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प्रलयंकारी बरसात

2 दिसम्बर 2022

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प्रलयंकारी बरसात

हे प्रभु

इस प्रलय काल में

रक्षा करना उन बेचारों की

घर हैं जिनके मिट्टी के

सिर पर नहीं है खपरैल

पालीथीन की छत बनी

कर फट्टों से ही मेल

इस प्रलयंकारी बरसात में

घुप्प अंधेरी रात में

पन्निया ये छेदमयी

बचा पायेंगी कैसे

अपने आश्रितों को

वर्षा के आघातों को

ये न सह पायेंगी

पानी की मार से

और ज्यादा फट जायेंगी

ऐसा विपत्ति काल

क्या होगा असहायों का हाल

पानी की बौछारें जब

फैलायेंगी अपना जाल

बरतन हैं टूटे फूटे

अन्न से खाली रीते

बहेंगे पानी में

पहुंचेंगे नाली में

चिथड़े जो ढकते

दिन में बदन को

रात में बचाते

शीत की ठिठुरन

पानी की टपकन से

वे भी न बचा पायेंगे

बूढ़ी काया ठंड से कपकपायेगी

बरखा की मार से

जूडी़ चढ़ जायेगी

हृदय से उनके

उठेगी

इस विपत्ति से

प्रभु तू ही उबार

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