नाविक़ का कौशल कभी भंवर में देख.
हुस्ने लैला,किसी मजनूँ की नज़र में देख.
अपने शहर में रुलाया मुझे पराया कहकर.
मेरी औकात आकर मेरे शहर में देख.
सुबह का सूरज समझकर तूने नज़र मिलाई है.
हिम्मत है तो कभी मुझे दोपहर में देख.
अपनी हरकत का असर गर देखना चाहे.
उठती गिरती लहरों को समंदर में देख.
मुझे घूरने वाले,हो अंजाम से वाक़िफ़..
खून अब भी लगा है,मेरी खंजर में देख.