जीवन के सुर ताल बिठाना, होता नहीं है आसान।
कभी सतरंगी इंद्रधनुष सा, जैसा होता आसमान।।
उड़ते नील गगन में पंछी, कितने ही पंख पसारे।
जीवन के सतरंगी बादल, उड़ते रहते हों बहुसारे।।
जीवन के सुर ताल में, कभी आए ताल तलैया।
मन चिन्तन मंथन करे, दुःख सुख छल छलैया।।
दुःख सुख आते जाते, इससे ईश तुम्हें ही उबारे।
जैसे चांदनी रात दिखते, कितने जगमगाते तारे।।
जीवन में कभी बैठता सुर, कभी बैठता है ताल।
एक दूजे से नाराज़ हुए, लगता जैसा यह काल।।
कालचक्र गुजरता रहता, जैसे हो धूप अरु छांव।
सूनी सूनी पगडंडियों पे, बढ़ते रहते हों पांव।।
जीवन के सुर ताल जैसे, लगते हैं टिम टिम तारे।
चांदनी रात कैसे पसरे, जग मग जुगनू हों सारे।।
सुर अरु ताल संगम, जीवन फूलों सा महकाए।
बागों में बहार लगे, जीवन कलियों सा मुस्काए।।
जीवन में सुर ताल मिले, मिल जाता है सुकून।
मुसीबत भी आए गहरी, पार पाने, रहता जुनून।।
जीवन पग पग बढ़ता, समय के पहिए जैसा।
रेत का दरिया बहता है, मोह न छूटे यह कैसा।।
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स्वरचित मौलिक
अनुपमा वर्मा