*"कम्युनिकेशन गैप"*
*सम्पर्क संसर्ग अन्तराल*
कल हमने जनरेशन गैप विषय को संक्षिप्त में स्पष्ट किया। आज जनरेशन गैप के विषय के संदर्भ में ही एक और विषय उभर कर आया है। वह विषय है कम्युनिकेशन गैप। कम्युनिकेशन क्या है और क्यों होता है तथा इसके परिणाम क्या होते हैं। आज हम कम्युनिकेशन गैप विषय को सप्ष्ट कर रहे हैं। सम्पर्क संसर्ग का अन्तराल यानि कम्युनिकेशन गैप। संसर्ग संपर्क के अन्तराल अर्थात् कम्युनिकेशन गैप का अर्थ है कि जिन लोगों के बीच में पारस्परिक संपर्क संसर्ग या बातचीत, संवाद का होना अनिवार्य हो उन लोगों के बीच में पारस्परिक संवाद संसर्ग का नहीं होना।
*जनरेशन गैप v/s कम्युनिकेशन गैप*
मनोवैज्ञानिक अध्धयन बताते हैं कि विश्व की तीस प्रतिशत समस्याएं ऐसी है जिनका मूल कारण कम्युनिकेशन गैप होता है। सम्पर्क संसर्ग की समस्या पैदा होने में भी बहुत हद तक जनरेशन गैप ही जिम्मेवार होता है। ज्यादातर अवसरों पर जनरेशन गैप के कारण ही कमिनिकेशन गैप होता है। जनरेशन गैप के कारण दोनों पक्षों की समझ और अनुभवों का फैसला इतना ज्यादा होता है कि उसका सीधा असर पारस्परिक संवाद बातचीत पर भी आता है। दोनों ही पक्षों में कहीं ना कहीं यह मानसिक अवधारणा होती है कि मुझे सब कुछ पता है। दोनों तरफ से यही सोच रहे होते हैं कि जब मैं सब कुछ जानता ही हूं तो मुझे किसी विशेष विषय पर पारस्परिक संवाद या बातचीत करने की जरूरत क्या है।
*ईगो और कम्युनिकेशन गैप*
मनुष्य परिवारिक और सामाजिक प्राणी है। परिवार या समाज में बिना कम्युनिकेशन के एक कदम ही आगे नहीं बढ़ सकते हैं। अर्थात बिना कम्युनिकेशन के परिवारिक और सामाजिक जीवन जीना असंभव है। पारस्परिक संपर्क संसर्ग में अंतराल के नहीं होने में ईगो भी आड़े आता है। ईगो वाला व्यक्ति यही सोचता है कि मुझे क्या पड़ी है बातचीत करने की। जिसे जिससे संवाद करना हो वह करे। जबकि व्यक्ति को यह पता नहीं होता है कि सौहार्दपूर्ण संपर्क संसर्ग बहुत गहरे अर्थों में आपकी ऊर्जा को व्यर्थ जाने से बचा लेती है। सौहार्द्यपूर्ण पारस्परिक संसर्ग और संवाद बहुत गहरे अर्थों में आपकी मानसिक शान्ति में इजाफा करता है। पारस्परिक सौहार्द्यपूर्ण संवाद बहुत गहरे अर्थों में आपको सृजनात्मक बनाता है। सौहार्द्यपूर्ण संपर्क संवाद हमें बहुत सी नासमझी की समस्याओं से बचा लेता है।
*मन की कमजोरी सर्वत्र है, इसका ध्यान रखें*
मन का एक निश्चित पैमाने तक शान्त ना होना ही प्रायः सभी आत्माओं की कमजोरी है। यह कमजोरी सर्वत्र है। मनुष्य के मन की स्थिति बड़ी वंडरफुल है। मनुष्य का मन पेंडुलम की तरह चलता ही रहता है। मन बेकाबू रहता है। कुछ ना कुछ सोचते रहना उसका संस्कार बन गया है। इसलिए ही तो परमात्मा मनुष्य आत्माओं को सबसे पहला और सबसे अंतिम लैसन यही देते हैं कि मन मुझ परमात्मा में लगाओ। मनुष्य की साधारण स्थिति यही रहती है कि किसी विषय के बारे में बिना कम्युनिकेशन के उसका मन अनेक प्रकार के चिंतन या अनेक प्रकार के अनुमानों अंदाजों को सोच में लगा ही रहता है। मन का शान्त ना होने से मन ना तो राइट कम्युनिकेट कर सकता है और ना ही राइट कम्युनिकेशन को समझ सकता है।
*पारिवारिक व्यवस्थागत कम्युनिकेशन*
प्रायः सभी लोग यह जानते हैं कि पारिवारिक और व्यवस्थागत कमिनिकेशन के नियम अलग होते हैं। शेष सामान्य कम्युनिकेशन के नियम अलग प्रकार के होते हैं। कुछ कम्युनिकेशन सामान्य होते हैं। कुछ कम्युनिकेशन पारिवारिक निकटता के होते हैं। कुछ कम्युनिकेशन अति गोपनीय होते हैं। कुछ कम्युनिकेशन दूरी के होते हैं। जहां तक पारिवारिक और व्यवस्थागत कम्युनिकेशन की बात है। कम्युनिकेशन दूरस्थ या इनडायरेक्ट नहीं, अपितु निकटस्थ और आत्मीयतापूर्ण समक्षता का हो। कम्युनिकेशन (संवाद संचार) जितना ज्यादा निकटता और आत्मीयता का होता है उतना ही ज्यादा प्रभावशाली और परिणामकारी होता है। इसने यह कहा है। उसने वह कहा है। वहां से यह सुना है। यहां से यह सुना है। खबर यह मिली है। मैने ऐसा सुना है। उसने ऐसा सुना है। यह तो खिचड़ी इन्फॉर्मेशन हो गई। यह क्या वास्तव में ही कम्युनिकेशन हुआ? नहीं। बल्कि यह तो उल्टा मिस कम्युनिकेशन हो गया। इस तरह से सुनी अनसुनी बातों से परिवारिक या व्यवस्थागत कम्युनिकेशन नहीं हो सकता है। हमें यह ध्यान रहे कि हमारे समाज और हमारी सोच का ढांचा ऐसा बना हुआ है कि मिस कम्युनिकेशन के होने के हजारों चांसेज रहते हैं। ये मिस कम्युनिकेशन के हजारों चांसेज इसलिए ही रहते हैं क्योंकि प्रायः लोग राइट इंफॉर्मेशन राइट व्यक्ति से नहीं लेते और राइट व्यक्ति को राइट कम्युनिकेट नहीं करते हैं। जैसे आपने शायद भारत के गांवों में चौपालों पर या कहीं भी नुक्कड़ आदि पर प्रायः लोगों को बैठे हुए इधर उधर की चर्चाएं करते हुए देखा होगा। यह आपसी कम्युनिकेशन को मिस कम्युनिकेशन में बदलने का बेहतर मिशाल है। जब तक राइट लोगों के द्वारा कम्युनिकेट हो तब तक तो इस तरह के नुक्कड़ों से मिस कम्युनिकेट हो चुका होता है। जब तक राइट इन्फॉर्मेशन का राइट कम्युनिकेशन हो तब तक तो मिस कम्युनिकेशन का दुष्परिणाम हो चुका होता है।
*हजार काम छोड़ कर पहले राइट कमयूनिकेट करें*
जब तक कोई चीज स्पष्ट नहीं हो, तो उसे कभी कम्युनिकेट ना करें। यदि कोई चीज बिल्कुल स्पष्ट हो तो उसे तुरन्त कम्युनिकेट करें। कम्युनिकेशन को क्लियर करने से जीवन के हर क्षेत्र में स्पष्टता आती है। स्पष्टता का संस्कार बनता है। मनोवैज्ञानिक अर्थों में जीवन के विकास और सुख शान्ति के लिए स्पष्टता (क्लैरिटी) ही सब कुछ होती है। बहु आयामी ज्ञान (नॉलेज) और कुछ नहीं करता। यह तो सिर्फ हमें किसी विषय विशेष के बारे में एक प्रकार की क्लैरिटी (स्पष्टता) देता है। जिससे हमारी मन बुद्धि की यात्रा की दिशाधारा सरल स्पष्ट हो जाती है। हमारे कर्मक्षेत्र की यात्रा सहज सरल स्पष्ट हो जाती है। किसी भी प्रकार के पुरुषार्थ या कार्य के लिए पहले स्पष्टता (क्लैरिटी) का होना जरूरी होता है। जो भी काम करें। उसे करने से पहले क्लैरिटी होना जरूरी है। अस्पष्टता लौकिक और अलौकिक क्षेत्र में गति अवरोधक है। हर चीज में क्लैरिटी हो जीवन का उत्थान तीव्र गति से होता है। 🙏🌹✋🙏