सुबह हुई___
संयोगिता को तो आदत थी जल्दी उठने की, ऊपर से मुर्गे ने भी बांग दे दीं, संयोगिता की आंख तो खुल गई थी लेकिन अभी भी वो बिस्तर पर लेटी हुई थी, पराए घर में कौन सा काम कब होता है इसका उसे पता भी तो नहीं था, इसलिए खुद से काम भी शुरू नहीं कर सकती थी।।
जैसे ही उसने करवट लेनी चाही, उसने देखा कि मुन्ना ने उसका पल्लू अपने हाथ में बांध रखा था, मुन्ना का अपने प्रति प्यार देखकर उसका मन ममता से भर उठा और उसने उसके माथे को चूम लिया और फिर मुन्ना का सिर सहलाने लगी।।
मुन्ना नींद में बड़बड़ाते हुए बोला__
अब तुम मुझे छोड़कर कहीं मत जाना, हमेशा मेरे पास रहना, बोलो मां अब छोड़कर तो नहीं जाओगी!!
संयोगिता ने मुन्ना को प्यार से गले लगाते हुए कहा, नहीं जाऊंगी, मेरे मुन्ने !! कभी नहीं जाऊंगी।।
तभी उसे बाड़े में से कुछ शोर सुना, शायद दीनू काका जाग गए थे और कुएं से पानी निकाल रहे थे, उन्होंने सारे जानवरों को दाना पानी डाला, गाय का गोबर उठाया, गौशाला की सफाई की, गाय का दूध दौहकर, बछड़े को मां के पास खड़ा कर दिया फिर कुंए से पानी निकाल कर स्नान किया फिर उन्होंने आवाज दी__
मालिक!! मंदिर होकर आता हूं।।
ठीक है दीनू काका! शिवनन्दन सिंह बोले।।
शिवनन्दन सिंह जल्दी से उठे और चूल्हा बालकर, दूध चढ़ाया , दूध गर्म होने के बाद उन्होंने चूल्हे पर कढ़ाई चढ़ाई और उसमें आटे का हलवा बनाने लगे।।
तब तक रधिया भी आ पहुंची थी और उसने सारे घर में झाड़ू लगाई फिर बर्तन मांजने बैठी।।
तभी संयोगिता भी उठकर आई और शिवनन्दन से बोली___
बोली, ये आप क्या कर रहे हैं?
हलवा बना रहा हूं, दीनू काका मंदिर से आ ही रहे होंगे फिर खेतों में निकल जाएंगे और अभी तक महाराजिन भी नहीं आई है तो मैं उन्हें ऐसे खाली पेट कैसे जाने दे सकता हूं, शिवनन्दन बोले।।
तो आपने मुझसे कह दिया होता, संयोगिता बोली।।
कोई बात नहीं, हलवा बस बन ही गया है, आप जाकर स्नान करके नाश्ता कर लीजिए, शिवनन्दन सिंह बोले।
जी, ठीक है, संयोगिता बोली।।
और सुनिए, ये लीजिए संदूक की चाबी!! शिवनन्दन बोले।।
किस संदूक की चाबी? संयोगिता ने पूछा।।
अरे, मुन्ना की मां की साड़ियां और गहने सब उसी संदूक में हैं, जो भी साड़ी आपको चाहिए, निकाल लीजिए और हां इस संदूक की चाबी अब आप अपने पास ही रखिए, शिवनन्दन बोले।।
और संयोगिता ने संदूक की चाबी ले ली फिर एक साड़ी खुद के लिए निकाल कर स्नान करने चली गई।।
स्नान करने के बाद उसने सूर्य देवता को जल चढ़ाया फिर घर के मंदिर में दिया जलाकर आरती की फिर सबको प्रसाद बांटा।।
रधिया ये सब देखकर बोली__
मालिक आज घर में रौनक लग रही है, घरनी से ही तो घर होता है, बिना औरत के घर में रौनक नहीं रहतीं।।
संयोगिता फिर सिलबट्टे पर चने की दाल पीसने बैठी जो उसने रात को भिगोकर रखी थीं।।
तभी रधिया बोली, नाही बिटिया, तुम इ सब ना करो, ये काम हमारा है, हम करें देते है, वैसे इसका क्या बनाओगी बिटिया?
मुन्ना बोल रहा था कि उसे चने के दाल के परांठे बहुत पसंद हैं, सोच रही थी कि उसके लिए बना दूं, संयोगिता बोली।।
अच्छी बात है बिटिया!! मुन्ना को पहली बार इतना खुश देख रहे हैं, रधिया बोली।।
तब तक मुन्ना भी जाग चुका था।।
संयोगिता बोली, जाओ बेटा जल्दी से स्नान कर लो आज तुम्हारी पसंद का नाश्ता बना है।।
अच्छा मां, बस थोड़ी देर में आया और मुन्ना तैयार होने चला गया।।
संयोगिता ने जल्दी से पीसे चने का मसाला तैयार किया और परांठे बनाने शुरू कर दिए तभी दीनू काका भी मंदिर से लौट आए।।
दीनू काका, आज मंदिर में बहुत देर लगा दी, शिवनन्दन सिंह ने पूछा।।
हां, मालिक आज पंडित जी चौपाइयां सुनाने लग गए तो मन किया कि पूरा सुनकर ही जाऊं इसलिए देर हो गई,
और हां आते समय ये दो पके हुए कैथ दे दिए किसी ने, बोला चटनी बना लेना, दीनू काका बोले।।
रधिया बोली, ये भी खूब रही लाओ इधर कैथ मुझे दो, मैं बनाएं देती हूं चटनी, इसकी चटनी चने के दाल परांठे के साथ अच्छी लगेगी, बिटिया ने छाछ में तड़का लगा दिया है और मालिक ने हलवा बना दिया, आज तो नाश्ते का मजा ही आ जाएगा।।
इतना कहकर रधिया ने दोनों कैथ(wood apple) फोड़े, आठ-दस लहसुन की कलियां छीली, तीन चार लाल मिर्च, थोड़ी साबुत धनिया और खड़े नमक के साथ अच्छी सी तीखी और खट्टी चटनी बना दी।।
तब तक मुन्ना और शिवनन्दन भी स्नान करके आ चुके थे।
इधर संयोगिता गरम गरम परांठे सेंक रहीं थीं और उधर सब आनंद उठा रहे थे।।
बस सब खा ही चुके थे और संयोगिता ने अपने परोसने के लिए थाली उठाई ही थी कि__:
तभी इतने में बूढ़ी महाराजिन सुखमती आ पहुंची।।
अंदर आते ही सबको खाते हुए देखकर बोली___
ये क्या मालिक? दूसरी महाराजिन रख ली और इतना कहकर दनदनाते हुए अंदर पहुंची।।
कौन है री तू? और तेरी इतनी हिम्मत कि मेरी गैरहाजिरी में तू मीठी-मीठी बातें करके इस घर में घुस गई, तूने क्या समझा , सीधे सादे मालिक को बेवकूफ बना लेगी, तू मुझे जानती नहीं, तेरा जीना मुश्किल कर दूंगी, मेरा काम छीनेगी, मेरे पेट पर लात मारेगी, करमजली! जहां से आई है वहीं लौट जा, नहीं तो मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा।।
संयोगिता ने इतना सुना तो सकपका गई और बस उसकी आंखों से झर झर आंसू बहने लगे।।
मुन्ना ने इतना सुना और गुस्से से बोल पड़ा__
ओ सुखमती दादी, ये मेरी मां है और तुम इनसे ऐसे बात नहीं कर सकती, तुम तो मुझे दूध में पानी मिलाकर देती थी और सारा दूध खुद पी जाती थी और मेरी दाल में घी भी नहीं डालती थी।।
रधिया बोली, सुखमती काकी तुम्हारी उम्र का लिहाज़ कर रहे हैं नहीं तो ये जो तुम्हारी काली जुबान है और काला दिल है ना, तुम्हारे विनाश का वही कारण है।।
तभी सुखमती गुस्से से रधिया से बोली___
मैं तेरे जैसी नहीं हूं, रधिया, कि पति मर गया तो देवर से ब्याह रचा लिया, तुझे कोई लिहाज है कि नहीं।।
तभी दीनू काका बोल पड़े___
अरी! सुखमती , काहे लोगों की खुशियों में नजर लगा रही हैं, अगर कोई किसी के मिल जाने से खुश हैं तो तुझे क्यो परेशानी हो रही है, सबकी अपनी-अपनी जिंदगी है, सब को अपने हिसाब से रहने दें।
कैसी बातें कर रहे हो ?दीनू!!
कोई मेरे पेट पर लात मारे, कोई मेरी नौकरी छीने और मैं कुछ ना कहूं, सुखमती गुस्से से चीख पड़ी।।
तभी दीनू काका फिर से बोले __
इस बिटिया ने कोई तेरा काम नहीं छीना हैं, ये इस बच्चे को बेहोशी की हालत में मिली थी, ये मासूम इसे अपनी मां समझ बैठा।।
ये भली चलाई, किसी भी अंजान को ठाकुर साहब अपने घर में बीवी बनाकर ले आए और गांव वालों को पता ही नहीं, सुखमती इतराकर हाथ मटकाते हुए बोली।।
अब शिवनन्दन सिंह से ना रहा, संयोगिता पर घटिया इल्जाम लगते ही बोल पड़े___
काकी, अभी तक मैं सब बर्दाश्त कर रहा था लेकिन तुम अब किसी पर बेवजह लांछन लगाओगी तो बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा, अभी, इसी समय निकल जाओ, मेरे घर से और आज के बाद अपनी मनहूस शक्ल मत दिखाना, तुम्हारा जितना भी पैसा बनता है, तुम्हारे घर पहुंचा दिया जाएगा।।
सुखमती काकी बोली__
हां.. हां..जाती हूं..जाती हूं, धौंस किसको दिखा रहे हो, प्रधान जी!!सारे गांव को तुम्हारी करतूतें बताऊंगी कि पता नहीं किस औरत को तुमने अपने घर में रख रखा है।।
तभी मुन्ना बोल पड़ा__
वो मेरी मां है!! मेरी मां के बारे में कुछ मत कहो, दादी।।
बड़ा आया, मां वाला।। ना जाने, किसे उठा कर ले आया है, अभी गांव वालों को बताती हूं और इतना कहकर सुखमती वहां से चली गई।।
इधर संयोगिता की आंखों से आंसू रूक नहीं रहें थे, वो सोच रही थी कि कैसी फूटी किस्मत लेकर पैदा हुई है।।
उसने नाश्ता भी नहीं किया और कमरे में जाकर फूट फूटकर रो पड़ी।।
तभी रधिया, शिवनन्दन सिंह से बोली__
मालिक, मुन्ना के हाथों खाना भेजिए तो बिटिया खा लेंगी।।
शिवनन्दन ने थाली लगाकर मुन्ना के हाथों भिजवा दी और मुन्ना से बोले, जाओ मां को खाना खिला दो।।
मुन्ना थाली लेकर पहुंचा और संयोगिता से बोला__
मां!! खाना खा लो।।
संयोगिता बोली, भूख नहीं है।।
मुझे पता है मां! तुम्हें भूख तो है लेकिन तुम खाना नहीं चाहती, तुम्हें सुखमती दादी की बात का बुरा लगा है लेकिन पता है मां, वो बहुत बुरी है, वो तो सबको ऐसे ही कुछ भी बोलती रहती है।।
लो मेरे हाथों से खाना खा लो।।
मुझे भूख नहीं है, संयोगिता ने फिर से कहा__
लेकिन इस बार मुन्ना ने निवाला संयोगिता के मुंह में डाल दिया
और बोला, चुपचाप खा लो, नहीं तो मैं रूठ जाऊंगा।।
और संयोगिता ने नाश्ता खाना शुरू कर दिया___
मुन्ने के हाथ से संयोगिता ने नाश्ता खा लिया, ये सब शिवनन्दन सिंह परदे के पीछे से देख रहें थे, मुन्ना का संयोगिता के प्रति इतना गहरा प्रेम देखकर शिवनन्दन सिंह की आंखें भर आईं और उन्होंने सोचा, ये तो इसकी सगी मां भी नहीं है फिर भी इन दोनों के बीच अटूट प्रेम है, काश ये मां-बेटे एक-दूसरे से कभी अलग ना हो।
लेकिन ये कैसे हो सकता है, संयोगिता को तो कभी ना कभी इस घर से जाना पड़ेगा, ये तो हमारे घर की सदस्य भी नहीं है, पता नहीं कौन है? और अगर कभी कोई इसको ढूंढते हुए यहां आ गया तो संयोगिता को तो वापस जाना ही पड़ेगा, फिर मुन्ने का क्या होगा? वो बेचारा तो मां के लिए पहले से ही तरस रहा है और अगर संयोगिता भी चली गई तो बेचारे का ना जाने क्या हाल होगा।।
लेकिन अभी तो दोनों एक-दूसरे को पाकर खुश हैं, बाद में बाद का देखा जाएगा, शिवनन्दन सिंह खुद को दिलासा देकर बाहर आ गए।।
तभी मीठी दौड़ते हुए आई___
मुन्ना.. मुन्ना... कहां हो तुम?
देखो, मैं अपनी नानी के घर से वापस आ गई।।
मुन्ना भी मीठी की आवाज सुनकर बाहर आकर बोला__
तुम आ गई मीठी!!
चलो, मेरे साथ अंदर चलो, तुम्हें कुछ दिखाता हूं।।
क्या हुआ, मुन्ना ऐसा क्या दिखाना चाहते हो मुझे।।
मीठी ने पूछा__
बस, तुम अपनी आंखें बंद कर लो।।
मुन्ना बोला__
अच्छा, बाबा!!लो कर ली आंखें बंद, मीठी बोली।।
मुन्ना, मीठी को संयोगिता के पास ले जाकर बोला__
मीठी, अब आंखें खोलो।।
मीठी ने जैसे ही आंखें खोलीं, संयोगिता को सामने देखकर हैरानी से पूछा__
मुन्ना!!ये कौन हैं?
पहचानो तो भला, ये कौन हैं?
मुन्ना बोला__
नहीं, पहचाना मुन्ना, अब बताओ भी कि ये कौन हैं? मीठी बोली।
अरे, पगली, ये मेरी मां है, पता है नदी के किनारे पड़ी थी बेचारी, फिर वैध जी ने इलाज किया और ठीक होने पर मैं इन्हें अपने घर ले आया, है ना सुंदर मेरी मां और खाना भी बहुत अच्छा बनाती है।।
अच्छा, तो ये है तेरी मां।।
सच, में बहुत सुंदर है, मीठी बोली।।
फिर मीठी बोली, मैं अपनी मां को बताकर आती हूं कि मुन्ना की मां वापस आ गई है भगवान के घर से__
और इतना कहकर मीठी वापस अपने घर चली गई__
तभी शिवनन्दन सिंह ने मुन्ना से कहा__
बेटा, मीठी से क्यो कहा कि ये तुम्हारी मां है अब वह अपनी मां से बता देंगी और महाराजिन काकी का उसकी मां के साथ उठना बैठना है, पता नहीं क्या लगाई बुझाई करें, क्या क्या बोले, तेरी मां के बारे में।।
मुन्ना बोला, महाराजिन दादी, सच में मेरी को बुरी कहेंगी।।
शिवनन्दन सिंह बोले, पता नहीं बेटा।।
लेकिन सुखमती काकी हमसे गुस्सा होकर गई है इसलिए कुछ ठिकाना नहीं है।।
मुन्ना बोला, लेकिन बाबा अब क्या करेंगे।।
चिंता मत करो, बेटा ।।जो होगा देखा जायगा, शिवनन्दन सिंह बोले।।
मीठी अपने साथ अपनी मां को संयोगिता से मिलाने ले आई__
देखो मां!!देखो...देखो..ये रही मुन्ना की मां, मुन्ना कह रहा था नदी के किनारे बेहोश पड़ी थी, मुन्ना ने वैध जी से उनका इलाज कराया फिर अपने घर ले आया।।
मीठी अपनी मां सुमित्रा से सब एक ही सांस में कह गई।।
अब सुमित्रा और मीठी, संयोगिता के सामने थे।।
सुमित्रा बोली, सच में तुम मुन्ना की मां हो !!
संयोगिता बोली, नहीं बहन!! मैं तो एक अनाथ, बेसहारा हूं, मेरे मां बाप तो बचपन में गुजर गए थे, मामा मामी ने सहारा दिया फिर शादी हुई, पति फौज में थे, वो शहीद हो गए और अब ना मामा मामी रहे और ना ससुराल में कोई है इसलिए नदी में कूदकर जान देना चाहती थी लेकिन मुझे क्या पता था कि मेरा भाग्य यहां मुझे मुन्ना से मिला देगा।।
वर्षों से ममता के लिए तरस रहा है, अगर मैं उसको वो ममता दे सकूं तो इसमें क्या बुराई है, इतने कम समय में ही इससे इतना लगाव हो गया कि ऐसा लगता है कि ये मेरा सगा बेटा है।।
अच्छा हुआ बहन, मैं बहुत खुश हूं, मुन्ना के लिए, अनाथ को मां मिल गई, इससे अच्छा और क्या हो सकता है, अभी मैं जाती हूं बाद में फुर्सत से बात करती हूं, अभी मां के घर से आई हूं तो बहुत सा काम पड़ा है और इतना कहकर सुमित्रा चली गई।।
मुन्ना और मीठी आपस में खेलने लगे।।
तभी गांव के दो चार बुजुर्ग लोग शिवनन्दन सिंह के घर पहुंचे और उनमें से एक ने आवाज लगाई__
प्रधान जी..प्रधान जी...जरा बाहर तो आइए!!
आवाज़ सुनकर शिवनन्दन सिंह ने बाहर आकर पूछा__
अरे!!आप लोग ।। कहिए क्या बात है?
उनमें से एक ने कहा कि बात तो है लेकिन वो आप से सम्बंधित है, समझ नहीं आ रहा, कहां से शुरू करूं और कैसे कहूं, आप हमारे गांव के शरीफ़ इंसानों में गिने जाते हैं, आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी ।।
शिवनन्दन सिंह बोले, ऐसा क्या हुआ, मैंने ऐसी कौन-सी गलती कर दी जो आप लोग ऐसा कह रहे हैं।।
उनमें से फिर एक ने कहा कि आपकी महाराजिन सुखमती ने गांव भर में ख़बर फैला दी हैं कि पता नहीं आपके घर कौन लड़की रह रही हैं और आप उसे मुन्ना की मां कह रहे हैं।।
बिना ब्याह के किसी भी लड़की को अपने घर में रखना उचित नहीं है और आप जैसे सम्मानीय व्यक्ति को ये सब शोभा भी नहीं देता, हम सब गांव वाले तो आपसे कब से कह रहे थे कि आप मुन्ना के लिए दूसरा ब्याह कर लीजिए लेकिन आप राजी ही नहीं हुए, आप बोले की सौतेली मां ना जाने कैसा व्यवहार करें मुन्ना के साथ लेकिन अब इस लड़की का आपके घर में रहना सबको अखर रहा है और फिर सबके घरों में बहु-बेटियां है, आप ऐसा करेंगे तो समाज पर क्या असर पड़ेगा।।
शिवनन्दन सिंह बोले, अच्छा तो आपकी ये समस्या है, मैं जल्द ही इसका कुछ समाधान करता हूं, आप लोग अभी निश्चिंत होकर जाइए।।
आप लोग तब तक कुछ जलपान गृहण कीजिए, मैं अभी लेकर आता हूं।।
लेकिन उनमें से एक ने कहा___
नहीं ठाकुर साहब, जब तक आपकी समस्या का समाधान नहीं हो जाता, हम आपके घर का जल भी गृहण नहीं कर सकते।।
अब शिवनन्दन सिंह का मन ग्लानि से भर गया, बहुत ही कष्ट हुआ उनके मन को , वो उस समय खुद को बहुत ही असहाय महसूस कर रहे थे लेकिन कुछ कर भी नहीं सकते थे।।
शिवनन्दन सिंह ने सबको हाथ जोड़कर राम राम की और क्षमा मांगकर विदा कर दिया।।
शिवनन्दन सिंह लेकिन बहुत ही विकट समस्या से सूझ रहे थे, उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे संयोगिता से जाने के लिए कैसे कहें और अगर कह भी दे तो मुन्ना का क्या होगा, उन्हें अब संतान मोह सता रहा था जो कि बहुत ही कष्टदायक होता है।।
और अब वो उसका समाधान ढूंढने लगे।।
शिवनन्दन सिंह गहरी सोच में थे कि इस समस्या का समाधान कैसे हो, तभी दीनू काका दोपहर के खाने के लिए खेतों से लौटे, उन्होंने शिवनन्दन सिंह को ऐसी चिंतित अवस्था में देखकर पूछा____
क्या हुआ मालिक? आप ऐसे उदास क्यों बैठे हैं, किस सोच में है आप !!ऐसी कौन-सी चिंता आपको सता रही है, इससे पहले तो आपको मैंने कभी इस तरह नहीं देखा।।
क्या बताऊं ?दीनू काका।। बहुत बड़ी समस्या आ खड़ी हुई है, शिवनन्दन सिंह ने जवाब दिया।।
ऐसा क्या हुआ मालिक, ऐसी क्या समस्या हो गई, कहीं ऐसा तो नहीं सुखमती महाराजिन ने कोई लगाई बुझाई की है, दीनू काका बोले।।
हां, दीनू काका अभी थोड़ी देर पहले गांव के कुछ बुजुर्ग लोग आए थे, उन लोगों ने कहा कि वो मेरे घर का जल भी गृहण नहीं करना चाहते, जब तक कि संयोगिता मेरे घर से चली नहीं जाती, शिवनन्दन सिंह दुखी होकर बोले।।
दुनिया का क्या हैं? मालिक!! अपने स्वार्थ के लिए लोग कुछ भी बोलते हैं, आप चिंता मत कीजिए, बस ये बताइए उन लोगों की बातें कहीं संयोगिता बिटिया ने तो नहीं सुनी, दीनू काका ने शिवनन्दन सिंह से पूछा।।
नहीं काका, संयोगिता बिटिया को मुन्ना, शेरू और मीठी नदी किनारे लेकर गए थे, इस विषय में संयोगिता को कुछ भी नहीं पता चला, शिवनन्दन सिंह बोले।।
बहुत ही अच्छा हुआ मालिक, संयोगिता बिटिया ये सब सुनती तो ना जाने उसके दिल पर क्या गुजरती, दीनू काका बोले।।
तभी संयोगिता के साथ मुन्ना, शेरू और मीठी नदी किनारे से वापस आ गए, घर में फिर से चहल-पहल मच गई।।
तभी दीनू काका बोले___
बिटिया !! खाना बन गया क्या?
हां, काका, मैं सब तैयार करके गई थी, अभी सबके लिए खाना परोसती हूं, संयोगिता बोली।।
तभी संयोगिता ने कहा चलो बच्चों हाथ मुंह धोकर आ जाओ, खाना खाते हैं।।
मीठी बोली, लेकिन मुन्ना की मां मैं अब घर जाऊंगी, बहुत देर हो गई, मां इंतज़ार कर रही होंगी।।
तभी मीठी की मां सुमित्रा भी मीठी को बुलाने आ गई।।
संयोगिता बोली__
चलो सुमित्रा बहन, तुम भी खाना खा लो।।
नहीं बहन फिर कभी, अभी तो मैं मीठी को लेने आईं थीं, सुमित्रा बोली।।
लेकिन बहन कल शाम को तुमने बातों ही बातों में बताया था कि तुम्हें दही वाली तली मिर्च बहुत पसंद हैं लेकिन तुम्हें बनाना नहीं आता, आज बनाई है जरा चख लेती तो मुझे अच्छा लगता, संयोगिता बोली।।
और क्या क्या बनाया है तुमने, सुमित्रा ने पूछा।।
बस, ज्यादा नहीं, काली दाल, हरी धनिया की चटनी, आलू का भरता, तली मिर्च और बाजरे की रोटी, साथ में छाछ, संयोगिता ने जवाब दिया।।
क्या?बहन! इतना कुछ बना लिया और कह रही हो, कुछ ज़्यादा नहीं, ऐसा करो मुझे दही वाली तली मिर्च देदो, बाद में फिर कभी तुम्हारे हाथों का खाना चखूंगी, सुमित्रा बोली।।
ठीक है, अभी लाई इतना कहकर संयोगिता ने अंदर से तली मिर्च लाकर सुमित्रा को दी और सुमित्रा तली मिर्च लेकर मीठी के साथ घर चली गई।।
सबने दोपहर का खाना खाया और फिर सब अपने अपने काम में लग गए।।
शाम होने को थी, रधिया शाम के बर्तन मांजने आ चुकी थीं, दीनू काका जानवरों को दाना पानी डाल रहे थे तभी सामने सुमित्रा के घर में सुखमती महाराजिन आई।।
और आते ही सुमित्रा से बोली__
कैसी हो सुमित्रा बहु? कब लौटी पीहर से?!!
सुमित्रा बोली, ठीक हूं, काकी अभी कल सुबह ही तो लौटी हूं।।
आ तो गई हो लेकिन कुछ पता है, अपने पड़ोसियों के बारें में, सुखमती बोली।।
क्या हुआ काकी!!सब ठीक ही तो है, बेचारे मुन्ना को मां मिल गई, कब से ममता के लिए तरस रहा था बेचारा, अब देखो तो कितना खुश हैं और संयोगिता भी तो इसपे अपनी जान न्यौछावर करती है, किसी की नजर ना लगे, मां-बेटे के प्यार को, सुमित्रा बोली।।
काहे का मां-बेटे का प्यार, प्रधान जी की नजरों में खोट आ गया है, तुमने देखा नहीं ठाकुर साहब से उम्र में कितनी छोटी है संयोगिता, दस साल का फ़र्क होगा दोनों की उम्र में, जवान लड़की देखी नहीं कि अपनी सारी मान-मर्यादा भूल गए, तुम्हारी भी तो बेटी है, उस घर में जाती है, कल को उसके ऊपर इन सब बातों का क्या फ़र्क पड़ेगा, अभी तुम्हें जिंदगी का तजुर्बा नहीं है इसलिए तुम इन बातों को हल्के में ले रही हो, तुम ही सोचकर देखो भला, कोई भी अंजानी पराई लड़की ठाकुर साहब के घर में आ जाती है और उसे मुन्ना की मां की पद्ववी दे दी जाती है।
ऐसा कहीं होता है भला!! समाज कुछ भी नहीं होता, समाज की रजामंदी कुछ भी मायने नहीं रखती और उस लड़की को क्या है उसके ना आगे कोई ना पीछे, उसकी प्रतिष्ठा पर नहीं ठाकुर साहब की प्रतिष्ठा पर असर पड़ रहा, बिन ब्याह के कोई भी लड़की किसी गैर मर्द के यहां कैसे रह सकती है, समाज थू थू कर रहा ठाकुर साहब की, सुखमती इतना सब एक साथ बोल गई।।
लेकिन काकी लड़की तो भली है, सुमित्रा बोली।।
किसने देखा है, ऐसे भोले लोग दुनिया में बहुत मिलते हैं और मतलब पूरा होने पर चलते बनते हैं, सुखमती बोली।।
नहीं काकी संयोगिता तो ऐसी नहीं दिखती, सुमित्रा बोली।।
शुरू में सब सीधे ही दिखते हैं, सुमित्रा बहु!! अब मुझे क्या लेना-देना तुम्हारे पड़ोसी हैं, तुम्हारा व्यवहार तुम जानो, मैं तो चली अपने घर और इतना कहकर सुखमती आग में घी डालकर चली गई।।
तभी मीठी बोली__
मां! मैं मुन्ना के घर खेलने जा रही हूं।।
नहीं! अभी तू कहीं किसी के घर खेलने नहीं जाएंगी, सुमित्रा बोली।।
लेकिन क्यो मां? मीठी बोली।।
मैंने कहा ना कि तू मुन्ना के घर नहीं जाएगी तो बस नहीं जाएगी, सुमित्रा गुस्से से बोली।।
और फिर मीठी का हाथ पकड़कर सुमित्रा घर के अंदर ले गई।।
ये सब रधिया ने सब देख लिया और अंदर जाकर शिवनन्दन से कह सुनाया।।
शिवनन्दन सिंह पहले से ही परेशान थे अब और भी परेशान हो गए, शिवनन्दन सिंह ने रात्रि का भोजन भी ठीक से नहीं किया और रात भर चिंता से सो भी ना सकें।।
दूसरे दिन जैसे ही संयोगिता बाहर निकली, सुमित्रा दरवाजे बंद करके फ़ौरन अंदर चली गई, संयोगिता को सुमित्रा का ऐसा व्यवहार अच्छा नहीं लगा और वो मन मसोस कर रह गई।।
संयोगिता का मन किसी काम में नहीं लग रहा था।।
दोपहर होने को थी__
तभी सुखमती गांव की कुछ बुजुर्ग महिलाओं और पुरुषों के साथ शिवनन्दन के घर के बाहर जा पहुंची।।
उनमें से एक बुजुर्ग बोले तो प्रधान जी आपने क्या फैसला किया।।
शिवनन्दन जी बोले__
मुन्ना बहुत ही स्नेह रखता है उस लड़की से उसे मां मानता है और वो भी पूरी की पूरी ममता उस पर लुटाती है, मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा, कोई भी रास्ता दिखाई नहीं दे रहा।।
लेकिन ठाकुर साहब बिना ब्याह के कोई भी लड़की ऐसे कैसे आपके घर रह सकती है, समाज में रहकर आप ऐसा कैसे कर सकते हैं, उनमें से दूसरे बुजुर्ग ने कहा।।
तभी सुखमती बोली, बुलाइए उसे बाहर हम लोग बात करते हैं।।
तभी दीनू काका भी खेतों से आ पहुंचे और रधिया पहले से मौजूद थीं।।
दीनू काका बोले, मैं बुलाता हूं, संयोगिता बिटिया को।।
दीनू काका ने संयोगिता को आवाज दी, संयोगिता बिटिया जरा बाहर तो आना।।
डरी सहमी सी संयोगिता सर पर पल्लू किए हुए बाहर आई।।
दीनू काका ने सबके सामने पूछा__
क्या तुम बच्चे से सचमुच प्यार करती हो?
संयोगिता ने अपनी गर्दन नीचे किए हुए हां में अपना सर हिलाया।।
तभी सुखमती बोल पड़ी___
तो क्या किसी भी राह चलती औरत को मुन्ना की मां बनाकर इस घर में ले आओगे।।
पता नहीं कहां से आई है, कौन है? ऐसी बहुत सी बाजारू औरतें ऐसी ही घूमती रहती है अपना मतलब पूरा होने पर पता नहीं कब बच्चे और ठाकुर साहब का गला काटकर चलती बने।।
अब शिवनन्दन सिंह के बर्दाश्त से बाहर हो गया था___
वो सबके सामने चीखकर बोले__
बस!!बस भी करिए, आप सब !!एक मासूम विधवा पर कोई भी झूठे लांक्षन लगाए दे रहा है, वो मेरे बच्चे की मां है, अरे सालों बाद तो मैंने अपने बेटे को इतना खुश देखा है, आप लोगों को रिश्ते से ही मतलब है तो ठीक है...!!
और इतना कहकर शिवनन्दन सिंह अंदर गए और फिर गुस्से से तमतमाते हुए बाहर आकर मुट्ठी पर सिंदूर संयोगिता की मांग में भर दिया और बोले लो अब आज से ये मेरी ब्याहता, अब तो आपलोगों को कोई कष्ट नहीं होगा।
अब हो गई सबको तसल्ली, यही चाहते थे ना आपलोग, अब कृपा करके, आप लोग यहां से प्रस्थान कर जाएं, अभी मैं ना तो कुछ सुनने और ना ही कुछ कहने के लायक नहीं हूं, खुद को ब्यवस्थित करना चाहता हूं।।
और इतना सुनकर सब लोग वहां से चले गए...!!
क्रमशः....
सरोज वर्मा....