ओ री मेरी सोनचिरैया,
फुदकती रहती घर आंगन में।
एक छोर से दूजे छोर तक,
लहराती घर कोने कोने में।।
ओ री मेरी सोनचिरैया,
बैठ जाती हो अटरिया पर।
दाना पानी लेकर तुम,
उड़ जाती हो पंख पसार।।
ओ री मेरी सोनचिरैया,
उड़ती फिरती हो इधर उधर।
न कोई चिंता न फिकर,
लहरा कर पंख इस कदर।।
ओ री मेरी सोनचिरैया,
आती तो होता आह्लादित मन।
देख कर तुमको पंख पसारे,
उड़ने को फिर होता मन।।
ओ री मेरी सोनचिरैया,
आ जाया करो घर आंगन में।
बेटियां भी होती सोनचिरैया,
फुदकती रहती घर आंगन में।।
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स्वरचित मौलिक
अनुपमा वर्मा