मुठ्ठी भर रेत हाथ भर लिए।
चाह प्रबल इच्छा भाव किए।
वक्त का दरिया बहता चला।
रेत प्रतिक्षण फिसलता चला।।
मुठ्ठी भर रेत हाथ भर बांधी।
सोच ऐसी वक्त रोकेगा आंधी।।
जानें कब रेत हाथ फिसली यहीं।
उद्वेलित पुरवाई सी चली कहीं।।
मुठ्ठी भर रेत स्वर्ण भास्कर लगी।
रत्न जड़ित अनमोल वचन लगी।।
अविराम सतत सरित प्रवाह बही।
निष्ठुर अधीर तत्क्षण आगाह कहीं।।
मुठ्ठी भर रेत कभी विवशता भरी।
तनिक देर घड़ी सुइयां नहीं ठहरी।।
वक्त अगोचर पग पग बढ़ता चला।
रेत का दरिया अविराम बहता चला।।
मुठ्ठी भर रेत उन्मुक्त भाव चली।
कौतुक दृष्टि भरी स्वतंत्र सी चली।।
मिश्रित उद्वेलित भाव अभिव्यक्ति।
अंतस हृदय विकिर्ण स्वर्ण आसक्ति।।
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स्वरचित मौलिक
अनुपमा वर्मा