मुक़द्दर को ढूंढता
औरों की ही तरह, मुक़द्दर को ढूंढता.
आया तेरे शहर मैं, तेरे घर को ढूंढता.
वो,जान भी दिया तो महज़ बूँद के लिए.
जो शख़्स यूँ चला था, समंदर को ढूंढता.
अपना किसे कहें समझ में कुछ नही आता.
हर यार मिल रहा यहाँ, खंज़र को ढूंढता.
ताउम्र जो ख़ुदा को कभी मान ना सका.
ना जाने क्यों मिला वो किसी दर को ढूंढता.