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नन्हा आशिक़ पिता से चिपका अंश सिसक पड़ा।जगमोहन बाबू और अथर्व कुछ समझ न पाएं। थोड़ी देर में अंश पहले की भांति दादा साथ खेलने लगा। &nb
फूल और तितलीएक तितली मायूस सी बैठी हुई थी । पास ही से एक और तितली उड़ती हुई आई । उसे उदास देखकर रुक गई और बोली - क्या हुआ ? उदास क्यों इतनी लग रही हो ?वह बोली - मैं एक फूल के पास रोज जाती थी । हमारी आ
प्रेम का स्थान रिक्त रखूंगीना मांगूंगी कभी स्थान रुक्मणि का, ना हृदय में राधा बनकर रहूंगी,मै बनुगी तुम्हारे प्रेम में बस मीरा, सर्वदा तुम्हारे प्रेम की प्रतीक्षा करूंगी, अभिलाषा नहीं सद
विश्वास की पक्की डोर जिसे हम प्रेम समझने की भूल कर बैठे थे दरसल वो तो किसी और के लिए महज वक्त गुजारने का जरिया भर थाक्यों सही कहा ना ? वक्त ही तो गुजारना था ना तुम्हे और कमबख्
उत्कृष्ट प्रेमजब प्रेमी, प्रेमिकाएं प्रेम में पड़ते है तो बहुत अद्भुत अनुभूति होती है। किंतु जब प्रेम में बिछड़ते है तो अत्यंत पीड़ा झेलनी पड़ती है क्या असल में प्रेम इतना उत्कृष्ट होता
रेस वो लोग लगाते है जिसे अपनी किस्मत आजमानी हो, हम तो वो खिलाडी है जो अपनी किस्मत के साथ खेलते है!
ना जाने कौन सा ऐसा छुपा हुआ रिश्ता है तुमसेहजारों अपने है पर याद तुम ही आते हो
मुद्दत बाद उसने पूछा, कहां रहते हो हमने मुस्कुरा के कहा, तुम्हारी तलाश में
तुम्हारें बिछड़ने का मलाल नहीं चाहताइसलिए तुम्हें हर हाल में पाना चाहता हूँ
नज़र से दूर रख कर भी मुझ पर नज़र रखते होआखिर बात क्या है जो इतनी ख़बर रखते हो
तुम जो पूछो, अपनी अहमियत मुझसे, तो सुनोएक तुझको, जो चुरा लूं तो जमाना, गरीब हो जाए
मुस्कुराहट से रोशन है ये ज़िंदगी,जैसे चाँदनी से सजी हो रात।हर लफ़्ज़ में बस महक हो प्यार की,जैसे बहारों का हो कोई जश्न।