पैदा बोट्टू का नाम नहीं किसी परिचय का मोहताज शिरडी साईं की परम भक्त सत्य साईं का भी पाया साथ
1818 में जन्मे शिरडी साईं का भक्त साईं का भक्त था परिवार साईं के द्वारा ही पाया शारदा देवी सुंदर नाम
छोटी उम्र में मात पिता को खोया क्रूर नियति का विचित्र विधान का विचित्र विधान नियति का विचित्र विधान
परिजनों ने प्यार से पाला और किया दुखों का निदान
बाल गोपाल की मिली मूर्ति भक्ति ने अपना रंग जमाया
शंकराचार्य ने दे आशीष उनके मन को को बरसाया
12 बरस की होते होते परिजनों ने उनका ब्याह ब्याह परिजनों ने उनका ब्याह ब्याह कर डाला
किंतु हाय नियति वैवाहिक सुख ना उन ने ने पाया
18 वर्ष की अल्पायु में सन्यासी में सन्यासी जीवन अपनाया
समाज सेवा का व्रत लेकर संगीत विद्यालय और अनाथालय खुलवाया
साईं भक्ति मे रत रही वे करती रही काव्य रचना रचना
तरह तरह के गीतों से सजाती रही अल्पना
बाबा ने एक बार कहा आंध्र प्रदेश में प्रेम दूंगा में प्रेम दूंगा
फिर इसी नाम साईं से अति निकट रहोगी तुम मेरे जब परिचय होगा साईं से
1940 में शारदा देवी पहुंची उरुवा कोंडा कोंडा अनायास बालक सत्या को साईं रूप में पाकर हो गई वे निहाल निहाल
भक्ति भाव और समर्पण की थी वह जागृत मिसाल मिसाल
साईं प्रेम के कारण आश्रम में ही किया निवास
अति प्रेम से साईं ने पेद्दा बोट्टू नाम दिया
अपनी अनंत भक्त पर इस प्रकार उपकार किया
स्वामी की भक्ति में भाव विभोर वे रहती थीं
उनको जपती उनको भजती साईं साईं वे करती थी
विभिन्न पुस्तकों की रचना से धन्य हुआ भारत
हिंदी संस्कृत कन्नड़ तमिल तेलुगू कई भाषाओं में थी महारत
सत्य साईं व्रत कल्पम लिख
उपकार हम सब पर किया
पूजा की विधि बतला कर मार्गदर्शन सबका सबका किया
कृष्णा वर्मा