उनपे देते हैं जां, कोशिश हज़ार करते हैं,
न
बनें नूर उनकी आँखों का,
जाने
किसकी, वो आस करते हैं ?
रेंगती
उम्मीदें, इक ख्वाब की जताते हैं,
अश्क
होंठों पे, मुस्कान का पिलाते हैं,
न
जमे रंग मेरे हाथों का,
जाने
किस्मत में वो, किसकी तलाश करते हैं?
आँखें
खुलीं कि, मंज़र में धुँआ गहराया,
सांसें
बोझिल, ग़मों का दर्द जैसे लहराया,
अब
तो बस रात-दिन, सफ़र हज़ार चलते हैं,
न
मिले कारवां उन तक, हमें पहुँचने का,
जाने
किस दुनिया में वो, खुद को बसाया करते हैं?
अब
न तोड़ेंगे भरम, मुझपे फरमायेंगे करम,
किसी
रोज़ बाजुओं में, यूं ही टूट जायेंगे वहम,
रंग
लाती है लगन, उनकी जो, खुद पर यकीन करते हैं,
बनती
है उनकी रूठी किस्मत, जो लकीरें, बनाया करते हैं,
जाने
कब सराहेंगे हमें वो, जिन्हें हम जान से सराहते हैं?
न
बनें नूर उनकी आँखों का,
जाने
किसकी, वो आस करते हैं ?
उनपे
देते हैं जां, कोशिश
हज़ार करते हैं,
न
बनें नूर उनकी आँखों का,
जाने
किसकी, वो आस करते हैं ?