संकट
संकट की इस विषम घड़ी में
आज हास्य की बात न सूझे
हृदय विकल है मन अधीर है
पर रक्षा की राह न सूझे
काल ने अपना जाल बिछाया
घर के अन्दर सबको डाला
कल कारखाने बंद हुए
मजदूर के हाथ तंग हुए
भूखों मरते रोटी को तरसते
बापिस अपने गाँव चले
. मासूम बालकों को घसीटें
कांधे पर पोटलिया टांगे
अपने अपनो के पास पहुचने.
चले जा रहे अभागे
यहाँ मरेंगे वहां मरेंगे
पर अपनो के पास मरेंगे
रूखी सूखी शायद मिले
पर अपनों के दरस मिलेगे
दुख अपना हम कितना बाचें
आखों के आगे
तम ही तम नाचे
संकट की इस विषम घड़ी में
आज हास्य की बात न सूझे