बंजर
सपने, मन में अपने, कब तक, जलते-बुझते रहेंगे ?
खंजर
बनके, तन में मेरे, कब तक, चुभते-दुखते रहेंगे ?
सस्ती आहें, लुटती पनाहें, बेमतलब सी मिलती राहें,
अंधियारी
हैं, चारों दिशाएं,
पर,
टूटते तारों की गरमी, इन सर्द हवाओं की नरमी,
भरती
मुझमें, नई सी ज़िंदगी है,
मेरे
मन में छुपी, अब भी कोई, रोशनी है .....
सजते-संवरते,
मन में, यूं ही रमते,
चलते
हैं, शहरों की डगर,
तपते-चमकते,
तन में, यूं ही बनते,
झिलमिल
सी हो, जैसे लहर,
तपती-जलती,
इन सड़कों की जलन,
टकराते
हुए, लोगों की कुढ़न,
पथराई
हर निगाहें, मेरी आँखों की दास्ताँ है,
पर,
जुड़ते कुछ रिश्तों की डोरी,
इन
मासूम चेहरों की उम्मीद कोरी,
देती
मुझे, नई सी ज़िन्दगी है,
मेरे
मन में छुपी, अब भी कोई, रोशनी है .....
गाते-गुनगुनाते,
ग़म को यूं ही छुपाते,
रहते
हैं, नज़रों के घर,
लगते-गुदगुदाते,
कुछ लम्हें, यूं ही रुलाते,
आँसुओं
से है मिलता सबर,
मिटती-मिटाती,
बूंदों का जतन,
बिछड़ती
ज़िंदगी का वचन,
जैसे,
बिन मांगी, साँसें ही मेरी जान है,
पर,
कुछ दुआओं भरा सवेरा,
उड़ती
चिड़ियों का बसेरा,
भरता
मुझमें, नई सी ज़िंदगी है,
मेरे
मन में छुपी, अब भी कोई, रोशनी है .....