Mujhe kavitayen likhne ka bahut shouk hai.
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पैदा बोट्टू का नाम नहीं किसी परिचय का मोहताज शिरडी साईं की परम भक्त सत्य साईं का भी पाया साथ 1818 में जन्मे शिरडी साईं का भक्त साईं का भक्त था परिवार साईं के द्वारा ही पाया शारदा देवी सुंदर नाम छोट
कोरोना कहर हाट बाग चौराहे सूने गलियां सूनी सड़कें सूनी बंद कपाट देवालय सूने ईश्वर एकटक देख रहे भक्त मंदिर का रस्ता भूले नदिया लहर लहर अब भी करतीहै पर इंसान नहाना भूले हर रोज जहां मेला
शायद तुमने पूछा तुम कहाँ हो तो हम वहीं हैं जहाँ थे यानी नर्मदा किनारे कभी कभी सोचती हूँ कि शायद मेरा जन्म ही यहीं के लिए हुआ होगा नर्मदा का पत्थर बनने कहते हैं नर्मदा के कंकड़ सब हैं शंकर
प्रलयंकारी बरसात हे प्रभु इस प्रलय काल में रक्षा करना उन बेचारों की घर हैं जिनके मिट्टी के सिर पर नहीं है खपरैल पालीथीन की छत बनी कर फट्टों से ही मेल इस प्रलयंकारी बरसात में घुप्प अंधेरी रात
मेरा सपना बोझा ढोते.फुटपाथ पर सोते मैनें भी देखा है सपना एक घर हो टूटा सा छोटा सा बारिश में पानी टपकाता गरमी में आगी बरसाता चाहे जैसा भी हो एक घर हो अपना कचरे से पन्नी बीनते साथियों से टुक
संकट संकट की इस विषम घड़ी में आज हास्य की बात न सूझे हृदय विकल है मन अधीर है पर रक्षा की राह न सूझे काल ने अपना जाल बिछाया घर के अन्दर सबको डाला कल कारखाने बंद हुए मजदूर के हाथ तंग हुए भूखो
नर्मदा नर्मदा नहीं है केवल नदी ये है जीवनदायिनी संस्कृति की वाहिनी सर्व शांति प्रदायिनी साधना की स्थली और मोक्षदायिनी नर्मदा के कंकड़ पुजते बन शंकर अम्रत तुल्य नीर रेवा गहन औ गंभीर डुबकी ल