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मेरी औकात आकर मेरे शहर में देख

1 फरवरी 2015

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नाविक़ का कौशल कभी भंवर में देख. हुस्ने लैला,किसी मजनूँ की नज़र में देख. अपने शहर में रुलाया मुझे पराया कहकर. मेरी औकात आकर मेरे शहर में देख. सुबह का सूरज समझकर तूने नज़र मिलाई है. हिम्मत है तो कभी मुझे दोपहर में देख. अपनी हरकत का असर गर देखना चाहे. उठती गिरती लहरों को समंदर में देख. मुझे घूरने वाले,हो अंजाम से वाक़िफ़.. खून अब भी लगा है,मेरी खंजर में देख.
मनोज कुमार - मण्डल -

मनोज कुमार - मण्डल -

बहुत बढ़िया नीरज जी , एक एक अशआर काबिल -ए-तारीफ |

2 मार्च 2015

संजय शुक्ल

संजय शुक्ल

बहुत खूब

6 फरवरी 2015

राकेश कुमार

राकेश कुमार

काफी अच्छा है जनाब !

1 फरवरी 2015

शिव हरी ओम शुक्ला

शिव हरी ओम शुक्ला

अपने शहर में रुलाया मुझे पराया कहकर मेरीऔकात आकर मेरे शहर में देख वाह खुश किता ई

1 फरवरी 2015

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मुक़द्दर को ढूंढता

1 फरवरी 2015
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औरों की ही तरह, मुक़द्दर को ढूंढता. आया तेरे शहर मैं, तेरे घर को ढूंढता. वो,जान भी दिया तो महज़ बूँद के लिए. जो शख़्स यूँ चला था, समंदर को ढूंढता. अपना किसे कहें समझ में कुछ नही आता. हर यार मिल रहा यहाँ, खंज़र को ढूंढता. ताउम्र जो ख़ुदा को कभी मान ना सका. ना जाने क्यों मिला वो किसी दर को ढूंढता.

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मेरी औकात आकर मेरे शहर में देख

1 फरवरी 2015
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नाविक़ का कौशल कभी भंवर में देख. हुस्ने लैला,किसी मजनूँ की नज़र में देख. अपने शहर में रुलाया मुझे पराया कहकर. मेरी औकात आकर मेरे शहर में देख. सुबह का सूरज समझकर तूने नज़र मिलाई है. हिम्मत है तो कभी मुझे दोपहर में देख. अपनी हरकत का असर गर देखना चाहे. उठती गिरती लहरों को समंदर में देख. मुझे घूरने

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