. . . अब भी कोई, रोशनी है . . .
बंजरसपने, मन में अपने, कब तक, जलते-बुझते रहेंगे ?खंजरबनके, तन में मेरे, कब तक, चुभते-दुखते रहेंगे ?सस्तीआहें, लुटती पनाहें, बेमतलब सी मिलती राहें,अंधियारीहैं, चारों दिशाएं,पर,टूटते तारों की गरमी, इन सर्द हवाओं की नरमी,भरतीमुझमें, नई सी ज़िंदगी है,मेरेमन में छुपी, अब भी कोई, रोशनी है ..... सजते-संवरते