह प्राणों की सेज,नही जिसमें बेसुध पीड़ा सोती; ऐसा तेरा लोक, वेदना नहीं,नह

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वे मधु दिन जिनकी स्मृतियों की

1 मार्च 2016
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वे मधु दिन जिनकी स्मृतियों कीधुँधली रेखायें खोईं,चमक उठेंगे इन्द्रधनुष सेमेरे विस्मृति के घन में!झंझा की पहली नीरवता-सी नीरव मेरी साधें,भर देंगी उन्माद प्रलय कामानस की लघु कम्पन में!सोते जो असंख्य बुदबुद् सेबेसुध सुख मेरे सुकुमार;फूट पड़ेंगे दुख सागर कीसिहरी धीमी स्पन्दन में!मूक हुआ जो शिशिर-निशा मे

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अलि अब सपने की बात

1 मार्च 2016
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अलि अब सपने की बात-हो गया है वह मधु का प्रात!जब मुरली का मृदु पंचम स्वर,कर जाता मन पुलकित अस्थिर,कम्पित हो उठता सुख से भर,नव लतिका सा गात!जब उनकी चितवन का निर्झर,भर देता मधु से मानस-सर,स्मित से झरतीं किरणें झर झर,पीते दृग - जलजात!मिलन-इन्दु बुनता जीवन पर,विस्मृति के तारों से चादर,विपुल कल्पनाओं का म

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जीवन दीप

1 मार्च 2016
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किन उपकरणों का दीपक,किसका जलता है तेल?किसकी  वर्त्ति, कौन करताइसका ज्वाला से मेल?शून्य काल के पुलिनों पर-जाकर चुपके से मौन,इसे बहा जाता लहरों मेंवह रहस्यमय कौन?कुहरे सा धुँधला भविष्य है,है अतीत तम घोर ;कौन बता देगा जाता यहकिस असीम की ओर?पावस की निशि में जुगनू का-ज्यों आलोक-प्रसार।इस आभा में लगता तम

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फूल

1 मार्च 2016
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मधुरिमा के, मधु के अवतारसुधा से, सुषमा से, छविमान,आंसुओं में सहमे अभिरामतारकों से हे मूक अजान!सीख कर मुस्काने की बानकहां आऎ हो कोमल प्राण!स्निग्ध रजनी से लेकर हासरूप से भर कर सारे अंग,नये पल्लव का घूंघट डालअछूता ले अपना मकरंद,ढूढं पाया कैसे यह देश?स्वर्ग के हे मोहक संदेश!रजत किरणों से नैन पखारअनोखा

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पूछता क्यों शेष कितनी रात?

1 मार्च 2016
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पूछता क्यों शेष कितनी रात?छू नखों की क्रांति चिर संकेत पर जिनके जला तूस्निग्ध सुधि जिनकी लिये कज्जल-दिशा में हँस चला तूपरिधि बन घेरे तुझे, वे उँगलियाँ अवदात!झर गये ख्रद्योत सारे,तिमिर-वात्याचक्र में सब पिस गये अनमोल तारे;बुझ गई पवि के हृदय में काँपकर विद्युत-शिखा रे!साथ तेरा चाहती एकाकिनी बरसात!व्यं

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मैं नीर भरी दु:ख की बदली!

1 मार्च 2016
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मैं नीर भरी दु:ख की बदली!स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,क्रन्दन में आहत विश्व हंसा,नयनों में दीपक से जलते,पलकों में निर्झरिणी मचली!मेरा पग-पग संगीत भरा,श्वासों में स्वप्न पराग झरा,नभ के नव रंग बुनते दुकूल,छाया में मलय बयार पली,मैं क्षितिज भॄकुटि पर घिर धूमिल,चिंता का भार बनी अविरल,रज-कण पर जल-कण हो बरसी

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