मेरा सपना
बोझा ढोते.फुटपाथ पर सोते
मैनें भी देखा है सपना
एक घर हो
टूटा सा छोटा सा
बारिश में पानी टपकाता
गरमी में आगी बरसाता
चाहे जैसा भी हो
एक घर हो अपना
कचरे से पन्नी बीनते
साथियों से टुकड़े छीनते
कंधे पर बोरी लटकाये
मैंने भी देखा है
एक सपना
एक घर हो
जहाँ माँ रोटी बनाती
कभी डांटती
कभी दुलराती
राशन न होने पर
भूखा ही सुलाती
रेल मे झाड़ू लगाते
लोगों के जूते चमकाते
मैंने भी देखा है
एक सपना
एक घर हो
जहाँ मै बहनों से लड़ता
भैया पर रोब
हरदम मै कसता
पिता के डर से
दरवाजे के पीछे
पतंग और डोर लिए
मैं जा छिपता
होटल में बरतन धोते
किस्मत पर अपनी रोते
मैनें भी देखा है
एक सपना
एक घर होता
चिमनी की रोशनी में
जहाँ मैं पढ़ता किताब
स्कूल में मास्टर जी से
सीखता हिसाब
छिपा कर रखता
मैं कलम अपना
मैंने भी देखा है
एक सपना