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स्नेह--भाग(१)

15 नवम्बर 2021

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अरी..ओ संयोगिता ...
  कहां मर गई, जरा इधर तो आ...
चारपाई पर स्वेटर बुनते सुनते बसंती ने संयोगिता को आवाज दी।।
आती हूं, मामी... संयोगिता ने रसोईघर से आवाज़ लगाई..
और संयोगिता भागी हुई सी रसोईघर से निकल कर बाहर आंगन में आई...
क्या बात है मामी? आपने मुझे क्यों पुकारा..?
संयोगिता ने डरते डरते मामी से पूछा!!
शाम को तेरे मामा जी के दोस्त का बेटा आ रहा है, जरा ठीक से और अच्छा सा कुछ बना लेना, फौज में है, हमलोगों से मिलने आ रहा है, बहुत सालों के बाद हमारे घर आ रहा है, जब छोटा तब मिली थी उससे और अगर पसंद आ गया तो मेरी चचेरी बहन शीला है ना तो उससे रिश्ते की बात चलवाती हूं, बसंती बोली।।
   ठीक है मामी.. लेकिन शाम के लिए कुछ सब्जी नहीं है, कुछ पैसे दे देती तो मैं बाज़ार से कुछ सब्जियां खरीद लाती, संयोगिता बोली।।
    ठीक है, जा चली जा, हां फिर सूरज ढलने वाला है और फिर तू जब तक लौटेगी, शाम हो ही जाएगी और देख लियो कल सुबह और शाम के लिए कुछ अच्छी सी सब्जियां ले लेना, बसंती बोली।।
   ठीक है मामी... इतना कहकर संयोगिता ने दुपट्टा डाला और थैला लेकर निकल पड़ी बाजार की ओर।।
  संयोगिता अठारह साल की एक अनाथ लड़की है, देखने में बहुत ही खूबसूरत, गोरा रंग, भूरी आंखें, भरा-पूरा बदन, कमर तक के भूरे बाल, मां बाप नहीं है बेचारी के तो अपने मामा-मामी के घर रहती है, बस हमेशा ऐसे ही घर के कामों में लगी रहती है, मां बाप थे जब तक तो स्कूल भी जाती थी लेकिन मां बाप के जाने के बाद पढ़ाई भी छूट गई, जैसे तैसे तो मामा मामी घर में रखने के लिए तैयार हुए और मामी बसंती दिन भर ऐसे ही खटिया पर बैठे बैठे संयोगिता को आदेश देती रहती है, सर्दियों के दिन है और कभी ये भी नहीं कहती कि संयोगिता तू भी दो घड़ी के लिए आंगन में आकर धूप सेंक लें।।
       संयोगिता ना हो तो बसंती के घर में मक्खियां भिनभिनाती रहें, उसने घर के कच्चे आंगन को गोबर से लीप कर सुंदर बना रखा है, किनारे में कुछ गुलाब के पौधे भी लगा रखे हैं, कुछ मिर्ची और टमाटर के पौधे भी लगा रखे हैं, आंगन के बीच में एक तुलसी चौरा है जिसमें शाम सुबह हर रोज दिया जलाती है।।
    बसंती के अपने कोई औलाद नहीं है फिर भी वो संयोगिता की कदर नहीं करती और संयोगिता भी सब सुन लेती है उसे ये लगता है कि दुनिया में मामा मामी के अलावा और कोई भी तो उसका नहीं है।
 संयोगिता बाजार पहुंचीं, उसने कुछ ताजी सब्जियां खरीदी जैसे कि गोभी, गाजर, मटर वगैरह कुछ हरा साग भी खरीदा और घर की ओर निकल पड़ी, थैला कुछ ज्यादा ही भारी हो गया था, अब उसकी चाल थोड़ी धीमी पड़ गई।।
    तभी उसने कुछ महसूस किया कि एक लड़का उसका पीछा कर रहा है, उसने अपनी रफ़्तार थोड़ी बढ़ा दी लेकिन थैले के ज्यादा भार की वजह से वो तेज चाल में नहीं चल पा रही थी।।
    उसने रूक कर एक बार पीछे मुड़कर उस लड़के की ओर गुस्से से देखा तो वो लड़का भी रूक गया और संयोगिता की ओर देखकर मुस्कुरा दिया, संयोगिता ने गुस्से से अपना पैर पटका और आगे की ओर निकल पड़ी।
    घर के दरवाज़े पर पहुंची ही थी कि वो लड़का भी घर की ओर आ रहा था, संयोगिता दरवाजे को खोलकर भीतर गई और उसको देखकर उसके मुंह पर ही दरवाजा बंद कर दिया।।
    वो थैला लेकर तुलसी चौरे तक पहुंची ही थी कि किसी ने दरवाजा खटखटाया, संयोगिता ने दरवाज़ा की दस्तक को अनसुना कर दिया और रसोई की ओर बढ़ गई।।
    तभी बसंती ने जाकर दरवाजा खोला__
और दरवाजा खोलते ही बोल पड़ी ___
अरे..राजदेव तुम..!! कैसे हो बेटा? आओ अंदर आओ..आओ ना.!!
राजदेव ने बसंती के पैर छुए और भीतर प्रवेश किया...
   बसंती ने फौरन संयोगिता को आवाज दी__
अरे, ओ संयोगिता जरा पतीले पानी गर्म होने तो चढ़ा दें, राजदेव आया है, हाथ पैर धुलेगा, ठंड बहुत है...
  जी, मामी चढ़ाती हूं, संयोगिता ने रसोईघर से जवाब दिया।।
और सुन जल्दी से पालक और प्याज के पकोड़े बना और हां चाय भी चढ़ा देना, बसंती बोली..
ठीक है मामी ... और कुछ, संयोगिता ने पूछा।।
नहीं, अभी इतना कर लें और जरा मुझे टमाटर, हरी धनिया मिर्च दे दे, मैं सिलबट्टे पर चटनी पीस देती हूं, तभी तो पकौड़ियां खाने का मजा आएगा, तेरे मामा भी आ रहे होंगे, बसंती बोली।।
     थोड़ी देर में संयोगिता ने स्नानघर में पानी गर्म करके रख दिया और मामी को आवाज दी...
मामी पानी रख दिया है, मेहमान से कहो कि हाथ-पैर धुल ले..
ठीक है.. बसंती बोली।।
तब तक संयोगिता के मामा केशवलाल भी आ गए, उन्होंने भी हाथ पैर धुले, तब तक संयोगिता ने चाय, गरमागरम प्याज और पालक के पकौड़े, टमाटर की चटनी के साथ परोस दिए, सबने बातें करते हुए मूंगफलियां भी खाई।।
   फिर एक दो घंटे के अंदर ही संयोगिता ने रात का खाना भी तैयार कर दिया, टमाटर-आलू की तरी वाली सब्जी, आंवले की चटनी, भरवां मिर्च का अचार और मैथी के गरमागरम परांठे।।
     सब खाने बैठे और संयोगिता परोस रही थीं, देवराज बोला....चाची! खाना तो बहुत ही स्वादिष्ट है,
     और संयोगिता नीचे की ओर सर झुकाकर मंद मंद मुस्कुरा दी,
तभी केशव बोल पड़ा, हां..हमारी संयोगिता बहुत अच्छा खाना बनाती है।।
  दूसरे दिन संयोगिता को सुबह जागने में थोड़ी देर क्या हो गई, बसंती ने संयोगिता की अच्छे से खबर लेनी शुरू कर दी, ये सब देवराज ने भी देखा और संयोगिता रोते हुए रसोईघर में चली गई।।
उसने जल्दी-जल्दी सारे काम निपटा कर नाश्ता भी तैयार कर दिया और बसंती से बोली, मामी नाश्ता तैयार है आप सब खा लीजिए।
बसंती बोली, ठीक है.. ठीक है, आज तो देर कर दी तूने लेकिन कल ये सब नहीं होना चाहिए।।
 तभी केशवलाल बोल पड़े, अरी... भाग्यवान हमेशा क्यों बिटिया के पीछे पड़ी रहती हो, दिन भर तो लगी रहती है बेचारी, एक दिन देर हो भी गई जागने में तो कौन सा आसमान टूट पड़ा।।
    हां... हां...बिगाड़ो, मुझे क्या, पराए घर जाएंगी तो तुम वहां भी पैरवी करने चले जाना।।
नहीं .. मैं तो सिर्फ इतना कह रहा हूं कि छोटी सी जान..सारा दिन घर सम्भालती है, कभी-कभार कोई गलती हो भी गई तो नजरअंदाज कर दिया करो..केशव लाल बोले..
हां... हां ठीक है, लो पहले नाश्ता कर लो , बसंती बोली।।
जब तक संयोगिता सबके लिए आलू के परांठे, रायता, चटनी ले आई और साथ में गाजर का हलवा, सबने नाश्ता किया।।
      फिर आंगन में संयोगिता बर्तन मांजने बैठी, उसने वही आंगन में लगे हैंडपंप से दो बाल्टी पानी भरा और अपना काम करने लगी।।
  वहीं चारपाई पर राजदेव धूप में बैठा अखबार बांच रहा था, अखबार तो एक बहाना था वो तो चुपके-चुपके नज़र बचाकर संयोगिता को देख रहा था।।
    एकाएक संयोगिता ने बर्तन मांजते समय ध्यान दिया कि राजदेव अखबार की आड़ में उसे ही निहार रहा है, उसने जल्दी-जल्दी अपना काम ख़त्म किया और अंदर चली गई।।
           संयोगिता को राजदेव का ऐसे निहारना अच्छा नहीं लगा, लेकिन वो कुछ कहती भी तो किससे, वो जानती थी कि उसको अपना समझने वाला कोई नहीं है, सुबह से लेकर सिर्फ काम में लगी रहती, ना पढ़ाई ना लिखाई, पता नहीं उसकी जिंदगी कौन सा मोड़ लेने वाली थी।
     उसके लिए तो सालों से कुछ भी नया नहीं था, वहीं रोज का काम, सुबह से शाम तक और मामी की झिड़की, बस यही बचा था उसके जीवन में, सुख के दिन तो जैसे कभी देखें ही नहीं थे बेचारी ने, यही सोचते सोचते कब उसकी आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला।।
   शाम होने को आई थी, सर्दियों के दिन थे, दिन भी जल्दी ढलता है, बसंती को शाम की चाय की तलब लगी, उसने फिर संयोगिता को पुकारा...ओ संयोगिता शाम की चाय नसीब होगी या नहीं, महारानी कब तक ऐसे ही सोती रहेगी, अब तो सूर्य नारायण भी विदा हो गए, कुछ लाज शरम है कि नहीं...
     मामी की आवाज सुनकर, संयोगिता चटपटा कर उठी, रजाई से बाहर आने का मन ना होने पर भी उसने जल्दी से आंगन में आकर बसंती से कहा..अभी बनाती हूं मामी चाय, वो जरा आंख लग गई थी।।
   और सुन चाय के साथ कुछ नाश्ता भी बना लेना, मैंने हरे मटर छील कर रखे हैं, जरा उन्हें तल लेना, बसंती बोली।।
 ठीक है, मामी और इतना कहकर संयोगिता रसोई में चली गई।।
राजदेव भी दो दिन से ये सब देख रहा था, उसे ये सब अच्छा नहीं लगा, संयोगिता के प्रति बसंती चाची का जो व्यवहार है वो बहुत ही पीड़ादायक है, इतनी भली लड़की है और उसकी इस घर में ये इज्जत है।।
     शाम की चाय के बाद बसंती पड़ोस में किसी से मिलने चली गई, संयोगिता रसोई में रात के खाने की तैयारी कर रही थी तभी एकाएक राजदेव रसोई घर में पानी मांगने के बहाने जा पहुंचा, रसोई में अचानक से राजदेव के आने से संयोगिता तनिक हड़बड़ा सी गई, राजदेव बोला, आप घबराइए नहीं, मुझे तो बस पीने के लिए पानी चाहिए था, अगर आपको कोई परेशानी ना हो तो___
      संयोगिता बोली, ऐसी कोई बात नहीं है, आप अचानक से आ गए इसलिए मैं जरा चौंक गई, अभी पानी देती हूं, संयोगिता ने लोटे में रखा कुनकुना पानी गिलास में डालकर राजदेव को दे दिया।
      राजदेव ने पानी पिया और बोला, क्या मैं थोड़ी देर आपसे बात कर सकता हूं अगर आपको कोई एतराज़ ना हो।।
 जी कहिए, भला मुझे क्या ऐतराज़ हो सकता है, संयोगिता बोली।।
अच्छा!! आपसे एक बात पूछूं, राजदेव ने सवाल किया।।
हां पूछिए, संयोगिता बोली।।
बसंती चाची आपके साथ ऐसा व्यवहार करतीं हैं, आप कैसे इतना कुछ सह लेती है, मुझे तो उनका बर्ताव बहुत बुरा लगा, राजदेव ने थोड़ा सकुचाते हुए कहा।।
     ऐसी कोई बात नहीं है, वो मेरी मामी हैं और मेरी मां समान है, आपको उन्हें कुछ भी कहने का कोई हक़ नहीं है, संयोगिता गुस्से से बोली।।
   इसी बीच बसंती घर में दाखिल हुई, किवाड़ भी पहले से ही खुले हुए थे, उसने राजदेव और संयोगिता को रसोईघर में आपस में बातें करते हुए देख लिया, फिर क्या था? इतनी खरी खोटी सुनाई संयोगिता को___
  बसंती बोली, मेरे सामने तो बहुत सती-सावित्री बनने का नाटक करती है और पीठ पीछे ये गुल खिलाए जा रहे हैं, बस यही दिन देखना बाकी रह गया था।‌
    राजदेव बोला, चाची !! आप ग़लत समझ रही हैं, ऐसा कुछ भी नहीं है, मैं तो बस पानी पीने आया था।।
लेकिन बसंती कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थीं, उसे तो बस अपनी आंखों देखे पर ही भरोसा था।।
    तब तक केशव लाल भी आ गए लेकिन बसंती तो जैसे आज चुप रहने का नाम नहीं ले रही थी, उसे लग रहा था कि इस लड़के को तो उसने अपनी चचेरी बहन के लिए पसंद किया था अगर ऐसा ना हो सका तो मायके वालों को क्या जवाब देंगी।।
       संयोगिता ने तब तक खाना तैयार कर लिया था, उसने बसंती से कहा मामी पहले सब लोग खाना खा लो और जो बुरा भला सुनाना है, बाद में मुझे सुना देना।
    केशव लाल भी बोले, अरी भाग्यवान पराए घर का लड़का हमारे घर में आकर रूका, ये सब मत कर शोभा नहीं देता लेकिन बसंती कहां मानने वाली थी, अब ये सब राजदेव से ना देखा गया और वो अपना समान उठाकर जाने लगा, केशव लाल ने बहुत रोकने की कोशिश की __बेटा!! ऐसे रूठकर मत जाओ, खाना बन चुका है, दो निवाले खाकर जाते, वहां दोस्त के सामने मेरी क्या इज्जत रह जाएगी।।
     राजदेव ने दोनों हाथ जोड़कर केशवलाल से माफी मांगी, बसंती और केशवलाल के चरण स्पर्श किए और एक झलक संयोगिता की ओर देखकर घर से उसी समय निकल गया।।
   केशव लाल ने बसंती से कहा, ये तुमने अच्छा नहीं किया, बच्चे का बहुत दिल दुखाया है तुमने, बिना सोचे-समझे कुछ भी मत बोला करो।।
   हां.. हां.. मैंने ही तो दुनिया -जहान का ठेका ले रखा है दिल ना दुखाने का, मैं ही तो सबसे बुरी हूं, बसंती बोली।।
 इतना सब होने के बाद उस रात किसी ने भी खाना नहीं खाया और उधर संयोगिता ने भी रो रोकर अपना हाल बेहाल कर लिया था, बस अपनी किस्मत को कोसे जा रही थी कि आखिर वो पैदा ही क्यों हुई आज उसकी वजह से एक भले इंसान की इतनी बेइज्जती हो गई, उसे तो जीने का हक़ नहीं है।।
   और यही सोचते सोचते संयोगिता की आंख लग गई।।
दूसरे दिन सब वैसे ही अन्य दिनों की तरह ही चल रहा था तभी सुबह-सुबह दरवाजे पर दस्तक हुई, केशव लाल ने दरवाजा खोला और देखते है कि उनके मित्र सदाशिव लाल खड़े है, केशव लाल ने उनसे तुरंत हाथ जोड़कर माफी मांगी, कल रात को जो उनके बेटे के साथ बसंती ने बर्ताव किया था।
      सदाशिव लाल मुस्कुरा कर बोले, कोई बात नहीं मित्र!! मुझे राजदेव ने सब बता दिया है , मैं तो यहां रिश्ते की बात करने आया था, मैं चाहता हूं कि संयोगिता और राजदेव की शादी हो जाए।
   केशव लाल मुस्कुरा कर बोले, ये तो बहुत अच्छी बात है कि आपने हमारी संयोगिता को अपने घर के काबिल समझा और राजदेव हमारी संयोगिता से ब्याह करने को तैयार है, एक अनाथ लड़की को एक अच्छा ससुराल मिल जाए और मुझे क्या चाहिए।।
    इतने में बसंती भी बाहर आ गई और तुनक कर बोली, ये शादी इस घर से नहीं होगी चाहें जो करो और मैं एक भी फूटी कौड़ी इस शादी में नहीं खर्च करने दूंगी।।
   सदाशिव घबरा कर बोले, ये कैसी बातें कर रही है भाभी जी, संयोगिता भी तो आपकी बेटी के समान है, ऐसी बेटी बड़े भाग्य से मिलती हैं, लक्ष्मी का रूप है संयोगिता, कृपया ऐसी बातें ना करें उसके बारे में।।
     केशव लाल बोले, अरी .. भाग्यवान, कुछ तो भगवान से डर, ऊपर जाकर क्या मुंह दिखाएगी, पाप पुण्य भी तो कुछ होता है तू तो अपने अहम में लगता है सब कुछ भूल गई।।
   रहने दो जी!! ये पाप पुण्य का अंतर मुझको मत समझाओ, मैंने एक बार जो कह दिया तो कह दिया....
    और बसंती के आगे केशव लाल की एक भी ना चल सकी।।
             बसंती के मना करने पर केशव लाल और सदाशिव लाल ने आपस में कुछ सलाह-मशवरा किया कि ये शादी तो होगी लेकिन अब ये शादी मंदिर से होगी।।
    लेकिन संयोगिता इस ब्याह के लिए तैयार नहीं थीं, वो मामी का दिल दुखाकर इस प्रकार ब्याह नहीं करना चाहती थी, उसने सदाशिव लाल जी से हाथ जोड़कर विनती की__
  क्षमा करें, चाचाजी लेकिन मैं इस ब्याह के लिए तैयार नहीं हूं, इस तरह तो कभी नहीं, जहां बड़ों का दिल दुखे, वो जैसी भी हैं मेरी मामी हैं, इतने साल से वो मुझे अपने साथ रख रही हैं और मैं उनकी कृतज्ञ होने के बजाय स्वार्थी हो जाऊं, जिस दिन मामी इस ब्याह के लिए राजी हो जाएगी, उस दिन मैं यह ब्याह कर लूंगी।।
    सदाशिव जी बोले, बहुत ही भाग्यशाली थी तुम्हारी मां, जो ऐसी बेटी को जन्म दिया, तेरी जैसी बेटी, भगवान सबको दे, तू हमेशा खुश रहे, तू जो चाहे तुझे मिलें, जब से राजदेव की मां छोड़कर गई है, घर की तो जैसे रौनक ही चली गई है, मुझे लगा था कि तेरे आने से मेरे घर के सूने आंगन में फिर से चहल-पहल हो जाएगी, ख़ैर कोई बात नहीं , जैसी तेरी मरजी, बस राजदेव को समझाने में थोड़ी मुश्किल होगी, लेकिन कोई बात नहीं! मैं समझा लूंगा, वैसे मेरा राजदेव बहुत समझदार है।।
     और सदाशिव लाल हाथ जोड़कर केशवलाल से नमस्ते करके दुखी मन से चले गए।।
     इधर संयोगिता भी उलझन में थीं, उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसने ठीक किया या ग़लत, मन के भीतर अन्तर्द्वन्द चल रहा था,
       आखिर !उस भले इंसान का क्या दोष है, मेरी वजह से आज फिर दूसरी बार उसका अपमान हो गया, ब्याह ही तो करना चाहता था वो मुझसे, आखिर मैं करती भी क्या? उस समय मुझे जैसा उचित लगा सो मैंने किया और फिर दो दिन की पहचान से कोई शादी के लिए" हां" थोड़े ही कर देता है, मैं उससे प्यार भी तो नहीं करती, पसंद भी नहीं करती।।
     बसंती भी एक तरफ मुंह फुलाकर बैठी थी, संयोगिता ने नाश्ता बनाया और परोसकर मामा-मामी के पास ले जाकर बोली__
  मामी!! छोड़ो भी..कब तक ऐसे गुस्सा होकर बैठी रहोगी, लो नाश्ता कर लो और हां ये कभी मत सोचना कि मैं तुम्हारी खुशी के खिलाफ जाकर कुछ भी करूंगी, शादी तो बहुत दूर की बात है, इतना कहकर संयोगिता रसोई में चली गई।।
     संयोगिता की बात सुनकर केशव लाल की आंखें नम हो गई, उन्होंने मन में सोचा कितनी भली बिटिया है, कितनी मासूम और दिल की साफ और एक ये बसंती है जो कभी भी इसका मन नहीं बांच पाई, कितनी निष्ठुर और कितनी निर्मोही हैं।
     फिर केशव लाल बसंती से बोले_अरी!! भाग्यवान नाश्ता कर लें, कितनी भली लड़की है, तेरी मर्जी के खिलाफ कोई भी काम नहीं करती, अब तो थोड़ा समझ लें इसे, थोड़ी ममता बरसा दे इस पर, अब तो थोड़ा प्यार दे दें, अब तो आशीष भरा हाथ रख दें इस पर, एक बार तो कह दे कि ..खुश रहो।।
       तभी बसंती बोल पड़ी__ अजी!!अब रहने भी दो ये ज्ञान की बातें, तुम्हारा उपदेश खत्म हो गया हो तो नाश्ता कर लूं।।
    केशव लाल बोले, तुझे समझाना तो पत्थर पर सर फोड़ने के बराबर है तू कभी नहीं समझेगी, चाहे तेरे लिए कोई जान भी दे दे।।
    उधर सदाशिव लाल ने घर पहुंच कर सारी बात, राजदेव से कह दी, राजदेव बोला कोई बात नहीं बाबूजी, मैं संयोगिता से ब्याह तभी करूंगा, जब तक वो हां नहीं करेंगी, इससे पहले मुझे उसका दिल जीतना होगा, उसे भरोसा दिलाना होगा कि मैं जीवन भर उसका साथ निभा सकता हूं।।
      संयोगिता की जिंदगी रोज़मर्रा की तरह फिर से पटरी पर चल पड़ी थी, सुबह-शाम का वही काम और फिर शाम को बाजार जाकर सब्जियां लाना फिर खाना पकाना लेकिन उस रोज़ वो सब्जी लेने पहुंची तो क्या देखती है राजदेव उसका इंतज़ार करता हुआ बाजार में खड़ा है, संयोगिता ने राजदेव को देखा तो जरा सी घबरा गई , सर नीचे की ओर झुकाकर बगल से निकली जा रही थी तभी राजदेव ने आवाज दी...
     संयोगिता जी, मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है !! संयोगिता बोली, लेकिन मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी, ऐसा कहकर संयोगिता तेज कदमों के साथ जाने लगी, फिर भी राजदेव संयोगिता के पीछे पीछे आने लगा।
    संयोगिता को बहुत गुस्सा आया, उसने राजदेव से कहा__
आप ऐसा क्यों कर रहे हैं? इतना सबकुछ तो हो चुका है और क्या बचा है, क्यो? मेरा पीछा कर रहे हैं, आपको पता है कि मैं आपको पसंद ही नहीं करती फिर भी...
    इतना सुनना था कि राजदेव थोड़ा देर के लिए सहम सा गया और फिर कुछ सोचकर बोला, अच्छा तो ये बात है आप मुझे पसंद ही नहीं करतीं, माफ कीजिए..! आज के बाद मैं कभी भी आपके पीछे नहीं आऊंगा, ये बात मुझे पता ही नहीं थी, मुझे लगा था कि मेरी तरह आप भी मुझे पसंद करतीं हैं और राजदेव मायूस होकर चला गया।
   संयोगिता ने इतना सब राजदेव से कह तो दिया था लेकिन अब उसे बहुत अफ़सोस हो रहा था कि गुस्से मैं इतना भला बुरा नहीं बोलना चाहिए था, कितना बुरा लगा होगा बेचारे को।।
    संयोगिता घर आई और रसोई में जाकर चूल्हा जलाकर उस पर दाल चढ़ा दी, फिर पता नहीं क्यों उसका जी भर आया और अपना सर घुटनों पर झुकाकर फूट फूट कर रो पड़ी, इतने में उसे बाहर केशवलाल की आवाज सुनाई दी, उसने सोचा लगता है मामा जी आ गए और फ़ौरन अपने आंसू पोछ कर अपने काम में लग गई।।
      केशव लाल जी रसोई में आए और संयोगिता से आकर बोले, देवराज मिला था__
  मैंने पूछा, कुछ काम था बेटा, किस लिए आए थे।।
बोला, संयोगिता से कुछ सवालों के जवाब चाहिए थे जो मिल गए, अब मैं कभी भी यहां नहीं आऊंगा।।
फिर मैंने पूछा, ऐसा क्या हो गया बेटा!!
तो बोला, जब संयोगिता मुझे पसंद ही नहीं करती तो फिर कोई सवाल ही नहीं रह जाता, उत्तर पाने के लिए, मैं तो इस आशा से आया था कि जिस तरह मैं उसे पसन्द करता हूं शायद वो भी मुझे पसंद करतीं हैं, लेकिन मुझे आज अपने सवाल का जवाब मिल गया।
   संयोगिता बोली, मामा जी इस विषय में मुझे कोई भी बात नहीं करनी, जो हो नहीं सकता तो क्यों हम उसके पीछे पड़े।।
     केशव लाल जी बोले, जैसी तेरी मरजी बेटा!! लेकिन कोई फैसला लेने से पहले एक बार जरूर सोच लेना, इतना स्नेह रखने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है, इतना कहकर केशव लाल जी रसोई से बाहर आ गए।।
    उधर राजदेव हताश सा अपने घर पहुंचा, उसके चेहरे पर निराशा के भाव साफ़ साफ़ नज़र आ रहें थे, तभी सदाशिव लाल अपने बेटे की चिंता की वजह भांपकर बोले, मना कर दिया ना उसने, मुझे पता था वो ऐसा ही करेंगी, बहुत ही भली लड़की है बेटा , पहले वो सबके बारे में सोचती है फिर अपने बारे में, उसके चेहरे पर जो तेज़ है, वो साफ साफ बयां करता है लेकिन तू हिम्मत मत हार, एक कोशिश और करके देख, तेरे पास यहां रहने के लिए इतना समय भी नहीं है तेरी छुट्टी खत्म होते ही तू फिर ड्यूटी पर चला जाएगा, इससे पहले तू उसे मना लें और मैं तेरी उससे सगाई करवा सकूं।।
   इतना सुनकर राजदेव के चेहरे पर मुस्कराहट लौट आई और खुश होकर बोला...सच!!बाबू जी।।
                 अपने बाबूजी की बात सुनकर राजदेव को ये आशा हो गई थी कि आज ना सही लेकिन एक ना एक दिन संयोगिता इस ब्याह के लिए तैयार हो ही जाएगी और राजदेव इसी उम्मीद में एकाध दिन में संगीता से मिलने की कोशिश करने लगा लेकिन संयोगिता है कि राजदेव की ओर देखती भी ना थीं।।

क्रमशः...
सरोज वर्मा...


Jyoti

Jyoti

बहुत बढ़िया

29 दिसम्बर 2021

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत सुन्दर 👌 👌 👌

26 दिसम्बर 2021

4
रचनाएँ
स्नेह
5.0
एक ऐसे बच्चे की कहानी,जिसकी माँ नहीं है और वो एख अन्जान औरत को अपनी माँ मानकर अपने घर ले आता है,फिर क्या वो औरत उस बच्चे को अपना पाती है, बच्चे को स्नेह दे पाती है,...

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