श्री राम,अर्जुन और एकलव्य के देश में
सर्वश्रेष्ठ लक्ष्यभेदक धनुर्धरों की
लंबी परंपरा रही है।
अपने एयर पिस्टल से
10 मी शूटिंग इवेंट में ओलंपिक
कांस्य जीतकर
रच दिया है इतिहास
भारत की पहली
शूटर बेटी मनु भाकर ने,
और हजारों वर्ष के इतिहास में
एक और नारी ने
यह सिद्ध कर दिया है
कि नारियों में भी
क्षमता है
पुरुषों के लिए ही निर्धारित
क्षेत्रों में
सफलता की इबारत लिखकर दस्तक देने की,
पर थोड़ा फर्क है।
“तुम यह नहीं कर सकती”
“तुम कैसे करोगी?”
“तुम लड़की हो”
“यह तुम्हारे बस का नहीं है”
जैसे अभी भी कहीं - कहीं
गूंजने वाले ऐसे जुमलों के देश में,
एक स्त्री को
सफलता का लक्ष्य भेदन करने के लिए
हवा की असामान्य गति,
प्रकाश से परिवर्तित होती दृश्यता
जैसी बाधाओं से बढ़कर
अनेक बंदिशें, वर्जनाओं
और
पग - पग पर
नारी देह को स्कैन करती
अनेक बेशर्म निगाहें जैसी
बाधाओं को पार कर
अपनी पिस्तौल लेकर
कड़े संघर्षों के बाद
पहुंचना होता है
किसी ओलंपिक इवेंट में,
अपने देश का तिरंगा लहराने।
(चित्र गूगल इंटरनेट से साभार)
डॉ.योगेंद्र