कितना अच्छा हो वो शहर, जहां हम आपसे मिले,
कितना अच्छा हो वो पहर, जहां हर होंठ हों सिले,
बातें हों बेहिसाब, मगर खामोशी हो ज़वाब,
नज़र ज़ब आपसे मिले.....
आपकी अनजानी आहट, मेरी बेकरारियां बढ़ाये,
आपकी अनछुई मुस्कराहट, मेरी तन्हाईयां मिटाये,
रेशमी ज़ुल्फों की नरम छाया, गरम बाहों का हो साया,
मौसम हो फागुनी, खिली हो धुप गुनगुनी,
बातें हों बेहिसाब, मगर खामोशी हो ज़वाब,
नज़र ज़ब आपसे मिले.....
रहे तन्हां कई दिनों हम, न अब तन्हां रहेंगे,
बनके लम्हां कई ज़माने हम, न अब दूरी बनेंगे,
तेरा मन मेरे तन में समाया,
ज़वा शाम हो घनेरा, ओढ़ रातों की काया,
बातें हों बेहिसाब, मगर खामोशी हो ज़वाब,
नज़र ज़ब आपसे मिले.....
चुपचाप बंध गया जो, बंधन
है आपका वो,
बिना शोर बज गया जो,
कंगन है आपका वो,
दिलकश आसमां, रोशनी से
नहाया,
बेहोश हो जहां, प्रेम-रस
में बहाया,
बातें हों बेहिसाब, मगर खामोशी हो ज़वाब,
नज़र ज़ब आपसे मिले.....