मेहनत की कमाई
बहत समय पहले की बात है कि एक रियासत के राजा पद्मदेव सिंह अत्यंत ही विनम्र, त्यागी, कर्मठ, न्यायप्रिय तथा सच्चे प्रजापालक थे। उनके राज्य के लोग परिश्रमी होने के कारण सुखी, समृद्ध तथा प्रसन्न थे। समय आने पर राजा बूढ़ा हो गया और उसने राज्य का कार्यभार अपने दो युवा बेटों ब्रह्मदेव तथा शक्तिदेव को सौंप दिया। कुछ समय पश्चात ही वह स्वर्ग सिधार गया। बड़ा बेटा ब्रह्मदेव बहुत ही विलासी तथा आलसी था और वह परिश्रम करने में विश्वास नहीं करता था। वह खाने-पीने में भी नौकरों पर निर्भर हो गया। उसका छोटा भाई शक्तिदेव उनके विपरीत था क्योंकि वह सारा काम स्वयं करता था और किसी की सहायता न लेता था। बड़ा भाई उसे मजदूर, नौकर, सेवादार आदि नामों से पुकारता तथा उसे अपनी अपार धन-दौलत के बल पर विलासपूर्ण जीवन व्यतीत करने की सलाह देता। किंतु वह कहता, ‘आज हमारे पास राज्य है, ऐश्वर्य लक्ष्मी है किंतु ये सब न रहे तो फिर हम क्या करेंगे।’ उसकी इन बातों पर बड़ा भाई तनिक भी ध्यान नहीं देता था।
कुछ समय व्यतीत होने पर राज्य में चारों ओर अराजकता फैलने लगी तथा जनता ने सरकारी आदेशों का पालन करना बंद कर दिया। सभी सभासद भी तंग आ गए और उन्होंने दोनों राजकुमारों से छुटकारा पाने के लिए षड्यंत्र रचकर बगावत कर दी और सेनापति ने राज्य पर अधिकार कर लिया तथा दोनों राजकुमारों को वहां से निकाल दिया। वे भूखे-प्यासे इधर-उधर भटकते रहे। फिर उन्हें एक पुरानी बात याद आई। सीमा पार नदी के तट पर एक वृद्ध बाबा रहते थे। वे धार्मिक कार्यों तथा निर्धनों की सहायता हेतु उनके पिताजी से चंदा मांगकर लाया करते थे। उस समय दोनों भाई छोटे थे। उनके पिताजी ने मरने से पहले उनसे कहा था कि यदि किसी प्रकार की सलाह या सहायता की जरूरत पड़े तो उसी बाबा से मिलना। वे बड़े दयालु हैं, तुम्हें निराश नहीं करेंगे। ये सब बातें याद करके वे बाबा को ढूंढ़ते हुए नदी के तट पर उनके निवास स्थल पर पहुंच गए। उन्होंने बाबा को सारा वृत्तांत सुनाया और सहायता के लिए अनुरोध किया।
बाबा ने उन्हें धीरज देते हुए बताया कि यदि वे उनके कहे अनुसार काम करेंगे तो उन्हें उनका राज्य वापस मिल जाएगा। दोनों भाई प्रसन्न हुए और बाबा की हर बात मानने का वचन दिया। बाबा ने कहा, “सर्वप्रथम तो तुम्हें आत्म विश्वास के साथ कठिन परिश्रम करना होगा क्योंकि परिश्रम ही ऐसी पूंजी है जो असफलता को सफलता में बदल देती है। भाग्य भी परिश्रमी के पक्ष में रहता है। इसलिए तुम एक काम करो कि तट के समीप यह जो खाली भूमि पड़ी है इसे साफ करके खेत तैयार करो और फसल उगाओ। मेरे पास सभी प्रकार के बीज हैं जो मैं तुम्हें बोने के लिए दूंगा।”
फिर बाबा ने समीप के गांव से उनके लिए कृषि उपकरणों का प्रबंध भी कर दिया। दोनों भाइयों ने वैसा ही किया तथा दिन-रात परिश्रम करके भूमि को समतल बनाकर कषि योग्य बना दिया। फिर वे बाबा के पास बीज मांगने के लिए गए और कहा, “आपके पास कौन-कौन से बीज हैं?”
बाबा ने उत्तर दिया, “मेरे पास राज्य-रियासतों के बीज, सोने-चांदी-महलों के बीज, जागीरों के बीज, अनाज के बीज आदि असंख्य और विशेष बीज हैं।”
दोनों ने सोचा कि हम साधारण अनाज के बीज लेकर क्या करेंगे। क्यों न राज्य के बीज मांगें। उन्होंने जब राज्य के बीज मांगे तो बाबा ने कहा, “अच्छी तरह सोच लो क्योंकि एक राज्य तुम पहले ही गंवा चुके हो।”
उन्होंने कहा, “हम अब परिश्रम करके जी-जान से उसकी रक्षा करेंगे।” बाबा ने उन्हें बीज देकर कहा कि वे दिन-रात खेतों में ही रहें। उन्होंने वैसा ही किया। समय पर फसल पक कर तैयार हो गई। किंतु उन्हें आश्चर्य व दुख हुआ
जब उन्होंने देखा कि फसल तो साधारण अनाज की थी।
वे निराश होकर बाबा के पास गए और अपनी व्यथा सुनाई। बाबा ने प्यार से उन्हें समझाया, “देखो मेहनत से ही राज्य बनाया जाता है। पहले फसल काटो। अपने लिए अनाज रखकर शेष को मंडी में बेच दो। इस प्रकार धन एकत्रित होता जाएगा फिर सभी साधन जुटाकर सेना संगठित करो और षड्यंत्रकारियों पर आक्रमण कर दो और अपना राज्य पुनः स्थापित करो। अपने पिता की भांति परिश्रम को आदर्श बनाकर राज करो। भगवान तुम्हारी सहायता करेंगे।”
उन्होंने ऐसा ही किया और कुछ ही समय बाद सेनापति से अपना राज्य फिर से प्राप्त कर लिया। अब दोनों भाई परिश्रम का पर्याय बन चुके थे और इसी के बल पर जनता का मार्गदर्शन करते हुए एक शक्तिशाली तथा समृद्ध राज्य की स्थापना हुई। अत: जीवन में कठिन परिश्रम ही सभी प्रकार की सफलताओं का एकमात्र उपाय है। मन की शांति तथा आत्मिक बल प्रदान करने के लिए भी यह महत्वपूर्ण हैं|