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सोनचिरैया

11 अक्टूबर 2024

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ओ री मेरी सोनचिरैया,
फुदकती रहती घर आंगन में।
एक छोर से दूजे छोर तक,
लहराती घर कोने कोने में।।

ओ री मेरी सोनचिरैया,
बैठ जाती हो अटरिया पर।
दाना पानी लेकर तुम,
उड़ जाती हो पंख पसार।।

ओ री मेरी सोनचिरैया,
उड़ती फिरती हो इधर उधर।
न कोई चिंता न फिकर,
लहरा कर पंख इस कदर।।

ओ री मेरी सोनचिरैया,
आती तो होता आह्लादित मन।
देख कर तुमको पंख पसारे,
उड़ने को फिर होता मन।।

ओ री मेरी सोनचिरैया,
आ जाया करो घर आंगन में।
बेटियां भी होती सोनचिरैया,
फुदकती रहती घर आंगन में।।
 ✍️✍️✍️✍️✍️
स्वरचित मौलिक
अनुपमा वर्मा


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रचनाएँ
स्वर्ण लहरी
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मेरी स्वयं रचित कविताओं का संकलन जिसमें मैंने जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करने की कोशिश की है।
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मुस्कान

6 अक्टूबर 2024
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मुस्कान कैसी भिन्न भिन्न होती। कभी मीठी मुस्कान छा जाती।। चेहरे का नूर गहरा असर दिखाए। देख मां अपने बच्चे पर मुस्काए।। कभी मन खिन्न खिन्न सा होता। किन्तु फीकी मुस्कान बिखेरता।। दुःखी मन संतप्त कोशिश ह

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मुठ्ठी भर रेत

8 अक्टूबर 2024
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मुठ्ठी भर रेत हाथ भर लिए।चाह प्रबल इच्छा भाव किए।वक्त का दरिया बहता चला।रेत प्रतिक्षण फिसलता चला।।मुठ्ठी भर रेत हाथ भर बांधी।सोच ऐसी वक्त रोकेगा आंधी।।जानें कब रेत हाथ फिसली यहीं।उद्वेलित

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जीवन के सुर ताल

8 अक्टूबर 2024
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जीवन के सुर ताल बिठाना, होता नहीं है आसान। कभी सतरंगी इंद्रधनुष सा, जैसा होता आसमान।। उड़ते नील गगन में पंछी, कितने ही पंख पसारे। जीवन के सतरंगी बादल, उड़ते रहते हों बहुसारे।। जीवन के सुर

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पुस्तकालय

8 अक्टूबर 2024
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पुस्तकों का भंडारण जहां, होता है यह पुस्तकालय।नित विद्यार्थी ज्ञानार्जन जहां, प्रातः जाते विद्यालय।हर विषय पर क्षेत्र दिखे, भिन्न भिन्न होते हैं विषय,हिन्दी अंग्रेज़ी विज्ञान जहां, होता है अपना

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मात पिता

8 अक्टूबर 2024
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श्राद्ध मास आया अब, करते पूर्वजों को याद। दुआ बड़ो की रहे , करते सदा हम फरियाद। हम उनके वंशज हैं, तस्वीरों में उन्हें सजाते, देख तस्वीर पूर्वजों की, याद आए बुनियाद।। श्रद्धा सुमन अर्पित कर

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बेटियां

11 अक्टूबर 2024
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बेटियां होती पराया धन, ब्याहना इन्हें जरूर है। कैसी है ये रस्म अदायगी, निभाना इन्हें जरूर है।। छोड़ बाबुल का घर आंगन, पिया घर जाना जरूर है। ढलना है नए परिवेश में, रिश्तों को निभाना जरूर है।। कैसी मां

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सोनचिरैया

11 अक्टूबर 2024
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ओ री मेरी सोनचिरैया, फुदकती रहती घर आंगन में। एक छोर से दूजे छोर तक, लहराती घर कोने कोने में।। ओ री मेरी सोनचिरैया, बैठ जाती हो अटरिया पर। दाना पानी लेकर तुम, उड़ जाती हो पंख पसार।। ओ री मेरी सोनचिरैय

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